और वल्लभ बन गए ‘सरदार ऑफ नेशन’
अमारी जीत अमारा सरदारने आभारी छे अने अमारा सरदार वल्लभभाई पटेल छे.' महात्मा गांधी सन् 1928 में बारडोली सत्याग्रह में किसानों की जीत के बाद जब वहां पहुंचे, तो महिलाओं ने उनसे कहा कि उनकी जीत का श्रेय उनके सरदार को जाता है और उनके सरदार वल्लभभाई पटेल हैं। महिलाओं की यह बात सुनते ही गांधीजी तुरंत बोल उठे, ‘‘वल्लभभाई तुम्हारे सरदार हैं न? तो अब वे पूरे देश के सरदार होंगे।''
बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद गांधीजी बारडोली पहोंचे और जब वहाँ की महिलाओं ने अपनी जीत का श्रेय अपने सरदार वल्लभभाई पटेल को दिया, तो गांधीजी ने वल्लभभाई को देश देश का सरदार घोषित कर दिया। गांधीजी के इस कथन के साथ ही वल्लभ बन गए सरदार। गांधीजी के साथ विचारधारा के मुद्दे पर अक्सर अलग दिखाई देने वाले सरदार पटेल ने गांधीजी की ओर से उन्हें ‘देश का सरदार' घोषित किए जाने को सार्थक ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
प्रधानमंत्री की कुर्सी तक ले जाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष पद से रहे दूर
स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष पद कई बार पटेल के हाथ आते-आते रह गया। पटेल को कथित रूप से मुस्लिमों के प्रति सख्त माना जाता था। गांधीजी कभी नहीं चाहते थे कि पटेल जैसे कथित कट्टïर व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर बैठाया जाए। गांधीजी ने हर बार पटेल पर अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर रहने के लिए दबाव बनाया और वे सफल भी रहे। इस प्रकार गांधीजी ने पटेल को देश का सरदार तो घोषित किया, लेकिन जब-जब सरदार बनने की बारी आई, उन्हें रोक दिया गया।
गांधीजी के स्वतंत्रता संग्राम को हिन्दू-मुस्लिम एकता से जोड़ कर देखने के सिद्धांत को खारिज करने वाले पटेल ने कभी किसी पद की लालसा नहीं रखी, जबकि वे जानते थे कि कांग्रेस अध्यक्ष ऐसा पद है, जो भारत की स्वतंत्रता के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी तक ले जाएगा। हुआ भी यही। 1947 में भारत जब स्वतंत्र हुआ, तो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू को ही अंतरिम सरकार के गठन के लिए बुलाया गया।
देश में आजादी का जश्न, सरदार थे चिंतित
हालांकि पटेल ने खुद को मिली सरदार की उपाधि को कभी भी निरर्थक नहीं होने दिया। उन्होंने इस उपाधि को सार्थक करने के लिए किसी पद को अनिवार्य नहीं होने दिया। यही कारण है कि जब स्वतंत्रता मिली, तो पूरा देश जश्न मना रहा था, लेकिन पटेल को चिंता थी अखंड भारत के निर्माण की। देश के साढ़े पांच सौ से अधिक रजवाड़ों को भारतीय संघ में मिलाने की जिम्मेदारी उन्हें निभानी थी, उन्होंने अपनी कुशाग्रता और दृढ़ता के बल पर 562 रजवाड़ों का भारतीय संघ में विलय करा कर वास्तव में ‘सरदार' की उपाधि को सार्थक कर दिखाया, लेकिन उनका मन शांत नहीं था। इतना सब कुछ कर लेने के बाद भी मानो लग रहा था बहुत कुछ बाकी है। भारत का मस्तक कश्मीर, भुजा जूनागढ़ और चरण यानी हैदराबाद अभी भी कराह रहे थे। सम्पूर्ण भारत का मानचित्र अभी तैयार होना बाकी था। अदम्य साहस और सरदार शब्द को सार्थक करते हुए पटेल ने यह काम भी कर दिखाया।