छत्रपति शिवाजी ने रचा था गौरवशाली इतिहास, स्वतंत्र राज्य का संकल्प कर लिया था ये प्रण

ताज नगरी आगरा का अपना ही अलग इतिहास है। ताज नगरी का मुगल म्यूजियम अब छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से जाना जाता है। इसमें शिवाजी महाराज का इतिहास भी दर्ज किया गया है। मुगल म्यूजियम के साथ अब छत्रपति शिवाजी और उनके संकल्प की कहानी का इतिहास बेहद कम लोग जानते हैं। ऐसे में  ताज नगरी आगरा का अपना ही अलग इतिहास है। ताज नगरी का मुगल म्यूजियम अब छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से जाना जाता है। इसमें शिवाजी महाराज का इतिहास भी दर्ज किया गया है। मुगल म्यूजियम के साथ अब छत्रपति शिवाजी और उनके संकल्प की कहानी का इतिहास बेहद कम लोग जानते हैं। ऐसे में आज हम आपको मुगल म्यूजियम से जुड़े छत्रपति शिवाजी महाराज के किस्से की पूरी कहानी सुनाएंगे, जिसे जानकर आप को बड़ी हैरानी होगी।

दरअसल उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा जारी एक आदेश के बाद यह बदलाव किया गया है। आगरा से शिवाजी महाराज का गहरा नाता था। ऐसे में साल 1667 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को कैदी बना लिया, तो शिवाजी को सवा महीने आगरा में नजरबंद कर दिया गया।

क्या कहते हैं इतिहास के पन्ने

वहीं इस मामले को वर्णित करते हुए इतिहासकार बताते हैं कि औरंगजेब के वजीर मिर्जा राजा जय सिंह और शिवाजी राजे से युद्ध के बाद साल 1665 में पुरंदर की संधि हुई थी। दोनों ने सर्वसम्मति के साथ इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे।

इसके तहत आगरा के 23 किलो को शिवाजी महाराज के नाम कर दिया गया था। इस संधि में तय हुआ था कि शिवाजी औरंगजेब से दरबार में मिलेंगे और जिसमें उच्च पद या बड़ा मनतब दिया जा सकता है। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी औरंगजेब के वजीर मिर्जा राजा जयसिंह ने खुद ली थी।

जब दरबार में हुआ शिवाजी राजे का अपमान

इसके बाद सन 1666 में शिवाजी महाराज आगरा आए और उन्होंने सेल्वा रोड पर सराय गुलाबचंद में अपना डेरा डाला। वजीर जय सिंह के बेटे कुंवर राम सिंह ने इस दौरान एक लाख रूपये की भेट के साथ उनका स्वागत किया।

इसके साथ ही नगर की सीमा से बाहर कोठी मीना बाजार के पास आज जहां जयपुर हाउस बना हुआ है, वहां कुंवर राम सिंह की छावनी में शिवाजी महाराज छहरे रहे। इतिहासकारों के मुताबिक इस स्थान को आज भी अभिलेखों में कटरा सवाई राजा जयसिंह के नाम से जाना जाता है।

वजीर राम सिंह के कहने पर शिवाजी महाराज आगरा तो गए, लेकिन औरंगजेब के दरबार में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। दरअसल इस दौरान उन्हें पांच हजारी मनसबदारों के साथ खड़ा कर दिया गया। औरंगजेब की इस हरकत पर शिवाजी महाराज गुस्सा हो गए और सब छोड़ कर चले गए।

औरंजेब और शिवाजी के बीच बोएं थे नफरत के बीज

जानकारों की माने तो अफजल खान (शिवाजी के हाथ हुआ था निधन) की विधवा और रोशन आरा जो कि शाहजहां की बेटी थी ने औरंगजेब के कान भर दिए थे, जिसके चलते औरंगजेब और शिवाजी के बीच ठन गई थी। इसी कारण औरंगजेब ने सभा में शिवाजी का सम्मान नहीं किया।

इतिहासकारों का कहना है कि इस वाक्ये के बाद शिवाजी महाराज फिदाई हुसैन की हवेली में नजरबंद रहे थे। उनकी जानकारी किसी को नहीं थी। आज इसी जगह को कोठी मीना बाजार के नाम से जाना जाता है।

एक हजार सैनिकों की निगरानी में थे शिवाजी

दरअसल इस दौरान औरंगजेब के हुक्म पर शिवाजी महाराज को कुंवर राम सिंह की छावनी के निकट एक शिविर में नजर बंद करके रखा गया। इस दौरान उन्हें सिद्धि फौलाद था की निगरानी में रखा गया। इस दौरान शिवाजी को हजार सैनिकों और तोपों की तैनाती में निगरानी में रखा गया।

शिवाजी महाराज को कड़ी निगरानी में रखने के लिए औरंगजेब ने उन्हें जामा मस्जिद के निकट स्थित विट्ठलनाथ की हवेली में लाने का हुक्म दिया, लेकिन इस दौरान शिवाजी महाराज ने औरंगजेब के सैनिकों की आंखों में धूल झोंकने की पूरी प्लानिंग तैयार कर ली थी। इस दौरान जब उनके बेटे संभाजी की मदद से मिठाई की टोकरी में बैठकर वो वहां से निकल गए।

इसके बाद औरंगजेब की कैद से निकलकर शिवाजी महाराज मथुरा पहुंचे और वहां से चौबेजी के कटरा में रहे। वहां उन्होंने संकल्प किया कि वह एक स्वतंत्र राज्य आगरा की नींव रखेंगे।