चलिए आपको उस 13 तारीख की यात्रा भी कराते हैं
सरदार देश को समर्पित
13 अप्रेल का दिन था वह। शायद हमारे इतिहास में इस तारीख को किसी यादगार प्रसंग के लिए याद नहीं किया जाता होगा, लेकिन यदि गुजरात के नजरिए से यह तारीख ऐतिहासिक दिन से कम नहीं है। यह वह इस है, जब बारह दरवाजों वाले अहमदाबाद शहर ने देश को ‘सरदार' सौंपा था। हालांकि इस शहर को भी यह इल्म नहीं था कि उसका ‘पहला नागरिक' वल्लभभाई पटेल यहां से निकल कर देश का ‘सरदार' बन जाएगा। कहना होगा कि यदि पटेल अहमदाबाद से रुखसद न होते, तो ‘सरदार' न होते।
और पटेल सरदार बन गए जी हां!
यहां बात 13 अप्रेल, 1928 की हो रही है। हमारे इतिहास में शायद ही इस तारीख और दिन को इतना महत्व दिया गया होगा, लेकिन अहमदाबाद के नजरिए से यह दिन कोई आम दिन नहीं था। यह वही दिन था, जब वल्लभभाई पटेल ने अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था और बारडोली के लिए रवाना हुए थे। बारडोली सत्याग्रह को पटेल ने जो नेतृत्व प्रदान किया, उसने अंग्रेज सरकार को अचरज में डाल दिया। बारडोली के किसानों ने अपनी जीत का श्रेय अपने ‘सरदार' को दिया और यहीं से वल्लभभाई पटेल ‘सरदार पटेल' बन गए।
सुकून है गुजरात को
हमारे इतिहासकारों ने ज्यादातर शोध ‘सरदार पटेल' पर किए हैं, लेकिन एक आम व्यक्ति यानी ‘वल्लभभाई पटेल' के रूप में उनके योगदान का बहुत ज्यादा बखान नहीं मिलता। शायद इसीलिए 13 अप्रेल को किसी ऐतिहासिक दिन के रूप में याद नहीं किया जाता, लेकिन विचारणीय यह है कि यदि पटेल अहमदाबाद नगरपालिका का अध्यक्ष पद न छोड़ते, तो वे ‘सरदार' भी न होते। बारडोली सत्याग्रह को नेतृत्व देने के लिए जब उनकी जरूरत आन पड़ी, तो पटेल ने 13 अप्रेल, 1928 यानी ठीक पचासी साल पहले अहमदाबाद नगरपालिका का अध्यक्ष पद छोड़ा था। अहमदाबाद को पटेल की कमी शायद आज भी खलती होगी, लेकिन अहमदाबाद ही नहीं, समग्र गुजरात को सुकून इस बात का है कि उसने देश को पटेल नहीं, बल्कि सरदार सौंपा था।
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