कुर्मी नेता डॉ. सोनेलाल पटेल जी की पूरी कहानी – जन्म से निधन तक

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डॉ. सोनेलाल पटेल की जीवनी

(2 जुलाई 1950 – 18 अक्टूबर 2009)

परिचय:

डॉ. सोनेलाल पटेल उत्तर प्रदेश की राजनीति में सामाजिक न्याय और समानता के संघर्ष के प्रतीक माने जाते हैं। वे अपना दल के संस्थापक और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रारंभिक दौर के अहम सहयोगी थे। उन्होंने जीवनभर जातिवाद और सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाई और किसानों, मजदूरों व कमेरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी।


जन्म और प्रारंभिक जीवन:

डॉ. सोनेलाल पटेल का जन्म 2 जुलाई 1950 को उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के बगुलिहाई गाँव में एक कुर्मी परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम गोविंद प्रसाद पटेल और माता का नाम रानी देवी पटेल था। वे अपने आठ भाइयों में सबसे छोटे थे।

उन्होंने पं. पृथ्वी नाथ डिग्री कॉलेज, कानपुर से एम.एस.सी. (भौतिकी) में प्रथम स्थान प्राप्त किया और कानपुर विश्वविद्यालय से पीएचडी (डॉक्टरेट) की उपाधि हासिल की।


सामाजिक संघर्ष की शुरुआत:

राजनीति में आने से पहले ही वे सामाजिक असमानता के विरुद्ध सक्रिय हो चुके थे। उन्होंने कन्नौज में किसानों की समस्याओं को लेकर आंदोलन किया। कोल्ड स्टोरेज की कमी के कारण आलू की फसलें बर्बाद होती थीं। उनके आंदोलन के बाद जिले में कई कोल्ड स्टोरेज स्थापित हुए।

बाद में वे कानपुर चले आए और यहीं से सामाजिक कार्यों के साथ-साथ कारोबार में भी सक्रिय हुए।


राजनीतिक यात्रा:

चौधरी चरण सिंह के साथ प्रारंभिक जुड़ाव:

अपने शुरुआती राजनीतिक जीवन में उन्होंने चौधरी चरण सिंह के साथ मिलकर सामाजिक न्याय के आंदोलनों में भाग लिया।

बहुजन समाज पार्टी में भूमिका:

1988 में डॉ. पटेल कांशीराम के संपर्क में आए और बहुजन समाज पार्टी (BSP) में शामिल हुए। उन्हें पार्टी का उत्तर प्रदेश का प्रदेश महासचिव बनाया गया। उन्होंने शुरुआती दिनों में बसपा को जमीनी स्तर पर मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई।

अपना दल की स्थापना:

मायावती के बसपा में वर्चस्व बढ़ने के बाद डॉ. पटेल ने पार्टी से दूरी बना ली। उन्होंने 4 नवंबर 1994 को लखनऊ में कुर्मी स्वाभिमान महारैली का आयोजन किया। इसी आंदोलन की परिणति हुई 11 नवंबर 1995 को अपना दल की स्थापना में।

उनका उद्देश्य था - “कमेरों, किसानों, वंचितों और पिछड़ों को सत्ता में भागीदारी दिलाना।”


चुनावी संघर्ष:

डॉ. पटेल ने 2009 में फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन विजय प्राप्त नहीं की। वे वाराणसी की कोलअसला सीट से भी दो बार अजय राय से हार चुके थे। फिर भी वे पूर्वांचल में संगठन विस्तार और सामाजिक चेतना के वाहक बने रहे।


दर्शन और विचारधारा:

डॉ. पटेल के कुछ प्रमुख विचार:

  1. “जातियां इंसानों में नहीं होतीं, केवल पशु-पक्षियों और वनस्पतियों में होती हैं।”

  2. “राजनीतिक परिवर्तन के बिना सामाजिक परिवर्तन असंभव है।”

  3. “कमेरों को सत्ता में भागीदारी दो, तभी उनका सम्मान सुनिश्चित होगा।”

  4. “कृषि को उद्योग का दर्जा दो, मतदाता को पेंशन दो।”

  5. “एक समान शिक्षा प्रणाली लागू हो, दोहरी व्यवस्था खत्म हो।”


मृत्यु और विरासत:

डॉ. सोनेलाल पटेल का निधन 18 अक्टूबर 2009 को एक सड़क दुर्घटना में कानपुर में हो गया। उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने घटना की CBI जांच की मांग की थी।

उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल ने अपना दल की बागडोर संभाली। 2012 में उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल पहली बार विधायक बनीं और 2014 से लोकसभा सांसद हैं। अनुप्रिया ने अपना दल (सोनेलाल) नाम से पार्टी को आगे बढ़ाया और भाजपा से गठबंधन कर केंद्र में मंत्री बनीं।

आज अपना दल दो हिस्सों में बंटा है:

  • अपना दल (कृष्णा पटेल गुट)

  • अपना दल (एस) – अनुप्रिया पटेल गुट


निजी जीवन:

  • जीवनसाथी: कृष्णा पटेल

  • बेटियाँ: अनुप्रिया पटेल, पल्लवी पटेल समेत चार संताने

  • राष्ट्रीयता: भारतीय

  • पेशा: राजनीतिज्ञ


उपसंहार:

डॉ. सोनेलाल पटेल ने जिस उद्देश्य से राजनीतिक यात्रा शुरू की — कमजोर तबकों को सत्ता में भागीदारी दिलाना — वह आज भी राजनीतिक विमर्श का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे केवल नेता नहीं, बल्कि विचारधारा और जनआंदोलन के प्रतीक थे। उनकी विरासत आज भी उत्तर प्रदेश की राजनीति को दिशा देती है।