सरदार पटेल न होते तो करोड़ों भारतीय आज होते पाकिस्तानी

सरदार पटेल और यूनिटी का एक बड़ा नाता है। वो नाता जो करोड़ों भारतीयों को एक सूत्र में पिरोता है। वो नाता जिसकी वजह से करोड़ों भारतीय पाकिनी बनने से बच गये। जी हां अगर पटेल न होते तो आज करोड़ों भारतीय पाकिस्तान के नागरिक होते।
ऐसा क्या किसा पटेल ने
देश की 562 छोटी बड़ी रियासतों को भारत में मिलाने का ऐतिहासिक काम सरदार पटेल के अथक प्रयासों के चलते हुए था। सरदार पटेल के इस प्रयास का महात्मा गांधी ने स्वीकार करते हुए कहा था कि, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।" दुनिया के इतिहास में यह एकमात्र उदाहरण है जब कोई नेता ने इतनी रियासतों को एक देश में शामिल करने में सफल हुआ हो।
लेकिन इतिहास में सरदार पटेल को वह स्थान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे। सरदार पटेल और पंडित नेहरू दोनों ही समकालीन नेता थे लेकिन सरदार पटेल की क्षमता का अंदाजा पंडित नेहरू को भी था, लोग पटेल को नेहरू का उत्तराधिकारी मानने लगे थे। ऐसे कई व्याख्यान इतिहास में मौजूद है जिससे पंडित नेहरू और पटेल के बीच टकराव उजागर होता है।
चालीस दिन में सभी रियासतो का विलय किया
महज चालीस दिन के अंदर देशी रजवाड़ों को स्वतंत्र भारत की तरफ करने की चुनौती थी सरदार पटेल के पास। दरअसल 15 अगस्त 1947 के पहले अगर ये रजवाड़े भारत या पाकिस्तान किसी के साथ नहीं जुड़ते तो अगले दिन से ये अपने को स्वतंत्र मान सकते थे। ऐसे में इतने कम समय में पटेल ने इन सभी रजवाड़ों को भारत में शामिल करवाकर अपनी कूटनीतिक क्षमता का परिचय दिया था।
रियासतों का विलय
सरदार पटेल ने रियासतों को भारत में शामिल होने के लिए मूल मंत्र यह बनाया था कि सभी रजवाड़ों और रियासतों के मालिकों में देशभक्ति की भावना को जगाना। इसी मूल मंत्र को लेकर सरदार पटेल ने हर रियासत को भारत में मिलाने का संकल्प लिया। कई रियासतों ने महज सरदार पटेल की मुलाकात के बाद खुद को भारत के साथ आने का ऐलान कर दिया था।
सरदार पटेल ने सभी रियासतों के राजाओ को एक भारत के लिए आगे आने के लिए समझाया जिसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा।
हैदराबाद बना भारत का हिस्सा
वहीं जब हैदराबाद के निजाम ने पटेल की एक भारत की अवधारणा को मानने से इनकार कर दिया था तो सरदार पटेल ने 'ऑपरेशन पोलो' नाम का यह सैन्य अभियान चलाकर हैदराबाद को भारत का हिस्सा बनाया। इस ऑपरेशन में किसी भी जान माल की हानि नहीं हुई। जूनागढ़ के लिए भी उन्होंने यही रास्ता अख्तियार किया था।
कैसे लक्षद्वीप को पाकिस्तान से छीना
लक्षद्वीप समूह को भारत के साथ मिलाने में भी पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी 15 अगस्त 1947 के बाद मिली।
हालांकि यह क्षेत्र पाकिस्तान के नजदीक नहीं था लेकिन पटेल इस बात की खबर हो गई थी कि वहां पर पाकिस्तान अपना झंडा फहराने की तैयारी में है। ऐसा कर इस द्वीप पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा।
इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए लेकिन वहां भारत का झंडा लहराते देख वे वापस कराची चले गए।
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