सरदार पटेल और मोदी में है कितनी समानता?

सरदार पटेल से भारतीय जनता पार्टी की सहानुभूति शुरू से रही है. ये सहानुभूति क्यों है, इसका जवाब कई इतिहासकार नेहरू बनाम पटेल की राजनीति के तौर पर देखते हैं.

ऐसा इसलिए क्योंकि सरदार पटेल भी कांग्रेस के ही नेता थे. सरदार पटेल ने गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाए थे. पटेल ने ये भी कहा था कि गांधी की हत्या के बाद आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने मिठाई बाँटी थी.

नरेंद्र मोदी सरदार पटेल के गृह राज्य गुजरात के ही हैं और वो पटेल को लेकर काफ़ी मुखर रहते हैं. कई बार पटेल से सहानुभूति जताते हुए नेहरू पर हमला बोल चुके हैं. पीएम मोदी को जब भी नेहरू पर हमला बोलना होता है तो पटेल की तारीफ़ करते हुए बोलते हैं.

मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे. तारीख़ थी 20 अक्टूबर 2013. गुजरात में एक समारोह में मोदी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक साथ मंच पर थे. इसी मंच से मोदी ने कहा, ''हर भारतीयों के मन में आज तक कसक है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पटेल नहीं बने. अगर पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो भारत की तस्वीर कुछ और होती.''

मोदी और पटेल में कितनी समानता?

मनमोहन सिंह ने उसी मंच से मोदी को जवाब दिया था, ''याद रखना चाहिए कि पटेल भी कांग्रेस के ही नेता थे.''

मोदी अब प्रधानमंत्री हैं और उन्होंने पटेल की ऐसी मूर्ति बनवाई जिससे दुनिया की सारी मूर्तियां छोटी पड़ गईं. लेकिन मोदी जिस पटेल को अपना आदर्श मानते हैं, उनके विचारों से कोई समानता भी है?

मोदी और पटेल के व्यक्तित्व, सोच और दृष्टिकोण में कितनी समानता है?

'मैं कम बोलने वाला आदमी हूं. मैं कम क्यों बोलता हूं? एक सूत्र है जो मैंने सीख लिया है कि मौनं मूर्खस्य भूषणम्. ज़्यादा बोलना अच्छा नहीं है. वो विद्वानों का काम है. लेकिन जो हम बोलें उसी के ऊपर हम चल सकें तो हमारा बोलना नुकसान कर सकता है. इसलिए भी मैं कम बोलता हूं.'

सरदार पटेल की कही इस बात को यू-ट्यूब पर सुना जा सकता है.

पटेल बहुत ही मृदुभाषी थे. वो कम बोलते थे और करने में ज़्यादा यक़ीन रखते थे. पटेल ने कभी कोई विवादित बयान नहीं दिया. इस कसौटी पर पीएम मोदी को कसा जाए तो कई चीज़ें विषम दिखती हैं. पीएम मोदी के कई विवादित बयान हैं और वो लंबे भाषण देने के लिए जाने जाते हैं.

गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत कहते हैं, ''सरदार पटेल ठोस बात करते थे. वो लंबे भाषणों में बिल्कुल यक़ीन नहीं करते थे.''

मोदी और पटेल के बोलने में फ़र्क़

एक तरफ सरदार पटेल मौनं मूर्खस्य भूषणम् की बात करते थे. लेकिन दूसरी तरफ पीएम मोदी अपने लंबे भाषणों के लिए जाने जाते रहे हैं.

ऐसे कई मौक़े रहे, जब मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्रियों से लंबे भाषण दिए. लाल किले से दिए घंटों लंबे भाषण आपको याद ही होंगे.

इन भाषणों के दौरान मोदी से कुछ भूल भी होती रही हैं. तक्षशिला को बिहार का हिस्सा बताने से लेकर सिकंदर के बिहार आने की बात तक.... मोदी की ऐसी कई चूकें सोशल मीडिया पर चर्चा में रहीं.

पटेल करते थे नेहरू का सम्मान

मोदी भले ही नेहरू पर आक्रामक रहते हैं लेकिन पटेल उनका सम्मान करते थे. इसकी झलक उन ख़तों में मिलती है, जिसे इन दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को भेजा था.

एक अगस्त 1947

नेहरू ने पटेल को ख़त लिखा, "कुछ हद तक औपचारिकताएं निभाना ज़रूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूँ. इस पत्र का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि आप तो मंत्रिमंडल के सुदृढ़ स्तंभ हैं."

3 अगस्त 1947

सरदार पटेल ने नेहरू को जवाब दिया, ''आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद. एक-दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम रहा है तथा लगभग 30 साल की हमारी जो अखंड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता. आशा है कि मेरी सेवाएं बाकी के जीवन के लिए आपके अधीन रहेंगी. आपको उस ध्येय की सिद्धि के लिए मेरी शुद्ध और संपूर्ण वफादारी औऱ निष्ठा प्राप्त होगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के अन्य किसी पुरुष ने नहीं किया है. हमारा सम्मिलन और संयोजन अटूट और अखंड है और उसी में हमारी शक्ति निहित है. आपने अपने पत्र में मेरे लिए जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं.''

