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‘संभाजी महाराज’ जिन्होंने ‘औरंगज़ेब’ की नींद उड़ा दी थी l छत्रपति संभाजी महाराज का इतिहास l

हमारे इतिहास में ऐसे कई योद्धा हुए है, जिनका इतिहास जानकर हमारे शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते है। इन्हीं महान योद्धाओं में से एक थे संभाजी महाराज। छत्रपति संभाजी, छत्रपति शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। आज हम इन्हीं के बारे में जानकारी देने जा रहे है। आइये जानते है इनका गौरवान्वित करने वाले गौरवशाली इतिहास छत्रपति संभाजी महाराज का इतिहास के बारे में।

संभाजी महाराज का परिवार

संभाजी महाराज अपने परिवार में अपने माता-पिता, दादा-दादी और अपने भाई-बहनों के साथ रहते थे। संभाजी महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे और इनकी माता का नाम साईंबाई था। छत्रपति शिवाजी महाराज की तीन पत्नियां थी साईंबाई, सोयराबाई और पुतलाबाई। परिवार में अपने दादा शाह जी, दादी जीजाबाई, पिता शिवाजी, माता साईंबाई और उनके भाई-बहन के साथ रहते थे। संभाजी राजे के एक भाई भी थे, जिनका नाम राजाराम छत्रपति थे जो कि सोयराबाई के पुत्र थे। इनके अलावा इनकी बहनें अम्बिकाबाई, शकुबाई, रणुबाई जाधव, दीपाबाई, कमलाबाई पलकर और राज्कुंवरबाई शिरके थी। संभाजी राजे की शादी येसूबाई से हुआ था और इनके पुत्र का नाम छत्रपति साहू था।

संभाजी महाराज का जन्म और शिक्षा

संभाजी महाराज का जन्म पुरंदर किले में 14 मई 1657 को हुआ था। संभाजी महाराज का लालन-पोषण उनकी दादी जीजाबाई के द्वारा हुआ था। क्योंकि जब वे 2 वर्ष के हुए थे तो उनकी माता साईंबाई का देहांत हो गया था। संभाजी महाराज को छवा कहकर भी पुकारा जाता था। छवा का मराठी में अर्थ होता है शेर का बच्चा। संभाजी महाराज को संस्कृत और 13 अन्य भाषाओं का ज्ञान भी था। 9 साल की आयु में ही संभाजी राजे को अम्बेर के राजा जय सिंह के साथ रहने के लिये भेजा गया, ताकि वे मुगलों द्वारा 11 जून 1665 की धोखेबाजी को जान सके और उनके राजनैतिक दावों को समझ सके। घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवारबाजी उनको अच्छे से आती थी और संभाजी ने कई शास्त्र भी लिखे थे।

छत्रपति शिवाजी महाराज से कड़वे सम्बन्ध

छत्रपति संभाजी महाराज और छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच में अच्छे सम्बन्ध नहीं थे। उनकी आपस में कम ही बनती थी। उनकी सौतेली माता सोयराबाई अपने पुत्र छत्रपति राजाराम को उतराधिकारी बनाना चाहती थी, जिसके कारण शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के बीच में सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते थे।

संभाजी महाराज ने कई बार अपनी बहादुरी भी दिखाई पर शिवाजी महाराज को उन पर विश्वास नहीं हो पा रहा था। एक बार शिवाजी महाराज ने संभाजी महाराज को सजा भी सुनाई थी, जिससे बचकर संभाजी भागकर मुगलों से मिल गये थे। यह समय शिवाजी के लिए मुश्किल का हो गया था। बाद में मुगलों की हिन्दूओं के प्रति अत्याचार देख उन्होंने मुगलों का साथ छोड़ दिया और उनको अपनी गलती का अहसास हुआ। फिर शिवाजी से माफ़ी मांगने चले आये।

संंभाजी महाराज की रचना

संभाजी महाराज ने अपनी 14 साल की उम्र में बुधभूषणम, नायिकाभेद, सातशातक और नखशिखान्त जैसे संस्कृत ग्रन्थ की रचना की थी।

छत्रपति संभाजी महाराज का पहला युद्ध

संभाजी महाराज ने अपना पहला युद्ध 16 साल की उम्र में लड़ा था और उस युद्ध पर विजय भी हासिल की थी। यह युद्ध में इन्होने 7 किलो की तलवार के साथ लड़ा था। 1681 में जब शिवाजी महाराज का देहांत हो गया था। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनके सबसे बड़े दुश्मन औरंगजेब को तहस नहस करने के लिए चल पड़े।छत्रपति संभाजी महाराज ने 9 साल में अपने जीवन की 120 लड़ाईयां लड़ी थी। लेकिन किसी भी लड़ाई में उनको पराजय का सामना नहीं करना पड़ा। वे सभी लड़ाईयां विजय कर चुके थे।

शिवाजी राजे का देहांत और संकट की घड़ी

जब शिवाजी का देहांत हुआ तो मराठों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, उस समय औरंगजेब इनका सबसे बड़ा दुश्मन था। उसको लगा कि अब शिवाजी के बाद उनका बेटा उसके सामने ज्यादा समय तक नहीं रह सकता। फिर औरंगजेब 1680 में दक्षिण पठार की तरफ आया।

औरंगजेब के साथ 50 लाख की सेना और 400,000 जानवर थे। 1682 में रामसेई दुर्ग को मुगलों ने घेरने की 5 महीने तक कोशिश की। लेकिन वो इस काम में सफल नहीं हो सके और बाद में 1687 में वाई के युद्ध में मुगलों की सेना के आगे मराठा के सेनिक कमजोर पड़ने लग गये और इस बीच संभाजी संघमेश्वर में 1689 फ़रवरी को मुगलों के हाथ लग गये।

संभाजी की कवि कलश से मित्रता

ब्राह्मण कवि कलश संभाजी के मित्र थे, जो आगे चलकर उनके राज्य शासन के दौरान उनके सलाहकार बने थे। संभाजी की मुलाकात कलश से तब हुई जब बचपन में एक बार मुगल शासक औरंगजेब की कैद से बचकर भाग रहे थे। दरअसल संभाजी की सौतेली मां अपने बेटे राजा राम को राजा बनाना चाहती थी और उसके चाह में वह हमेशा शिवाजी के मन में संभाजी के प्रति घृणा जागृत करते रहती थी, जिससे बहुत ही जल्द शिवाजी और संभाजी के बीच अविश्वास पैदा होना शुरू हो गया।

इसी कारण बस एक बार शिवाजी ने संभाजी को कारावास में डाल दिया था, जहां से वे भाग निकले और मुगलों से जा मिले। लेकिन जब उन्हें वहां मुगलों के द्वारा हिंदुओं के ऊपर किए जाने वाले अत्याचार और क्रूर व्यवहार के बारे में पता चला तो वहां से भी भाग निकले और शिवाजी के दूर के मंत्री रघुनाथ कोर्डे के दूर के रिश्तेदार के यहां कुछ समय के लिए रुक गए। संभाजी वहां पर करीब 1 से डेढ़ साल तक रुके थे, जिस दौरान वे वहां पर एक ब्राह्मण बालक के रूप में रह रहे थे और उसी दौरान उन्होंने वहां पर संस्कृत भी सिखा था। यहीं पर संभाजी का कवि कलश से परिचय होता है और फिर वे मित्र बन जाते हैं।

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