ऊदल पटेल: कुर्मी समाज के गौरव, उनके जैसे नेताओं की आज ज़रूरत क्यों है?

कामरेड ऊदल पटेल: सिद्धांत और संघर्ष की विरासत
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जब आज धनबल, जातिवाद और अवसरवाद का बोलबाला है, तब कामरेड ऊदल पटेल जैसे नेता हमें एक ज़माना याद दिलाते हैं जब विचारधारा सर्वोपरि थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के लोकप्रिय नेता रहे ऊदल पटेल ने बनारस की कोलअसला विधानसभा सीट से नौ बार जीतकर एक ऐतिहासिक कीर्तिमान रचा।
सादा जीवन, सिद्धांतवादी सोच
ऊदल पटेल ने राजनीति को जनसेवा का माध्यम माना, कभी भी विधायक पेंशन नहीं ली। एक बार बीमार पड़ने पर जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने आर्थिक सहायता भेजी, उन्होंने साफ मना कर दिया —
“ऊदल जीते जी जनता के टैक्स का पैसा अपने ऊपर बर्बाद नहीं करेगा।”
सामान्य जीवन, असाधारण सोच
बनारस के पास सरैंया गांव में स्थित उनका साधारण मकान आज भी एक आदर्श की मिसाल है। न कोई बंगला, न लाल बत्ती, बस आम जनता के बीच एक आम इंसान।
लाल झंडे से प्रेम, सत्ता से दूरी
1957 में जब बनारस से वामपंथ का उदय हुआ, तब ऊदल ने कोलअसला सीट से कांग्रेस को हराकर CPI का खाता खोला। नौ बार इस सीट से जीत दर्ज की, लेकिन कभी भी विचारधारा से समझौता नहीं किया।
वह दौर था जब कहा जाता था —
"नेताजी को लाल बत्ती से नहीं, लाल झंडे से प्यार है।"
राजनीतिक विरासत की दो राहें
ऊदल के नाती अजय वर्मा आज भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं, जबकि उनकी बेटी रमा देवी CPI प्रत्याशी के लिए प्रचार कर रही हैं। रमा का स्पष्ट कहना है —
"पिता की विचारधारा से कभी समझौता नहीं करूंगी, चाहे कोई भी दल कितना भी बड़ा ऑफर क्यों न दे।"
एक अद्वितीय चुनावी सफर
ऊदल ने अपने राजनीतिक जीवन में कुल 13 बार चुनाव लड़ा, जिनमें 9 बार विजयी रहे। उनका सफर 1952 में हार से शुरू हुआ और 1996 में हार पर ही खत्म हुआ। लेकिन उनके संघर्ष और सादगी ने उन्हें अमर बना दिया।
ऊदल की प्रमुख उपलब्धियाँ:
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ज़मींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार
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किसानों के लिए नलकूप और सड़कों की योजनाएँ
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हमेशा जनता के बीच सुलभ और सेवा में तत्पर
2005 में हुआ निधन, लेकिन विचार अमर हैं
ऊदल पटेल का निधन 2005 में हुआ, लेकिन उनके विचार, उनकी ईमानदारी और उनका जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।