2 अक्टूबर 1950

सरदार पटेल ने एक भाषण में कहा था, ''अब चूंकि महात्मा हमारे बीच नहीं हैं, नेहरू ही हमारे नेता हैं. बापू ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था और इसकी घोषणा भी की थी. अब यह बापू के सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे उनके निर्देश का पालन करें और मैं एक ग़ैर-वफ़ादार सिपाही नहीं हूं.''

सरदार पटेल ने संसद में खुलकर कहा था, ''मैं सभी राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रधानमंत्री के साथ हूं. आज जब महात्मा नहीं हैं तब हम आपस में झगड़ने की बात सोच भी नहीं सकते.''

एक बार जब जवाहर लाल नेहरू ने कहा, "मैं जाता हूं, आप बन जाइए प्रधानमंत्री." तो इस पर सरदार पटेल ने कहा, "नहीं-नहीं. आपको ही रहना होगा."

आलोचनाओं से घबराते नहीं थे पटेल

सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी आलोचनाओं को खुले दिल से स्वीकार करते थे. इसका ज़िक्र तुषार गांधी की किताब 'लेट्स किल गांधी' में भी मिलता है.

गांधी की हत्या से जुड़े कुछ और तथ्य सामने आने के बाद 1965 में कपूर आयोग का गठन किया था. इस आयोग में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल को भी गवाह के तौर पर पेश किया गया था.

उन्होंने कपूर आयोग से कहा था, "एक मीटिंग में मेरे पिता को जयप्रकाश नारायण ने सार्वजनिक रूप से गांधी की हत्या के लिए ज़िम्मेदार बताया. उस बैठक में मौलाना आज़ाद भी थे पर उन्होंने कुछ नहीं बोला.''

महात्मा गांधी की हत्या को लेकर भी सरदार पटेल की आलोचनाएं हुईं थीं. यहां तक कि पटेल के इस्तीफा की मांगें भी उठी थीं. पटेल ने अपना इस्तीफा नेहरू को भेजा भी था लेकिन ये मंज़ूर नहीं हो सका.

सरदार पटेल की ज़िंदगी पर किताब लिखने वाले गोपाल कृष्ण गांधी एक लेख में लिखते हैं, ''पटेल अपनी आलोचनाओं को बहुत शांति से सुनते थे. गांधी की हत्या को लेकर जब उन पर इल्ज़ाम लगे तो वो बोले- मैंने कई बार पुलिस सुरक्षा की बात गांधी जी से कही थी लेकिन वो कभी नहीं माने.''

पीएम मोदी की छवि यह बनी है कि वो अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं करते हैं.

खादी प्रेम...

इंग्लैंड से पढ़कर लौटे पटेल ने आज़ादी की लड़ाई में कूदने के बाद खादी को स्वीकार कर लिया था. पटेल ने पश्चिमी पोशाकों को पूरी तरह से छोड़ दिया था.

कुमार प्रशांत कहते हैं, ''खादी उस दौर में एक ख़ास तरह की जीवन पद्धति का हिस्सा था. खादी तब फैशन स्टेटमेंट नहीं थी. अब कल्चर बदला है तो खादी भी बदल गई है. अब कहा जाता है कि मोदी के खादी प्रचार से खादी लोकप्रिय हुआ. लेकिन खादी विभाग से जाकर पूछिए कि खादी का उत्पादन कितना बढ़ा है. खादी की संस्थाएं बंद हो रही हैं. काम करने वाले कम लोग हैं. मोदी जी का रिश्ता गांधी के खादी ब्रैंड से नहीं, व्यापार करने वाली मोदी खादी ब्रैंड से जुड़ता है.''

पीएम मोदी जब विदेशी दौरों पर जाते हैं या देश में भी कई पश्चिमी पोशाकों को पहनते रहे हैं. इसमें वो सूट भी शामिल है, जिसमें मोदी...मोदी लिखा हुआ था. मोदी के कपड़ों के महंगे डिजायनर की भी मदद ली जाती है. फेमस फैशन डिजाइनर ट्रॉय कोस्टा मोदी के लिबास पर काम कर चुके हैं.

कुमार प्रशांत कहते हैं, ''सरदार पटेल रहन-सहन में गांधी जैसी ज़िंदगी ही जीते थे. जब वो मरे जो उनकी बेटी ने एक पैसे का लिफाफा नेहरू को लाकर दिया. इसमें लिखा था संगठन का पैसा. पटेल के पैर में एक पुरानी किस्म की चप्पल रहती थी. बहुत छोटी सी धोती थी. लेकिन आप पीएम मोदी को देखें तो लगता है कि एक आदमी खड़ा है और देश को दिखा रहा है कि जीवन कितने वैभव से जिया जा सकता है.''

