कक्षा 6 में पढ़ने के दौरान किया था आंदोलन....जानिए सरदार पटेल के अनसुने किस्से और देखिए अनदेखी तस्वीरें....
सरदार पटेल का शुरुआती जीवन काफी कठिन था। वह एक गरीब किसान परिवार से संबंध रखते थे और खेतों में अपने पिता का हाथ बंटाते थे। इसी वजह से 22 साल की उम्र में वह 10वीं की परीक्षा पास कर पाए। कॉलेज की पढ़ाई भी उन्हें घर पर ही करनी पड़ी।
सरदार वल्लभभाई पटेल की आज पुण्यतिथि है। 15 दिसंबर 1950 को उन्होंने मुंबई में अंतिम सांसें लीं। उनका निधन ह्रदय गति थमने के कारण हुआ था। कहा जाता है कि सरदार पटेल को महात्मा गांधी से बड़ा लगाव था। गांधी जी की हत्या की खबर सुनकर उन्हें सदमा लगा और वह बीमार रहने लगे। इसके बाद हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। मरणोपरांत वर्ष 1991 में सरदार पटेल को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न दिया गया था। देखिए सरदार पटेल की अनदेखी तस्वीरें...
सरदार पटेल, मां लाडबाई के थे सबसे लाडले
सरदार पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा पटेल (पाटीदार) जाति में हुआ था। वह झवेरभाई पटेल एवं लाडबाई देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। सबसे छोटे होने के कारण उन्हें बहुत लाड-प्यार मिला।
6वीं कक्षा में खड़ा किया आंदोलन
सरदार पटेल की प्रारंभिक शिक्षा मुख्यत स्वाध्याय से ही हुई। 1893 की बात है। गुजरात के नाडियाड के एक स्कूल में बच्चे अपने एक टीचर से बहुत डरते थे। एक दिन कक्षा 6 में एक बच्चे को उस टीचर ने डांटकर कक्षा से बाहर निकाल दिया क्योंकि वह देरी से आने का जुर्माना नहीं लाया था। बच्चे के समर्थन में सरदार पटेल खड़े हुए और टीचर से जाते ही बच्चों को एकजुट होकर टीचर के खिलाफ लड़ने को प्रेरित किया। पूरी क्लास ने टीचर का बहिष्कार किया, आखिर टीचर सो माफी मांगनी पड़ी थी।
30 महीने में ही पूरा कर लिया था बैरिस्टर एट लॉ का कोर्स
लंदन जाकर सरदार पटेल ने बैरिस्टर की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। सरदार पटेल की कुशाग्र बुद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 36 साल की उम्र में वह वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए थे और उन्होंने 36 महीने का कोर्स सिर्फ 30 महीने में पूरा कर लिया था।
नेहरू हुए नाराज को देश बचाने के लिए सरदार पटेल ने छोड़ दिया था पद
1946 में चुनाव हुए और देशभर में 15 राज्यों में कांग्रेस को विजय मिली। कांग्रेस अध्यक्ष पद अब अचानक महत्वपूर्ण हो गया। 1940 से मौ. अबुल कलम आज़ाद ही अध्यक्ष बने हुए थे। दूसरे विश्व युद्ध, भारत छोड़ो आंदोलन, अनेक कांग्रेस नेताओं के जेल में होने से 6 वर्षों से अध्यक्ष पद का चुनाव ही नहीं हुआ था। आज़ाद बने रहना चाहते थे, लेकिन गांधी ने उन्हें मना कर दिया। गांधी का रुख देखकर राजाजी, कृपलानी भी शांत हो गए। अंत में दो ही लोग, पटेल और नेहरू मैदान में रह गए। महात्मा गांधी के पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रति लगाव के बावजूद किसी भी कांग्रेस कमिटी ने 1946 में नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया। दूसरी ओर सरदार पटेल का नाम पूरे बहुमत के साथ प्रस्तावित किया गया। नेहरू ने साफ कर दिया कि वह किसी के मातहत काम नहीं करेंगे। गांधी जी को लगा कि कहीं नेहरू कांग्रेस को तोड़ न दें इससे अंग्रेजों को भारत को आजाद न करने का बहाना मिल सकता है। सरदार पटेल के मन में गांधी जी के लिए बेहद इज्जत थी, इसलिए उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया
1918 में किया था खेड़ा संघर्ष
स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेड़ा खंड (डिविजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।
पत्नी के मौत की सूचना के बाद भी नहीं रोकी कोर्ट की बहस
1908 में पटेल की पत्नी की मृत्यु हो गई। वल्लभभाई पटेल को पत्नी की मृत्यु की सूचना तब मिली, जब वह कोर्ट में बहस कर रहे थे। शोक समाचार मिलने के बाद भी उन्होंने किसी को अपना दुख जाहिर नहीं किया और बहस जारी रखी। पत्नी की मृत्यु के समय उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी लेकिन उन्होंने आगे का जीवन विधुर की तरह व्यतीत किया।
लगान की वृद्धि के खिलाफ किसान आंदोलन, ऐसे मिली सरदार की उपाधि
बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की।