कहानी बीहड़ के बागी ददुआ की जिसने जंगल में बैठे-बैठे बनवा दी यूपी की सरकारें

ददुआ को उत्तर भारत का वीरप्पन कहा जाता था।

आज बात बीहड़ के उस बागी की जिसने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए हथियार उठा लिए। नाम था शिवकुमार पटेल। जिसे यूपी के बुंदेलखंड सहित एमपी के विंध्य इलाके में ददुआ नाम से जाना गया। तीन दशकों तक ददुआ का राज पाठा के जंगलों में कायम रहा। ददुआ ने जंगल में बैठे-बैठे ही बंदूक की दम पर वोट जुटाए फिर जिसे चाहा उसे यूपी में सत्ता दिला दी।

यूपी के चित्रकूट के देवकली गांव में जन्में शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ ने सबसे पहले 1975 में अपराध को अंजाम दिया था। ददुआ ने हथियार अपने पिता के अपमान हत्या का बदला लेने के लिए उठाए थे। बताते हैं कि उसके पिता को पड़ोसी गांव के दबंग ने गांव में निर्वस्त्र कर घुमाया था फिर बाद में उनकी हत्या कर दी थी। पिता की हत्या के बाद यह पहली और आखिरी बार था जब ददुआ को 16 मई, 1978 को गिरफ्तार किया गया था।

ददुआ जब जेल से छूटा तो फिर तीन दशकों तक उसे जिंदा नहीं पकड़ा जा सका। चंबल के बीहड़ में पहुंचने पर ददुआ, खूंखार डकैत राजा रागोली और गया कुर्मी उर्फ बाबा के साथ चार साल तक डकैती और तेंदू पत्तों के कारोबार की बारीकियां सीखता रहा। वहीं जब साल 1983 में, राजा रागोली की हत्या कर दी गई तो गया कुर्मी ने आत्मसमर्पण कर दिया। अब डाकू रागोली के गिरोह का नेतृत्व डाकू सूरज भान और ददुआ दोनों मिलकर करने लगे।

साल 1984 आते-आते सूरज भान की गिरफ्तारी के बाद गया कुर्मी के इशारे पर ददुआ ने अपना गिरोह बना लिया। ददुआ, 20 जून, 1986 को चर्चा में तब आया जब रामू का पुरवा गांव में उसने नौ लोगों को मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि उसे शक था कि वह लोग उसकी मुखबिरी कर रहे थे। वहीं, साल 1992 में भी मड़ैयन गांव में 3 लोगों की हत्या के बाद गांव को उसने आग के हवाले कर दिया था।

साल 1992 में ददुआ एक बार फतेहपुर के नरसिंहपुर कर्बहा गांव में पुलिस के चंगुल में फंस गया और बचने की संभावना कम थी। इत्तेफ़ाक से इस बार किस्मत का धनी रहा और साथियों के मारे जाने के बाद भी वह बच निकला। बाद में इसी गांव में उसका मंदिर भी बनवाया गया, जहां ददुआ की मूर्ति आज भी लगी है।

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, ददुआ पर 400 मामले दर्ज थे, जिनमें 200 डकैती, अपहरण और 150 हत्याएं शामिल थीं। साथ ही ददुआ का आतंक चित्रकूट से झांसी और मध्य प्रदेश के जबलपुर तक फैला था। माना जाता है कि गया कुर्मी उर्फ बाबा ने ही ददुआ को जाति के आधार पर काम करने और राजनीतिक समर्थन हासिल करने के महत्व का एहसास कराया था।

अपने राजनीतिक गुरु के दिखाए रास्ते पर चलकर ही ददुआ ने खुद को एक किंगमेकर बनाया, क्योंकि गरीब, शोषित और वंचित समाज में उसकी इमेज रॉबिनहुड की रही। बताया जाता है कि ददुआ के 500 गांवों में ग्राम प्रधान थे और उसका प्रभाव करीब 10 लोकसभा सीटों और दर्जनों विधानसभा क्षेत्रों तक था। आलम यह था बुंदेलखंड में चुनाव कोई भी उसके समर्थन के बिना नहीं जीत सकता था। वहीं, ददुआ के खौफ का फायदा यूपी के राजनीतिक दलों ने भी उठाया।

ददुआ ने बंदूक की दम पर जहां कभी बसपा की सरकार बनवाई तो कभी बसपा से नाराज चल रहे ददुआ का सपा ने फायदा उठाया। हालांकि, ददुआ कभी खादी पहन नेता नहीं बन पाया लेकिन भाई बालकुमार पटेल जहां मिर्जापुर से सांसद बनें तो वहीं बेटा वीर सिंह पटेल भी कर्वी से विधायक बना। बहू जिला पंचायत अध्यक्ष भी रही तो वहीं भतीजा भी पट्टी से विधायक बना।

हालांकि, सियासत में ददुआ की बढ़ती अति महत्वाकांक्षा ही उसे ले डूबी और मानिकपुर थाना क्षेत्र के आल्हा गांव के पास झालवाल में 22 जुलाई 2007 में पुलिस और एसटीएफ के एनकाउंटर में 6 लाख के इनामी ददुआ को मार गिराया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मुठभेड़ में शामिल एसटीएफ टीम के लिए 10 लाख रुपये के नकद इनाम की भी घोषणा की थी।