पुस्तक समीक्षा : फणीश्वर नाथ 'रेणु' द्वारा रचित 'मैला आँचल'

प्रकाशन वर्ष: 1954

विधा: आंचलिक उपन्यास

भाषा: हिंदी (मैथिली-हिंदी मिश्रित)

परिचय

"मैला आंचल" फणीश्वरनाथ रेणु का प्रथम और अत्यंत प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है। इस उपन्यास ने हिंदी साहित्य में एक नई धारा को जन्म दिया, जिसे "आंचलिक उपन्यास" कहा जाता है। रेणु ने इस उपन्यास के माध्यम से गाँव की सरल और जटिल जिंदगी, वहाँ की राजनीति, संस्कृति और सामाजिक ढांचे को सजीव रूप में प्रस्तुत किया है। इस उपन्यास की शैली सहज है और पूरे उपन्यास में प्रवाह बना रहता है। रेणु  जी ने दो लोगों में संवाद की शैली का प्रयोग कम करते हुए प्रश्नोत्तर विधा का प्रयोग कहीं अधिक किया है। ” पूरे उपन्यास में लोकगीतों का जमकर प्रयोग किया गया है जिनमे संयोग, वियोग, प्रकृति प्रेम इत्यादि भाव व्यक्त किये गए हैं। वाद्य यंत्रों की आवाज को रेणु जी ने जगह-जगह प्रयोग किया है और ये आवाजें कई बार कथानक बदलने के लिए इस्तेमाल की गई हैं।

कहानी की पृष्ठभूमि:

उपन्यास की पृष्ठभूमि बिहार का पूर्णिया जिला है, जो ऐतिहासिक रूप से मिथिला क्षेत्र का ही हिस्सा है। यह कहानी एक काल्पनिक गाँव मेरीगंज पर आधारित है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के बाद के सामाजिक बदलावों के दौर को चित्रित करती है।

मुख्य पात्र:

डॉक्टर प्रशांत: एक आदर्शवादी और त्यागमयी डॉक्टर, जो गाँव में आकर ग्रामीणों की सेवा में लग जाता है।

तारिणी मास्टर: गाँव का शिक्षक, जो आधुनिक विचारों वाला है और शिक्षा के प्रति समर्पित है।

लछमी: गाँव की एक सीधी-सादी ग्रामीण युवती, जिसकी कहानी उपन्यास को भावनात्मक गहराई प्रदान करती है।

ब्रम्हचारी जी: धार्मिक गुरु, जो अंधविश्वास और पुरानी परंपराओं के समर्थक हैं।

कहानी की रुपरेखा:

स्वास्थ्य समस्याएँ: उपन्यास की शुरुआत डॉक्टर प्रशांत के मरीजपुर गाँव आने से होती है। वह गाँव में फैले रोग, अशिक्षा और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने की ठान लेता है।

राजनीतिक संघर्ष: कहानी स्वतंत्रता संग्राम के समय की है, जहाँ ग्रामीण स्वतंत्रता सेनानी और अंग्रेजी हुकूमत के बीच संघर्ष करते हैं।

जाति और वर्ग विभाजन: उपन्यास में ग्रामीण समाज की जातिगत संरचना, आर्थिक विषमता और सामाजिक कुरीतियों का जीवंत चित्रण किया गया है।

प्रेम और बलिदान: लछमी और डॉक्टर प्रशांत के बीच का निस्वार्थ प्रेम, गाँव की जीवनशैली और उसकी त्रासदियों को दर्शाता है।

मुख्य विषयवस्तु और संदेश

1. आंचलिकता का चित्रण:

रेणु ने गाँव के जीवन, बोली-बानी, परंपराओं, त्यौहारों और सांस्कृतिक विविधताओं को बड़े ही सजीव और यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया है। उपन्यास में मिथिला क्षेत्र के गीत, लोककथाएँ और बोलचाल को प्रमुखता दी गई है।

2. सामाजिक विषमता और अन्याय:

उपन्यास में सामाजिक भेदभाव, जातिगत शोषण और ग्रामीण समाज की कमजोरियों का सटीक चित्रण किया गया है। यह कहानी ग्रामीण भारत के उस यथार्थ को सामने लाती है, जो स्वतंत्रता के बाद भी नहीं बदल पाया था।

3. अंधविश्वास और कुरीतियाँ:

रेणु ने ग्रामीण समाज में फैले अंधविश्वास और रूढ़ियों को उजागर किया है। ब्रम्हचारी जी जैसे पात्र इन कुरीतियों के प्रतिनिधि हैं, जबकि डॉक्टर प्रशांत नई सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रतीक हैं।

4. स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव:

"मैला आंचल" में स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद की सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों को बड़े ही प्रभावी ढंग से दिखाया गया है। गाँव के लोग आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेते हैं, लेकिन आजादी के बाद भी उनकी हालत में कोई खास बदलाव नहीं आता।

5. मानवतावाद और संवेदनशीलता:

डॉक्टर प्रशांत का चरित्र मानवीय मूल्यों और संवेदनशीलता का प्रतीक है। वह बिना किसी भेदभाव के सभी की सेवा करता है, जो एक आदर्श समाज की कल्पना को दर्शाता है।

शैली और भाषा

रेणु ने "मैला आंचल" में मैथिली, अंगिका और हिंदी भाषा का मिश्रण किया है, जिससे पाठकों को गाँव के परिवेश की वास्तविकता का अनुभव होता है। उन्होंने गाँव की स्थानीय बोलियों और मुहावरों का प्रचुर प्रयोग किया है, जो उपन्यास को एक अनूठा आंचलिक स्वरूप प्रदान करता है।

प्रभाव और महत्व

"मैला आंचल" हिंदी साहित्य का मील का पत्थर माना जाता है। इस उपन्यास ने आंचलिक साहित्य को मुख्यधारा में स्थान दिलाया और गाँव की समस्याओं को राष्ट्रीय पटल पर लाने का कार्य किया। रेणु का यह उपन्यास न केवल सामाजिक दस्तावेज है, बल्कि भारतीय ग्रामीण जीवन की संवेदनशील और सजीव तस्वीर भी प्रस्तुत करता है।

"मैला आंचल" आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना कि अपने समय में था। यह हमें हमारे ग्रामीण समाज की वास्तविकताओं से परिचित कराता है और उन मूल्यों की याद दिलाता है, जो हमें एक बेहतर समाज की ओर ले जाते हैं।