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जब पंडित नेहरू से पूछा गया था सरदार पटेल से जुड़ा सवाल तो स्टूडियो में ही बैठ गए थे तत्कालीन पीएम!

दरअसल एक पुस्तक में अक्टूबर 1958 से 1960 के बीच नेहरू द्वारा दिये गए 19 साक्षात्कार हैं, जिसमें वे सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद और सुभाष चंद्र जैसे कई दिग्गजों के बारे में बात कर रहे हैं।

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का आज 130वां जन्मदिन है। पंडित नेहरू के जन्मदिन को देशभर में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि उन्हें बच्चों से काफी लगाव था और उन्हें बच्चे चाचा नेहरू भी कहते हैं। कल्पना कीजिये कि नेहरू आप के सामने बैठे हैं और आप को राजगोपालाचारी, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस से जुड़े किस्से सुना रहे हैं। आप की ये जिज्ञासा पूरी हो सकती है।

दरअसल एक पुस्तक में अक्टूबर 1958 से 1960 के बीच नेहरू द्वारा दिये गए 19 साक्षात्कार हैं, जिसमें वे सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद और सुभाष चंद्र जैसे कई दिग्गजों के बारे में बात कर रहे हैं। ये साक्षात्कार रामनारायण चौधरी ने लिए हैं। रामनारायण कोई पत्रकार नहीं थे वे राजस्थान के एक अनुभवी गांधीवादी थे शायद यही कारण है कि नेहरू ने उनसे बातचीत करते हुए खुले और स्पष्ट जवाब दिए।

एक साक्षात्कार में नेहरू ने पटेल के बारे में बात करते हुए उनके लिखने के तरीके की जमकर तारीफ की। इस किताब में छापे लेख के अनुसार नेहरू कहते थे कि सरदार का पूरा जीवन उनके विचारों, उनकी क्षमता और उनकी कार्य क्षमता का प्रतीक था, वे एक कड़े और सख्त अनुशासनवादी थे। नेहरू ने अपनी और सरदार पटेल की कार्यशैली के बीच एक दिलचस्प समानता पेश की। उन्होंने कहा कि आप तुलना कीजिये कि कांग्रेस गुजरात और उत्तर प्रदेश में कैसे काम करता है। उन्होंने गुजरात में एक ठोस संगठन बनाया जहां बहुत अधिक लचीलापन नहीं है। वहीं यूपी में किसी एक व्यक्ति का कांग्रेस पर नियंत्रण नहीं है।

नेहरू ने आगे कहाउत्तर प्रदेश में कम से कम 10 से 12 व्यक्ति थे जिनके पास कांग्रेस का नियंत्रण था। उनमें से सभी बराबर थे और वे बदलते रहे। गुजरात और बंगाल की तरह नहीं जहां दस साल तक एक ही व्यक्ति रहा। इस किताब में पटेल के अलावा नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस पर भी अपने विचार खुल कर रहे हैं। नेहरू ने नेताजी को लेकर कहासुभाष बाबू बहुत बहादुर आदमी थे। उनका मन भारत की स्वतंत्रता को लेकर विचारों से भरा था। कभी-कभी हमारे विचार मेल नहीं खाते थे। लेकिन यह उस समय शायद ही मायने रखता था।

नेहरू ने कहा उस समय गांधी को छोड़ना भारत के राजनीति छोड़ने जैसा था। अगर गांधी से वे सहमत नहीं थे तो बहस कर सकते थे गांधी भारत की ऐसी आवश्यकता थी ज्सिए अन्य किसी व्यक्ति द्वारा पूरी नहीं किया जा सकता था। लेकिन सुभाषबाबू को उसकी सलाह के मुताबिक काम करना जरूरी नहीं लगा। हमारे विचारों में यही अंतर था। वहीं सुभाषबाबू का झुकाव थोड़ा हिटलर कि तरफ था जिसका में विरोध करता हूं।

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