जब ‘लौहपुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल के सामने हैदराबाद के निजाम को टेकने पड़े थे घुटने
भारत के भू राजनीतिक एकीकरण के सूत्रधार ‘लौहपुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की आज 144वीं जयंती है। आजादी के बाद बंटवारे के समय भारतीय रियासतों के विलय से स्वतंत्र भारत को नए रूप में गढ़ने वाले पटेल भारत के सरदार के रूप में जाने जाते हैं। वह अपने अदम्य साहस व प्रखर व्यक्तित्व के कारण ही भारत को एक धागे में पिरोने में कामयाब हो सके।
किसान परिवार में जन्मे पटेल ने लंदन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की, लेकिन मन मस्तिष्क पर महात्मा गांधी के विचारों का ऐसा असर हुआ कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अपने को समर्पित कर दिया। देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाने और उसे एक सूत्र में पिरोने में उनके योगदान के लिए 2014 से हर साल उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कश्मीर पर नेहरू नीति से नाखुश
कश्मीर छोड़ देश की सभी छोटी-बड़ी रियासतों के विलय का जिम्मा पटेल उठा रहे थे। कश्मीर मसले को उन्होंने कभी स्वतंत्र रूप से डील नहीं किया। कश्मीर का मसला जवाहर लाल नेहरू के पास था। कश्मीर को लेकर भारत के अंतिम वॉयसराय माउंटबेटन का मानना था कि अब यह विवाद दोनों देशों की आपसी बातचीत से नहीं सुलझने वाला है। इसलिए भारत संयुक्त राष्ट्र पर भरोसा करे। नेहरू इसके लिए तैयार हो गए। वहीं पटेल को इस पर आपत्ति थी लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। संघर्षविराम को मान लेने की वजह से जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया था और इससे भी पटेल खुश नहीं थे। अगर इस रियासत के विलय के जिम्मा पटेल पर होता तो इसकी ऐसी हालत नहीं होती। मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर इस ऐतिहासिक भूल का सुधार कर दिया है।
562 रियासतों का विलय कराने वाले सरदार
जब भारत आजाद हुआ तो उस समय देश में छोटी-बड़ी 562 रियासतें थीं। इन देशी रियासतों का स्वतंत्र शासन में यकीन था और यह सोच ही सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थी। सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उप प्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे। ब्रिटिश सरकार ने इन रियासतों को छूट दी थी कि वे स्वेच्छा से भारत या पाकिस्तान के साथ जा सकते हैं। या फिर स्वतंत्र अस्तित्व भी बनाए रख सकते हैं। यह अंग्रेजों की कुटिल चाल थी। उधर मोहम्मद अली जिन्ना इन रियासतों को पाकिस्तान में मिलाने के लिए प्रलोभन दे रहे थे। ऐसी विषम परिस्थिति में पटेल ने तबके वरिष्ठ नौकरशाह वीपी मेनन के साथ मिलकर नवाबों व राजाओं से बातचीत शुरू की। पटेल ने रियासतों के समक्ष प्रिवी पर्सेज के माध्यम से आर्थिक मदद देने का प्रस्ताव रखा। परिणाम हुआ कि आजादी के दिन तक अधिकतर रियासतों ने भारत में शामिल होने का निर्णय ले लिया। बच गए तो जूनागढ़, हैदराबाद व जम्मू-कश्मीर।
त्रावणकोर की कहानी
त्रावणकोर के दीवान ने घोषणा कर रखी थी कि महाराजा एक अलग देश बनाएंगे। महाराजा को अपने पास से एक बंदरगाह व यूरेनियम के भंडार छिन जाने का डर था। जिन्ना ने भी महाराजा से स्वतंत्र रिश्ते रखने का अनुरोध किया। इसी दौरान एक युवक ने त्रावणकोर के दीवान के चेहरे पर छुरे से वार कर दिया। डरे महाराजा 14 अगस्त को विलय पर राजी हो गए।
जूनागढ़ के नवाब की ना नुकुर
जूनागढ़ के नवाब महावत खान की रियासत का अधिकतर हिस्सा हिंदुओं का था। जिन्ना और मुस्लिम लीग के इशारे अल्लाबख्श को अपदस्थ करके यहां शाहनवाज भुट्टो को दीवान बनाया गया। जिन्ना नेहरू के साथ जूनागढ़ के बहाने कश्मीर की सौदेबाजी करना चाहते थे। 14 अगस्त, 1947 को महावत खान ने जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय का एलान किया, तब सरदार पटेल उखड़ गए। उन्होंने जूनागढ़ में सेना भेज दिया। जूनागढ़ की जनता ने भी नवाब का साथ नही दिया। इस बीच बढ़ते आंदोलन को देखकर नवाब महावत खान कराची भाग गया। आखिरकार नंवबर, 1947 के पहले सप्ताह में शाहनवाज भुट्टो ने जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय को खारिज कर उसके हिंदुस्तान में विलय की घोषणा कर दी। इस तरह 20 फरवरी, 1948 को जूनागढ़ देश का हिस्सा बन गया।
हैदराबाद के निजाम को घुटने के बल आना पड़ा
हैदराबाद देश की सबसे बड़ी रियासत थी। उसका क्षेत्रफल इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल से भी बड़ा था। हैदराबाद के निजाम अली खान आसिफ ने फैसला किया कि उनका रजवाड़ा न तो पाकिस्तान और न ही भारत में शामिल होगा। हैदराबाद में निजाम और सेना में वरिष्ठ पदों पर मुस्लिम थे लेकिन वहां की लगभग 85 प्रतिशत आबादी हिंदू थी। निजाम ने 15 अगस्त 1947 को हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया और पाकिस्तान से हथियार खरीदने की कोशिश में लग गए। तब पटेल ने ऑपरेशन पोलो के तहत सैन्य कार्रवाई का फैसला किया। 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने हैदराबाद पर हमला कर दिया। 17 सितंबर को हैदराबाद की सेना ने हथियार डाल दिए।
लक्षद्वीप समूह पर भारतीय ध्वज देख
पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए, लेकिन उन्हें वापस लौटना पड़ा।
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