मीटिंग से पड़ी श्वेत क्रांति की बुनियाद, 'आयरन मैन' ने दिखाई थी राह

भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है, लेकिन 75 साल पहले ऐसा नहीं था। 75 साल पहले देश ने 'मिल्की वे' पर उस वक्त एक छोटी शुरुआत की, जब कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड (KDCMPUL) ने आधुनिक आणंद में दो गांवों से 250 लीटर दूध एकत्र किया। KDCMPUL में पैमाने की जो कमी थी, उसे उसने जोश के साथ पूरा किया। आखिरकार यह सिर्फ एक व्यवसाय नहीं रहा, बल्कि ब्रिटिश राज के तहत फली-फूली एक निजी कंपनी पोलसन डेयरी के एकाधिकार को समाप्त करने का आह्वान बन गया। इस आह्वान में अहम भूमिका निभाई सरदार वल्लभ भाई पटेल ने...

ऐसे शुरू हुआ दुग्ध आंदोलन

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भारत में दुग्ध आंदोलन शुरू होने से पहले किसान, बिना बिचौलियों के दूध को बाजार में बेचने में असमर्थ थे और इसका फायदा बिचौलिए उठाते थे। एक तरह से किसान बिचौलियों के रहमोकरम पर थे। उस वक्त पोलसन डेयरी के पास पूरे कैरा जिले से दूध खरीदने का अधिकार था। यह पहली बार था, जब अंग्रेजों ने भारत के दुग्ध क्षेत्र में कदम रखा था। किसान नाराज थे क्योंकि पोलसन ने उनका शोषण किया।

बिचौलियों द्वारा लूटे बिना अपने दूध उत्पादन को बाजारों में भेजने में असमर्थता का हवाला देते हुए गुजरात के किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल सरदार वल्लभभाई पटेल के पास आया। सरदार पटेल, जिन्होंने 1942 की शुरुआत में किसानों की सहकारी समितियों की वकालत की थी, ने अपनी सलाह दोहराई कि किसान अपनी खुद की सहकारी समिति के माध्यम से अपने दूध की बिक्री करें। इस सहकारी समिति का अपना पॉश्चराइजेशन प्लांट होना चाहिए। उनकी सलाह थी कि किसान ऐसी सहकारी समिति स्थापित करने की अनुमति मांगें। यदि उनकी मांग ठुकरा दी जाती है तो उन्हें अपना दूध बिचौलियों को बेचने से मना कर देना चाहिए। सरदार पटेल ने बताया कि इस तरह की हड़ताल करने से उन्हें कुछ नुकसान भी होगा क्योंकि वे कुछ समय के लिए अपना दूध नहीं बेच पाएंगे। यदि वे नुकसान सहने के लिए तैयार है, तो पटेल उनका नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं।

किसानों ने मान ली बात

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किसानों के प्रतिनिधिमंडल ने पटेल के प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया। इसके बाद सरदार पटेल ने अपने भरोसेमंद डिप्टी मोरारजीभाई देसाई को कैरा जिले में दुग्ध सहकारी संगठित करने के लिए भेजा। देसाई ने 4 जनवरी, 1946 को कैरा जिले के समरखा गांव में एक सभा की। बैठक में शामिल बुद्धिमान लोगों में भारत के 'लौह पुरुष' सरदार वल्लभभाई पटेल, भविष्य में प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई और स्वतंत्रता सेनानी त्रिभुवनदास पटेल थे। त्रिभुवनदास पटेल को त्रिभुवन काका के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐतिहासिक क्षण था।

फिर ब्रिटिश सरकार पर बनाया गया दबाव और मिली सफलता

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सभा में निर्णय लिया गया कि कैरा जिले के प्रत्येक गांव में अपने सदस्य-किसानों से दूध लेने के लिए दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां संगठित हों। सभी दुग्ध समितियों का एक संघ में विलय हो जाएगा, जिसके पास दूध प्रोसेसिंग की सुविधाएं होंगी। यह तय किया गया कि सरकार को संघ से दूध खरीदना शुरू करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो किसान कैरा जिले के किसी भी दूध ठेकेदार को दूध बेचने से मना कर देंगे। तत्कालीन बॉम्बे सरकार ने मांग को ठुकरा दिया। किसानों ने "दूध हड़ताल" का आह्वान किया, 15 दिनों के बाद बॉम्बे के दूध आयुक्त, एक अंग्रेज और उनके डिप्टी ने आणंद का दौरा किया, स्थिति का आकलन किया और किसानों की मांग को स्वीकार कर लिया।

इसने कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड की शुरुआत की, जिसे बाद में अमूल के नाम से जाना गया। पटेल के आह्वान से प्रेरित होकर केडीसीएमपीयूएल को 14 दिसंबर, 1946 को रजिस्टर किया गया था और इसने त्रिभुवन काका के नेतृत्व में अपने पैर जमाए।

