यूँ ही कोई लौह पुरुष थोड़ी बन जाता .... जतन, संघर्ष, समर्पण, राष्ट्र प्रेम की प्रतिमूर्ति ''सरदार पटेल''
सरदार वल्लभ भाई पटेल - आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है। इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये। यहाँ तक कि यदि हम हज़ारों की दौलत गवां दें। और हमारा जीवन बलिदान हो जाए, हमें मुस्कुराते रहना चाहिए और ईश्वर एवं सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए।
सरदार बल्लभ भाई पटेल राष्ट्रप्रेम तथा राष्ट्रभक्ति का वो चिराग जो भले ही दुनिया से चले गए हो लेकिन उनके ज्ञान तथा कर्तव्यनिष्ठा का प्रकाश पूरे भारतवर्ष को एकता के बंधन में बांधे हुए है। कहते है जीवन तो सभी जीते है लेकिन जीवन जीना और जीवन के अर्थ को समझकर जीना में फर्क होता है। त्याग का वो मिसाल जो सिर्फ देश की स्वंत्रता और एकता को अपना सर्वस्व मानता था। न कोई पद की लालसा न कोई स्वार्थ आँखें बंद हो तो सिर्फ राष्ट्र का अहसास इस किवदंती का जीवंत उदहारण पेश किया है सरदार बल्लभ भाई पटेल ने। आज उनकी जन्म जयंती है हम सभी राष्ट्रप्रेमी उन्हें नमन करते हैं और देश के लिए जो उनका योगदान है उसे अमर तथा अक्षुण बनाए रखने की संकल्प लेते हैं।
आइये उनके जीवन के बारे में कुछ बातें जानते हैं -
भारत के लौह-पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नादिद ग्राम में हुआ था। उनके पिता झवेरभाई पटेल एक साधारण किसान और माता लाड बाई एक साधारण महिला थी। बचपन से ही पटेल कड़ी महेनत करते आए थे, बचपन से ही वे परिश्रमी थे। खेती में बचपन से ही पटेल अपने पिता की सहायता करते थे और पेटलाद की एन.के. हाई स्कूल में पढ़ते थे। उन्होंने 1896 में अपनी हाई-स्कूल परीक्षा पास की। स्कूल के दिनों से ही वे हुशार और विद्वान थे। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उनके पिता ने उन्हें कॉलेज भेजने का निर्णय लिया था लेकिन वल्लभभाई ने कॉलेज जाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद लगभग तीन साल तक वल्लभभाई घर पर ही थे और कठिन महेनत करके जिले के नेता की परीक्षा पास करने की तैयारी कर रहे थे, और वह परीक्षा उन्होंने अच्छे गुणों से पास भी की थी। बाद में उन्होनें बड़ी मेहनत से बॅरिस्टरकी उपाधी संपादन कर ली। और साथ ही में देशसेवा में कार्य करने लगे।
वल्लभभाई पटेल एक भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे, और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेताओ में से एक थे और साथ ही भारतीय गणराज्य के संस्थापक जनको में से एक थे। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने देश की आज़ादी के लिये कड़ा संघर्ष किया था और देश को एकता के सूत्र में बांधने में उन्होंने काफी योगदान दिया था, उन्होंने भारत को एकता के सूत्र में बांधने और आज़ाद बनाने का सपना देखा था। भारत और दूसरी जगहों पर वे सरदार के नाम से भी जाने जाते है।
महात्मा गाँधी के प्रति सरदार पटेल की अटूट श्रद्धा थी। गाँधीजी की हत्या से कुछ क्षण पहले निजी रूप से उनसे बात करने वाले पटेल अंतिम व्यक्ति थे। उन्होंने सुरक्षा में चूक को गृह मंत्री होने के नाते अपनी ग़लती माना। उनकी हत्या के सदमे से वे उबर नहीं पाये। गाँधीजी की मृत्यु के दो महीने के भीतर ही पटेल को दिल का दौरा पड़ा था।
नेहरु और वल्लभ भाई पटेल के विचारों में फर्क -
नेहरू समाजवादी विचारों से प्रेरित थे। पटेल बिजनेस के प्रति नरम रुख रखने वाले खांटी हिन्दू थे। नेहरू से उनके सम्बंध मधुर थे, लेकिन कई मसलों पर दोनों के मध्य मतभेद भी थे। कश्मीर के मसले पर दोनों के विचार भिन्न थे। कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थ बनाने के सवाल पर पटेल ने नेहरू का कड़ा विरोध किया था। कश्मीर समस्या को सरदर्द मानते हुए वे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर मामले को निपटाना चाहते थे। इस मसले पर विदेशी हस्तक्षेप के वे ख़िलाफ़ थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव के पच्चीस वर्ष बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा था- “निस्संदेह बेहतर होता, यदि नेहरू को विदेश मंत्री तथा सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता। यदि पटेल कुछ दिन और जीवित रहते तो वे प्रधानमंत्री के पद पर अवश्य पहुँचते, जिसके लिए संभवत: वे योग्य पात्र थे।
उनके द्वारा कही गई कुछ बातें -
आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है। इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये। यहाँ तक कि यदि हम हज़ारों की दौलत गवां दें। और हमारा जीवन बलिदान हो जाए, हमें मुस्कुराते रहना चाहिए और ईश्वर एवं सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए।
स्वतंत्र भारत में कोई भी भूख से नहीं मरेगा। अनाज निर्यात नहीं किया जायेगा। कपड़ों का आयात नहीं किया जाएगा। इसके नेता ना विदेशी भाषा का प्रयोग करेंगे ना किसी दूरस्थ स्थान, समुद्र स्तर से 7000 फुट ऊपर से शासन करेंगे। इसके सैन्य खर्च भारी नहीं होंगे। इसकी सेना अपने ही लोगों या किसी और की भूमि को अधीन नहीं करेगी। इसके सबसे अच्छे वेतन पाने वाले अधिकारी इसके सबसे कम वेतन पाने वाले सेवकों से बहुत ज्यादा नहीं कमाएंगे। और यहाँ न्याय पाना ना खर्चीला होगा ना कठिन होगा।
यह हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है. हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिख या जाट है. उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ जिम्मेदारियां भी हैं।