हालांकि एक तथ्य ये भी है कि मोदी के पीएम बनने के बाद खादी की बिक्री में लगातार वृद्धि देखी गई है.

साल 2014-2015 के दौरान खादी का उत्पादन क़रीब आठ फ़ीसद बढ़ा, बिक्री में भी आठ फ़ीसदी बढ़ी थी.

वहीं 2015-16 के दौरान खादी उत्पादन की वृद्धि 21 फ़ीसदी रही, जबकि बिक्री में 29 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. जबकि 2016-17 के दौरान खादी उत्पादन में 31 फ़ीसदी बढ़ोत्तरी देखने को मिली, जबकि बिक्री में 32 फ़ीसदी का इजाफ़ा हुआ.

हर मौक़ा उत्सव?

सरदार पटेल की पत्नी झावेर बा का जब निधन हुआ था, उस वक़्त सरदार पटेल अदालती कार्यवाही में व्यस्त थे.

कोर्ट में बहस चल रही थी. तभी एक व्यक्ति ने कागज़ में लिखकर उन्हें झावेर बा की मौत की ख़बर दी. पटेल ने वह संदेश पढ़कर चुपचाप अपने कोट की जेब में रख दिया. जिरह जारी रखी गई और वो मुक़दमा जीत गएजब कोर्ट की कार्यवाही पूरी हुई तब उन्होंने अपनी पत्नी की मौत की सूचना सबको दी.

दूसरी तरफ़ पीएम मोदी की पहचान ये है कि वो किसी भी मौक़े को इवेंट में बदल देते हैंहाल में ही अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद उनकी अस्थि कलश को लेकर पार्टी नेताओं ने असहज करने वाली स्थिति पैदा कर दी.

आडवाणी ने भी मोदी को एक अच्छा इवेंट मैनेजर कहा है.

किसानों को लेकर सरदार पटेल और मोदी

साल 1928. गुजरात का बारडोली का किसान सत्याग्रहब्रिटिश हुकूमत ने बारडोली के किसानों पर लगने वाले टैक्स में अचानक 22 फ़ीसदी का इजाफा कर दिया. ग़रीब किसानों के लिए इतना कर देना संभव नहीं था.

वल्लभभाई पटेल ने किसानों की ओर से सरकार से अपील की. लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. पटेल ने फ़ैसला किया कि वो घर-घर जाकर किसानों से टैक्स चुकाने की अपील करेंगे.

पटेल ने किसानों से कहा था, ''मैं आप लोगों को साफ़ बता दूं कि अंग्रेज़ी हुकूमत से लड़ने के लिए मैं आपको बड़े-बड़े हथियार नहीं दे सकता. बस आपका दृंढ निश्चय और सामर्थ्य ही है, जिससे आपको ये लड़ाई लड़नी है. लेकिन मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि अगर आप कष्ट सहने के लिए तैयार हैं तो दुनिया की सबसे बड़ी ताकतें आपके आगे घुटने टेकेंगी. ये अंग्रेज़ आपकी ज़मीन विलायत ले जाएंगे और आपकी ज़मीन जोतेंगे. इनसे डरिए मत. एकता में रहेगा बल तो कोई और नहीं चला सकेगा आपकी ज़मीन पर हल.''

पटेल के प्रेरक भाषणों को सुनकर किसान एकजुट हुए. बारडोली के इस किसान सत्याग्रह पर सबकी आंखें टिकी हुईं थीं. नतीजा ये हुआ कि अंग्रेज़ सरकार को झुकना पड़ा.

इस आंदोलन की सफलता से वल्लभभाई महात्मा गांधी के क़रीब गए. इसी आंदोलन की सफ़लता के बाद वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि दी गई. इसी आंदोलन की वजह से सरोजिनी नायडू पटेल को 'बारडोली का बैल' भी कहती थीं.

इतिहासकार सलिल मिश्रा ने राज्यसभा टीवी को दिए इंटरव्यू में बताया था, ''राजनीतिक जीवन की शुरुआत किसान नेता के तौर पर करने वाले पटेल को सरदार की उपाधि बारडोली की महिलाओं ने दी थी.''

दूसरी तरफ़ मोदी एक सच ये भी है कि सरदार पटेल की स्टैचू ऑफ यूनिटी से महज़ 12 किलोमीटर दूर नाना पिपड़िया गांव के किसानों की बात सुनकर लगा सकते हैं.

खेती की सिंचाई के लिए पानी को तरसने वाले इन किसानों की सरकार से कुछ नाराज़गी है. इन किसानों का मानना है कि पटेल की प्रतिमा पर खर्च किए जाने वाले तीन हज़ार करोड़ रुपये सूबे के ज़रूरतमंदों की मदद के लिए खर्च किए जाने चाहिए थेइसी इलाके के एक किसान विजेंद्र ताडवी ने बीबीसी से कहा, ''एक विशालकाय मूर्ति पर इतना पैसा ख़र्च करने से अच्छा होता कि सरकार सूखा पीड़ित किसानों के लिए पानी की व्यवस्था तैयार कर देती."

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