ददुआ: जब कुर्मी समाज का बेटा बना बीहड़ का बेताज बादशाह, जंगल से चलता था सत्ता का खेल

बीहड़ का आतंक, राजनीति का किंगमेकर: ददुआ डकैत की पूरी कहानी

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीहड़ों में दशकों तक दहशत का पर्याय रहा डकैत ददुआ, महज एक डकैत ही नहीं, बल्कि राजनीति का किंगमेकर भी था। चित्रकूट के देवकली गांव में जन्मे शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ ने पिता के अपमान और हत्या का बदला लेने के लिए बंदूक उठाई और बीहड़ों का रास्ता पकड़ लिया। इसके बाद ददुआ ने न सिर्फ खौफ का साम्राज्य खड़ा किया बल्कि बुंदेलखंड की राजनीति में भी अपनी धाक जमा ली।

कैसे बना डकैत से राजनीति का भाग्य विधाता

ददुआ ने अपने डकैती के गुर चंबल के चर्चित डकैत गया कुर्मी और राजा रगौली से सीखे। उनके गिरोह से शुरुआत करने वाला ददुआ धीरे-धीरे खुद का गिरोह बनाकर यूपी, एमपी में खौफ का दूसरा नाम बन गया। तेंदूपत्ता व्यापारियों से वसूली, अपहरण, फिरौती, हत्याएं उसकी पहचान बन गईं। उस पर करीब 600 आपराधिक मामले दर्ज थे।
राजनीति में भी ददुआ का दबदबा इतना था कि कहा जाता है, बुंदेलखंड की कई विधानसभा सीटों पर बिना उसकी सहमति के कोई चुनाव नहीं जीत सकता था। उसके इशारे पर नेताओं को टिकट मिलते और चुनावी जीत तय होती थी।

जंगल में मंदिर, जनता में भगवान

ददुआ ने फतेहपुर के नरसिंहपुर गांव में एक मंदिर भी बनवाया, जहां आज भी उसकी मूर्ति स्थापित है और लोग उसकी पूजा करते हैं। बीहड़ के इस डकैत को कई लोग 'रॉबिनहुड' मानते थे जो गरीबों की मदद करता था, शादियों में सहायता करता था और मजदूरों को कर्ज देता था।

ऑपरेशन ददुआ: STF ने किया खात्मा

2007 में यूपी एसटीएफ ने ऑपरेशन ददुआ के तहत ददुआ और उसके 5 साथियों को एनकाउंटर में मार गिराया। उसकी मौत के बाद भी उसका प्रभाव खत्म नहीं हुआ। बेटे वीर सिंह पटेल और भाई बालकुमार पटेल राजनीति में पहुंचे।

बीहड़ की विरासत

ददुआ के बाद ठोकिया, बलखड़िया जैसे कई डकैत आए और मारे गए। आज बुंदेलखंड का पाठा क्षेत्र काफी हद तक शांत हो चुका है, लेकिन ददुआ की कहानी आज भी बुंदेलखंड की राजनीति और बीहड़ों की दुनिया में एक किंवदंती बनी हुई है।