पत्नी की मौत का तार पढ़कर भी केस लड़ते रहे थे सरदार पटेल, जानें उनसे जुड़ी कुछ बातें
सरदार पटेल एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने आजादी के बाद और आजादी से पहले देश को एक ही धागे में पिरोने की भरपूर कोशिश की थी। 31 अक्टूबर 2019 को देश के पहले गृह मंत्री और लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की 144 वीं जयंती है। सरदार पटेल एक सिद्धांतवादी होने के साथ-साथ आदर्श ,निडर, साहसी, व्यक्तित्व के इंसान थे।
सरदार साहब ने कहा था कि बेशक कर्म पूजा है किन्तु हास्य जीवन है,जो कोई भी अपना जीवन बहुत गंभीरता से लेता है उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए। जो कोई भी सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है वास्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीता है। आज के युग में लोगों के लिए उनकी कही हुई ये बात खुशी से जीवन व्यतीत करने का मूल मंत्र साबित हो सकती है।
आइये जानते है सरदार पटेल के जीवन से जुड़ी कुछ बातें...
कहा जन्में थे सरदार पटेल
31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में सरदार पटेल का जन्म उनके ननिहाल में हुआ था। खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावरे भाई पटेल की चौथी संतान थे। उनके पिता एक किसान थे। बचपन से ही उन्होंने त्याग कर अपने जीवन को मजबूत बनाया था। वह अपने पिता के साथ खेती करते थे। कहा जाता है कि सरदार महीने में दो बार दिनभर का व्रत रखते थे।
गरीबी के बाद भी पढ़ाई से कोई समझौता नहीं
1893 में 16 साल की आयु में उनका विवाह झावेरबा के साथ कर दिया गया था। उन्होंने कभी अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के बीच में नहीं आने दिया। उन्होंने प्राइमरी शिक्षा कारमसद में ही प्राप्त की थी। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की, इसके बाद 1900 में जिला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिसके बाद उन्हें वकालत की। सरदार सहाब ने गोधरा में वकालत की प्रेक्टिस शुरू कर दी। 1902 में इन्होंने अपना वकालत का काम बोरसद में सिफ्ट कर लिया था जहां इन्होंने क्रिमिनल लॉयर के रूप में नाम कमाया।
जब मिला पत्नी की मृत्यु का तार
सरदार पटेल अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी, समर्पण व हिम्मत से साथ पूरा करते थे। इस बात अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, जब वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे तो उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु (11 जनवरी 1909) का तार मिला। पत्र को पढ़कर उन्होंने इस प्रकार अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दो घंटे तक बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया।
बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदार पटेल की पत्नी का निधन हुआ गया। तब उन्होंने सरदार से इस बारे में पूछा तो सरदार ने कहा कि “उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था” ऐसी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसे कलेजे की मिशाल इतिहास में विरले ही मिलती है।
1913 में बन गए थे बेरिस्टर
जुलाई 1910 में वल्लभ भाई पटेल ने इंगलैंड जाकर मिडल टेम्पल में लॉ की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया । यहां उन्होंने फर्स्ट रेंक हासिल की जिसके लिए उन्हें 50 पौंड इनाम भी मिला। 1912 में एग्जाम खत्म होने के दूसरे दिन ही भारत के लिए रवाना हो गए। 1912 में ही इनके बड़े भ्राता विठलभाई, बोम्बे काउंसिल के मेम्बर चुने गए।
जनवरी 1913 में मिडल टेम्पल के बेरिस्टर बन गए थे। इसके बाद भी वे अगले ही महीने 13 फरवरी को स्वदेश लौट आए। यहां आकर अहमदाबाद में इन्होंने प्रेक्टिस शुरु कर दी थी। मार्च 1914 में इनके पिता झावेरभाई का देहांत हो गया। 1915 में गुजरात सभा के सदस्य बने। 1917 में अहमदाबाद मुनिसिपलिटी के काउंसलर चुने गए तथा सिनेटरी व पब्लिक वर्क्स कमिटी के चेयरमेन भी बने।
इनके विचारों से प्रभावित थे सरदार पटेल
सरदार सहाब के दिल और दिमाग पर महात्मा गांधी के विचारों ने ऐसा असर किया, जिसके कारण इन्होंने सब कुछ छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
कैसे मिली सरदार की उपाधि
बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ था जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने किया था। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को 'सरदार' की उपाधि प्रदान की।
क्यों कहा जाता है लौह पुरुष और बिस्मार्क
देश के आजाद दोने के साथ ही इसका बंटवारा दो हिस्सों में हो चुका था। उस वजह से देश के कई हिस्सो में निराशा और आक्रोश था जिसे थामने का काम वल्लभ भाई पटेल ने किया और वो उसमें सफल भी हुए। सरदार वल्लभ भाई पटेल आजाद भारत के प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में इन्होंने सफलता पूर्वक केंद्रीय भूमिका निभाई थी और इसी वजह से इन्हें भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष कहा जाता है।
भारत रत्न से नवाजा गया
15 दिसंबर 1950 को सरदार साहह देश को हमेशा के लिए अलविदा कह चुके थे उनकी अंतिम संस्कार वहीं पर किया गया। उनके निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया, यह अवार्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल द्वारा स्वीकार किया गया था।