एक वोट के बल पर दिखाई सरदारी

हम बात कर रहे हैं लौह पुरुष सरदार पटेल की, जिनकी आज पुण्यतिथि है। चुनाव के इस मौसम में सरदार पटेल की पुण्यतिथि के आने से उनकी सरदार बनने से पहले की सरदारी अनायास ही याद आ जाती है। मात्र एक वोट के बल पर वल्लभभाई पटेल ने चुनाव जीत कर सरदार की उपाधि मिलने से पहले ही खुद को सरदार साबित कर दिखाया था।
अपने मत से प्रतिद्वंद्वी को जिताया
इतिहासविद् प्रो. रिजवान कादरी की मानें, तो वल्लभभाई पटेल ‘सरदार' से पहले भी ‘सरदार' से कम नहीं थे। उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन अहमदाबाद से शुरू किया था। कहने को एक वोट की कोई अहमियत नहीं होती, लेकिन इसी एक वोट ने पटेल को एक बार नहीं, दो बार ‘सरदार' साबित कर दिखाया। पटेल ने अपना पहला चुनाव अहमदाबाद के दरियापुर वार्ड से 5 जनवरी, 1917 को लड़ा। इस उप चनाव में पटेल ने बैरिस्टर मोहियुद्दीन नरमावाला को महज एक वोट से मात दी। यह बात ओर है कि 26 मार्च को अदालत ने इस उप चुनाव को रद्द कर दिया। दोबारा हुए चुनाव में पटेल निर्विरोध निर्वाचित हुए। पटेल अहमदाबाद नगरपालिका के पार्षद के रूप में 5 जनवरी, 1917 से 14 जुलाई, 1929 तक और अध्यक्ष के रूप में 9 फरवरी, 1924 से 18 अक्टूबर, 1927 व 22 अक्टूबर, 1927 से 13 अप्रेल, 1928 तक रहे। अध्यक्ष के रूप में भी पटेल ने एक बार अपने एक वोट यानी कास्टिंग वोट का इस्तेमाल खुद के लिए नहीं किया। 1 नवम्बर, 1926 को स्थायी समिति के अध्यक्ष के चुनाव के लिए मतदान हुआ। इस पद के लिए पटेल भी उम्मीदवार थे। मतदान में पटेल व उनके प्रतिद्वंद्वी दोनों को समान मत मिले। पटेल चाहते, तो अपना कास्टिंग वोट खुद को दे सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और अपना वोट प्रतिद्वंद्वी को देकर जिताया। पटेल ने अहमदाबाद शहर को बहुत कुछ दिया था, जो एक सरदार ही दे सकता था।
अहमदाबाद ने देश को सौंपा सरदार
तेरह अप्रेल, 1928। शायद हमारे इतिहास में इस तारीख को किसी यादगार प्रसंग के लिए याद नहीं किया जाता होगा, लेकिन यदि अहमदाबाद के नजरिए से यह तारीख ऐतिहासिक दिन से कम नहीं है। यह वही तारीख है, जब बारह दरवाजों वाले इस शहर ने देश को ‘सरदार' सौंपा था। हालांकि इस शहर को भी यह इल्म नहीं था कि उसका ‘पहला नागरिक' वल्लभभाई पटेल यहां से निकल कर देश का ‘सरदार' बन जाएगा। कहना होगा कि यदि पटेल अहमदाबाद से रुखसद न होते, तो ‘सरदार' न होते।
जी हां! यहां बात 13 अप्रेल, 1928 की हो रही है। हमारे इतिहास में शायद ही इस तारीख और दिन को इतना महत्व दिया गया होगा, लेकिन अहमदाबाद के नजरिए से यह दिन कोई आम दिन नहीं था। यह वही दिन था, जब वल्लभभाई पटेल ने अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था और बारडोली के लिए रवाना हुए थे। बारडोली सत्याग्रह को पटेल ने जो नेतृत्व प्रदान किया, उसने अंग्रेज सरकार को अचरज में डाल दिया। बारडोली के किसानों ने अपनी जीत का श्रेय अपने ‘सरदार' को दिया और यहीं से वल्लभभाई पटेल ‘सरदार पटेल' बन गए। हमारे इतिहासकारों ने ज्यादातर शोध ‘सरदार पटेल' पर किए हैं, लेकिन एक आम व्यक्ति यानी ‘वल्लभभाई पटेल' के रूप में उनके योगदान का बहुत ज्यादा बखान नहीं मिलता। शायद इसीलिए 13 अप्रेल को किसी ऐतिहासिक दिन के रूप में याद नहीं किया जाता, लेकिन विचारणीय यह है कि यदि पटेल अहमदाबाद नगरपालिका का अध्यक्ष पद न छोड़ते, तो वे ‘सरदार' भी न होते। बारडोली सत्याग्रह को नेतृत्व देने के लिए जब उनकी जरूरत आन पड़ी, तो पटेल ने 13 अप्रेल, 1928 यानी ठीक अस्सी साल पहले अहमदाबाद नगरपालिका का अध्यक्ष पद छोड़ा था। अहमदाबाद को पटेल की कमी शायद आज भी खलती होगी, लेकिन अहमदाबाद को सुकून इस बात का है कि उसने देश को पटेल नहीं, बल्कि सरदार सौंपा था।
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