सरदार ने नूतन वर्ष पर किया था सोमनाथ जीर्णोद्धार संकल्प
"समुद्र के जल को हथेली में लेकर हम प्रतिज्ञा करते हैं कि सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाएंगे"। लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारतीय स्वतंत्रता के बाद 13 नवंबर, 1947 को गुजरात में मनाए गए प्रथम नूतन वर्ष के शुभ दिन अपने सहयोगियों महान गुजरात के स्वप्नदृष्टा व ‘जय सोमनाथ' के लेखक तथा सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता कन्हैयालाल माणेकलाल मुंशी और तत्कालीन नवा नगर के जामसाहब दिग्विजय सिंह के साथ मिल कर यह प्रतिज्ञा की।
कई बार आतताइयों और आक्रमणकारियों का शिकार बन चुके सोमनाथ मंदिर की दुर्दशा देख पटेल का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने सोमनाथ के भव्य भूतकाल के भग्नावशेष देखे। स्वतंत्रता के बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकम, जब समग्र गुजरात नूतन वर्ष मनाता है, को पटेल मुंशी और दिग्विजय सिंह के साथ सोमनाथ के समुद्री तट पर रेत में खुले पैरों से चल रहे थे। मुंशी व दिग्विजय सिंह काफी देर तक मौन रहे, लेकिन मुंशी ने मौन तोड़ा और कहा, ‘‘भारत सरकार को इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराना चाहिए।'' मुंशी के इस कथन को पटेल ने हाथोंहाथ लिया। उन्होंने सोमनाथ को प्रणाम किया और सागर तट से अंजलि में जल लिया और साथियों समेत सोमनाथ के जीर्णोद्धार का संकल्प व्यक्त किया।
सरदार की यह घोषणा समूचे सौराष्ट्र में हर्ष की लहर दौड़ा गई। भामाशाहों में होड़ लग गई। जामसाहब ने एक लाख रुपए, जूनागढ़ के प्रशासक शामलदास गांधी ने 51 हजार रुपए और अन्य धनपतियों ने भी धन की सरिता बहा दी। इसके बाद सोमनाथ मंदिर न्यास की स्थापना हुई। करीब तीन साल बाद 19 अप्रेल, 1950 को तत्कालीन सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री ढेबरभाई ने मंदिर के गर्भगृह निर्माण के लिए भूमि खनन विधि की। 8 मई को दिग्विजय सिंह ने मंदिर का शिलान्यास किया। एक साल बाद 11 मई, 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने समुद्र में स्नान कर सुबह साढ़े नौ बजे होरा नक्षत्र में मंदिर में शिवलिंग की प्रतिष्ठा की।
13 मई, 1965 को दिग्विजय सिंह ने गर्भगृह और सभामंडप पर कलश प्रतिष्ठा कराई तथा शिखर पर ध्वजारोहण किया। इस बीच दिग्विजय सिंह का निधन हो गया। 28 नवंबर, 1966 को मुंशी ने स्वर्गीय दिग्विजय सिंह की पत्नी गुलाब कुंवरबा की ओर से निर्माण कराए जाने वाले दिग्विजय द्वार का शिलान्यास किया। 4 अप्रेल, 1970 को मूकसेवक रविशंकर महाराज ने सोमनाथ मंदिर परिसर में सरदार पटेल की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया। 19 मई, 1970 को सत्य साईबाबा ने दिग्विजय द्वार का उद्घाटन किया।
1 दिसंबर 1995 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने नृत्यमंडप पर कलश प्रतिष्ठा कर नवनिर्मित मंदिर राष्ट्र को समर्पित किया। मंदिर निर्माण के सरदार पटेल के दृढ़ संकल्प को साकार करने में काकासाहब गाडगिल, दत्तात्रेय वामन, खंडूभाई देसाई, बृजमोहन बिड़ला, दयाशंकर दवे, जयसुखलाल हाथी, चित्तरंजन राजा, मोरारजीभाई देसाई सहित अनेक लोगों का सहयोग रहा। सोमनाथ मंदिर आज लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के दृढ़ संकल्प का प्रतीक बना हुआ है। संभवत: इसीलिए गुजरात के प्रसिद्ध कवि नर्मद ने भी अपनी कविता में सोमनाथ को पश्चिमी गुजरात का प्रहरी बताया है।
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