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जंयती विशेष: एक और लौहपुरुष: डॉ. सोनेलाल पटेल की विरासत और संघर्ष ?

एक और लौहपुरुष: डॉ. सोनेलाल पटेल जी की जयंती पर विशेष
प्रस्तावना:
भारत के इतिहास में अगर किसी को लौहपुरुष कहने की परंपरा पड़ी, तो उसका श्रेय सरदार वल्लभभाई पटेल को जाता है। जिस दृढ़ता और संकल्प से उन्होंने आज़ादी के बाद बिखरे भारत को एकता के सूत्र में पिरोया, वह अद्वितीय है। लेकिन क्या देश में केवल एक ही लौहपुरुष थे? नहीं। ऐसा ही एक और व्यक्तित्व था—डॉ. सोनेलाल पटेल—जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन और राजनीतिक चेतना के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया।
सरदार पटेल: प्रेरणा का स्तंभ
बारडोली सत्याग्रह से राजनीति में चमकने वाले सरदार पटेल ने अंग्रेजों को दिखा दिया कि भारतीय नेतृत्व किस हद तक सक्षम है। उन्होंने न केवल रियासतों का भारत में विलय कराया, बल्कि जमींदारी उन्मूलन और किसानों के हक में फैसले लेकर भारत को एक सशक्त लोकतंत्र की ओर अग्रसर किया। उनके मजबूत निर्णय, जनता से जुड़ाव और प्रशासनिक कौशल के कारण उन्हें 'लौहपुरुष' कहा गया।
समान दृष्टिकोण: सरदार पटेल और डॉ. सोनेलाल पटेल
डॉ. सोनेलाल पटेल का जीवन सरदार पटेल की नीतियों से प्रेरित था। दोनों नेताओं में कई समानताएं थीं:
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दोनों ने किसानों और मज़दूरों को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष किया।
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दोनों जातिवाद के घोर विरोधी थे।
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दोनों ने सत्ता को साधन बनाया, साध्य नहीं।
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दोनों ने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम माना।
डॉ. सोनेलाल पटेल का जीवन परिचय:
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जन्म: 2 जुलाई 1950, बागुलीआई, छिबरामऊ तहसील, फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश)
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शिक्षा: M.Sc. (Physics), Ph.D., D.Sc., एलएलबी और मैनेजमेंट डिप्लोमा
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व्यवसाय: शिक्षाविद, उद्योगपति, सामाजिक कार्यकर्ता
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परिवार: पत्नी कृष्णा पटेल, चार बेटियाँ – इंजीनियर पारुल, डॉ. पल्लवी, अनुप्रिया (राजनेता) और अमन पटेल
शिक्षा और सामाजिक जागरूकता:
डॉ. पटेल ने शिक्षा को समाज परिवर्तन का सबसे प्रभावी हथियार माना। उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की:
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कृष्णा पटेल गर्ल्स कॉलेज (1997)
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सरदार पटेल इंटर कॉलेज (1991)
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डॉ. सोनेलाल पटेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल (1994)
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गोविंद प्रसाद रानी देवी बहुद्देशीय महाविद्यालय, कानपुर
राजनीति में प्रवेश और 'अपना दल' की स्थापना:
राजनीतिक संरक्षण के बिना सामाजिक न्याय संभव नहीं—इस बात को समझते हुए डॉ. पटेल ने 4 नवम्बर 1995 को 'अपना दल' की स्थापना की। उनका लक्ष्य था:
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सत्ता के माध्यम से व्यवस्था परिवर्तन
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सामाजिक समरसता का निर्माण
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पिछड़ों और दलितों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व
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किसानों-मजदूरों की प्रतिष्ठा और न्याय
प्रमुख आंदोलन और आयोजन:
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'राजभर-राजपासी रथ यात्रा' के माध्यम से हाशिए पर खड़ी जातियों को जोड़ने का प्रयास
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'बौद्ध धम्म' में दीक्षा (14-15 फरवरी 1999) — समता, करुणा और वैज्ञानिक सोच के पक्षधर के रूप में पहचान
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शिक्षा और राजनीति दोनों क्षेत्रों में समान ऊर्जा और प्रतिबद्धता
डॉ. पटेल पर जानलेवा हमला:
23 अगस्त 1999 को फूलपुर (इलाहाबाद) में लोकसभा चुनाव के नामांकन के बाद डॉ. सोनेलाल पटेल पर सुनियोजित हमले की कोशिश की गई। इस हमले के पीछे सत्ता प्रतिष्ठान की घबराहट थी, क्योंकि डॉ. पटेल के नेतृत्व में कमेरा समाज संगठित हो रहा था। लेकिन यह हमला उनके हौसले को डिगा नहीं सका।
निष्कर्ष:
डॉ. सोनेलाल पटेल केवल एक राजनेता नहीं, एक आंदोलन थे। वे सामाजिक क्रांति के वाहक थे। जिस प्रकार सरदार पटेल ने भारत को राजनीतिक रूप से एक किया, उसी प्रकार डॉ. सोनेलाल पटेल ने दलितों, पिछड़ों और वंचितों को राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से संगठित किया।
इसलिए डॉ. सोनेलाल पटेल को 'एक और लौहपुरुष' कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उनकी जयंती पर उन्हें शत-शत नमन।