फिर हुई डॉ. वर्गीज कुरियन की एंट्री

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दुग्ध आंदोलन को उस वक्त तेजी मिली, जब केरल में जन्मे मिशिगन विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र युवा डॉ. वर्गीज कुरियन इससे जुड़े। वह सरकारी छात्रवृत्ति के लिए अपने छह महीने के बॉन्ड को पूरा करने के लिए आणंद आए थे। डॉ. वर्गीज कुरियन को नहीं पता था कि वह अपना पूरा जीवन उस शहर में बिताएंगे, जो अब भारत की मिल्क सिटी के रूप में जाना जाता है और वह भारत की श्वेत क्रांति के पिता के रूप में प्रसिद्ध हो जाएंगे।

कुरियन की 63 वर्षीय बेटी निर्मला कुरियन ने टीओआई को बताया, "यह ऐसा करियर नहीं था जिसे उन्होंने चुना था। वह परमाणु भौतिकी और धातु विज्ञान में अपना करियर चाहते थे। लेकिन मेरे पिता ने हमेशा कहा कि उनका सबसे बड़ा सौभाग्य त्रिभुवन काका से मिलना और सहकारिता आंदोलन में शामिल होना था, जिसने उनके जीवन को अर्थ दिया। एक ऐसा जीवन जो उन्होंने अपनी शर्तों पर जिया, किसानों के लिए एक कर्मचारी के रूप में सेवा की। कभी-कभी तो उन्होंने अपनी तनख्वाह तक कुर्बान कर दी।''

आजादी के बाद क्या हुआ

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स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने पोलसन के साथ अपना अनुबंध रद्द कर दिया और केडीसीएमपीयूएल के साथ एक समझौता किया। फिर केडीसीएमपीयूएल ने अपनी खुद की डेयरी स्थापित करने का निर्णय लिया। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 15 नवंबर 1954 को इसकी आधारशिला रखी और 31 अक्टूबर 1956 को सरदार पटेल के जन्मदिन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डेयरी का उद्घाटन किया।

दुनिया को बनाकर दिखाया भैंस के दूध से मिल्क पाउडर

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डेयरी के स्थापित होने से 24 घंटे पहले वह क्षण था, जब कुरियन और उनकी टीम ने डेयरी तकनीक के जादूगर एच एम दलाया के नेतृत्व में भैंस के दूध से मिल्क पाउडर बनाने का एक तरीका खोजा। दलाया का परिवार कभी कराची में सबसे बड़ी डेयरी का मालिक हुआ करता था लेकिन विभाजन के बाद उनके हाथ से यह जाती रही।

अमूल ब्रांड के तहत दूध की मार्केटिंग करने वाले गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी कहते हैं कि यह सफलता भारत में डेयरी उद्योग के लिए एक गेम चेंजर साबित हुई। विकसित देशों के डेयरी उद्योग का मानना था कि मिल्क पाउडर केवल गाय के दूध से ही बनाया जा सकता है। सोढ़ी, कुरियन के दिमाग की एक अन्य उपज ग्रामीण प्रबंधन संस्थान, आणंद (IRMA) के पहले बैच से हैं। निर्मला कुरियन के मुताबिक, “बहुत सारे निहित स्वार्थ थे। न्यूजीलैंड जैसे दुग्ध उत्पादक देशों ने इस विचार को खारिज कर दिया था कि भैंस के दूध से भी मिल्क पाउडर बनाया जा सकता है। लेकिन मेरे पिता बहुत दूरदर्शी व्यक्ति थे।

फिर शास्त्री के 'जय किसान' ने दी नई बुलंदी

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केडीसीएमपीयूएल तेजी से बढ़ा। इसने 1 लाख लीटर प्रतिदिन की दूध प्रोसेसिंग क्षमता के साथ अपना पहला डेयरी संयंत्र स्थापित किया। ब्रांड अमूल, जिसका अर्थ संस्कृत में अमूल्य है, 1957 में शुरू किया गया था। 1960 के दशक के मध्य तक, दूध सहकारी आंदोलन गुजरात के अन्य जिलों- सूरत, वडोदरा, मेहसाणा और साबरकांठा में फैल गया था। लेकिन भारत का एक बड़ा हिस्सा अभी भी आणंद में शुरू हुई क्रांति से अछूता था।

1964 में प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा अमूल के पशु चारा संयंत्र का उद्घाटन करने के बाद यह बदल गया। उन्होंने एक गांव में एक रात बिताई और आणंद की सफलता का रहस्य सीखा, जो था सहयोग। इसने उन्हें पूरे भारत में आणंद मॉडल को दोहराने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) बनाने के लिए प्रेरित किया। शास्त्री ने कुरियन को इस बोर्ड का पहला अध्यक्ष बनाया।

फिर श्वेत क्रांति की हुई शुरुआत

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जुलाई 1970 में, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board) ने आधिकारिक तौर पर ऑपरेशन फ्लड- 'बिलियन लीटर' आइिडया शुरू किया। यह भारत को श्वेत क्रांति (White Revolution) की ओर लेकर गया। 1990 के दशक के अंत तक, दूध की कमी वाला भारत, अमेरिका को पछाड़कर दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक (Milk Producer) बन गया था।

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