
कूर्मि न केवल एक जातीय पहचान, बल्कि एक जीवंत परंपरा है; जो भारतीयता की आत्मा को लौह दृढ़ता, सेवा-भाव, और त्याग की भावना से समृद्ध करती है। यह वह वंश है, जो देशभक्ति के लौह पुरुष, अखंड भारत के निर्माताओं में अग्रणी, सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे महापुरुषों की विरासत को अपने रक्त में वहन करता है। हमारी पहचान खेतों की मिट्टी से जुड़ी है, पर हमारी सोच आकाश के विस्तार को चुनौती देती रही है।
कूर्मि समाज, भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं, बल्कि विश्व रंगमंच पर अपने संस्कारों, सृजनशीलता और कर्मशीलता के सौंदर्य को बिखेर चुका है। चाहे व्यापारी क्षेत्र हो या प्रशासनिक पटल, चाहे शैक्षणिक संस्थान हों या आपदा प्रबंधन का संकटकाल—कूर्मि सदैव अग्रदूत रहा है। किन्तु, प्रिय स्वजातीय बंधुओं, दुर्भाग्यवश यह भी कटु यथार्थ है कि हमारा समाज अपने इतिहास की स्वर्णिम प्रतिध्वनि को विस्मृत करता जा रहा है। वह इतिहास, जिसमें गौतम बुद्ध की करुणा, स्वामी महावीर की तपस्या, राजा भोज का न्याय, छत्रपति शिवाजी की रणनीति और शाहूजी महाराज की समता का ओज विलीन हो रहा है। हमारे पूर्वजों ने जब-जब समाज और राष्ट्र पुकारा, तब-तब विवेक, वीरता और वैचारिक क्रांति का दीप जलाया। परंतु आज, शाखावाद, उपजातिवाद और आपसी छींटाकशी की गहरी खाई में हम अपने वर्चस्व और सामूहिक ऊर्जा को क्षीण कर रहे हैं। 28 करोड़ से अधिक जनसंख्या के बावजूद—हमारा समाज राजनैतिक, बौद्धिक, संगठनात्मक और आर्थिक क्षेत्रों में पिछड़ा हुआ क्यों है?
कारण है—हमारा आंतरिक विघटन। हम एक दूसरे को संबल देने की बजाय, छिन्न-भिन्न कर रहे हैं।
यह विडंबना है कि सामाजिक चेतना, डिजिटल क्रांति और अभिव्यक्ति के वैश्विक साधनों के होते हुए भी, हमारी सामूहिक उपस्थिति नगण्य है। आपकी सक्रियता इंटरनेट पर है, परंतु क्या वह गांव के अंतिम घर तक पहुँच रही है? क्या वह खेत में खड़े किसान, अथवा बेरोजगार युवा को नई दृष्टि दे पा रही है? राजनीति को छोड़कर हम सत्ता का स्वप्न नहीं देख सकते। और यदि समाज साहित्य, पत्रकारिता, कविता, और संवाद में निर्बल रहेगा, तो उसकी आवाज़ कभी व्यवस्था की दीवारें नहीं भेद सकेगी।
हमें अब एक योजनाबद्ध, रणनीतिक और संगठित जनचेतना का निर्माण करना होगा।
समस्याएं तो जीवन की अनिवार्यता हैं। किंतु इन्हें सहने की बजाय सुलझाने की मानसिकता विकसित करनी होगी। परस्पर सहयोग ही उन विषाणुओं को परास्त कर सकता है जो हमें भीतर से खोखला कर रहे हैं। इस दिशा में एक दूरदर्शी पहल की गई है—
"Kurmi World"
यह कोई परंपरागत संस्था नहीं, बल्कि एक अमूर्त, लचीली और सामूहिक डिजिटल चेतना का स्वरूप है, जो न किसी ढांचे में बंधा है, न किसी सीमा में सिमटा। यह एक ऐसा मंच है जो समाज के हर हिस्से को जोड़ने, सशक्त करने, और पुनः गौरवशाली बनाने हेतु प्रतिबद्ध है।
विजन:
सर्वांगीण सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक नवोत्थान के लिए एक सर्वसमावेशी डिजिटल मंच का निर्माण।
मिशन:
कूर्मि समाज के समस्त वर्गों को एक साझा मंच पर लाकर, सामाजिक संवाद, सांस्कृतिक चेतना, आर्थिक समृद्धि और वैचारिक नवजागरण को गति देना।
टैगलाइन:
“हम सदैव तत्पर हैं—कूर्मि समाज के समग्र उत्थान हेतु।”
अब समय है—नींद छोड़ने का,
अब समय है—यादें जगाने का,
अब समय है—अपने भीतर के 'सरदार' को पुनर्जीवित करने का।
यदि हम संगठित हो जाएँ, तो विफलता हमारी नहीं, विजय हमारी नियति होगी।