कथा के मंच पर अपमान क्यों? इटावा कांड पर देविका पटेल ने उठाए तीखे सवाल

कथावाचक देविका पटेल का इटावा कांड पर फूटा गुस्सा, बोलीं – अब सहन नहीं होगा अपमान!
उत्तर प्रदेश के इटावा में हुई जातिगत हिंसा और कथावाचकों के साथ अमानवीय व्यवहार पर जबलपुर की प्रसिद्ध कथावाचिका देविका पटेल ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह केवल एक कथावाचक का नहीं, बल्कि पूरे पिछड़े समाज के आत्मसम्मान पर हमला है। देविका ने चेताया कि अब अपमान सहन नहीं किया जाएगा।
क्या है इटावा कांड?
21 जून को इटावा के दादरपुर गांव में भागवत कथा का आयोजन हो रहा था, जिसमें कथावाचक मुकुट मणि यादव और संत सिंह यादव को उनकी जाति के कारण अपमानित किया गया। ग्रामीणों ने उन्हें ब्राह्मण नहीं होने के आरोप में कथा से रोका, उनकी चोटी काटी, सिर मुंडवाया और एक महिला के पैरों पर नाक रगड़वाने जैसी शर्मनाक घटनाएं कीं। घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पूरे प्रदेश में हंगामा मच गया।
पुलिस ने अब तक 23 लोगों को गिरफ्तार किया है। यादव संगठनों और ब्राह्मण समुदाय के बीच तनाव गहराता जा रहा है।
देविका पटेल की प्रतिक्रिया:
देविका पटेल, जिन्हें कुछ माह पूर्व जबलपुर में जातिगत भेदभाव के चलते कथा वाचन से रोका गया था, ने इटावा की घटना पर कहा:
"क्या किसी धार्मिक ग्रंथ में लिखा है कि केवल ब्राह्मण ही कथा सुना सकते हैं? अगर कोई ब्राह्मण मांस खाए या शराब पिए, तो क्या वह ब्राह्मण कहलाएगा? ब्राह्मणत्व जन्म से नहीं, कर्म से तय होता है।"
उन्होंने इस घटना को सामाजिक समरसता पर सीधा हमला बताया और पूछा कि अगर हिंदू धर्म में सब समान हैं, तो जाति के आधार पर भेदभाव क्यों?
दोनों पक्षों की दलीलें:
ब्राह्मण महासभा ने आरोप लगाया कि कथावाचकों ने अपनी जाति छुपाई और आयोजकों से धोखा किया।
यादव संगठनों ने इसे जातिगत घृणा करार दिया और विरोध प्रदर्शन किए।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि परंपरा से कथा ब्राह्मण करते हैं, लेकिन अमानवीय व्यवहार अस्वीकार्य है।
काशी विद्वत परिषद और अन्य धार्मिक संगठनों ने कहा कि कथा वाचन सभी हिंदुओं का अधिकार है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:
अखिलेश यादव ने इसे पिछड़े वर्ग पर हमला बताया।
संजय सिंह (AAP) ने पूछा: “क्या यादव कथावाचक नहीं हो सकता?”
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लेकर रिपोर्ट तलब की।
सामाजिक प्रश्न:
इन घटनाओं ने सवाल खड़ा किया है – क्या धर्म पर कुछ जातियों का विशेषाधिकार है? क्या समाज आज भी जन्म के आधार पर किसी की आस्था तय करेगा?
देविका पटेल ने स्पष्ट संदेश दिया – “यह समय है रूढ़ियों को तोड़ने का, अब कर्म ही पहचान बने।”