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शादी के बाद परिवार टूटा, हौसला नहीं, महीने में 50 हजार रुपये कमाती हैं 10वीं तक पढ़ीं सरोजा पाटिल

उद्यमी सरोजा पाटिल (entrepreneur Saroja Patil) जैविक खेती कर सफलता की मिसाल कायम कर रही हैं। कर्नाटक में केमिकल मुक्त खेती कर रहीं सरोजा पाटिल पीएमएफएमई स्कीम (PMFME Scheme) का लाभ उठा चुकी हैं। दावणगेरे जिले के नित्तूर गांव में रहने वालीं सरोजा एन पाटिल (Saroja N Patil Davangere) बाजरे की सफल खेती कर चुकी हैं। इसके लिए इन्हें कृषि पंडित पुरस्कार मिल चुका है। सरोजा पाटिल गांव की दूसरी महिलाओं को भी ऑर्गेनिक खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं। पढ़ाई के मामले में सिर्फ 10वीं तक पढ़ीं सरोजा घर की तीन बेटियों में दूसरे नंबर पर आती हैं। खेती-किसानी में सफलता हासिल करने वाली सरोजा 50 हजार रुपये महीने कमाती हैं। पढ़िए सक्सेस स्टोरी (सभी फोटो साभार- mofpi.gov.in)

2021 में बनाई तधवनम, अब 50 हजार महीने की कमाई

कर्नाटक की सरोजा पाटिल जैविक कृषि उत्पादों को बेचती हैं। उन्होंने केंद्र सरकार की PMFME स्कीम के तहत फरवरी, 2021 में तधवनम (Tadhvanam) इंटरप्राइज की स्थापना की। इसके तहत कई स्थानीय महिलाओं को रोजगार भी मिले हैं। सरोजा बताती हैं कि इस उद्यम की मदद से उन्हें प्रति माह 50,000 रुपये तक की आमदनी होती है। स्वस्थ जीवन शैली की वकालत करते हुए सरोजा दावणगेरे जिले के किसानों को जैविक खेती से जुड़ने और पारंपरिक खेती से ऑर्गेनिक फार्मिंग की ओर बढ़ने में सहायता भी करती हैं।

20 साल से कर रहीं जैविक खेती

गौरतलब है कि भारत सरकार ने बजट 2022 में किसानों से आह्वान किया कि रासायनिक मुक्त, प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को अपनाएं। हालांकि, कर्नाटक के हरिहर क्षेत्र के नित्तुरु गांव की सरोजा पाटिल गत दो दशकों से अधिक समय से जैविक खेती कर रही हैं।

10वीं से आगे नहीं पढ़ सकीं, लेकिन...

दावणगेरे के नित्तुरु गांव में सरोजा पहली महिला उद्यमी हैं जिन्होंने जैविक वस्तुओं को बेचने का बीड़ा उठाया है। 63 वर्षीय सरोजा पाटिल सैकड़ों महिलाओं के सशक्तिकरण में भी योगदान दे रही हैं। वे बताती हैं कि घर की तीन बेटियों में से वे दूसरे नंबर की हैं। कभी भी स्कूल में 10वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई नहीं कर सकी।

ऐसे शुरू हुई उद्यमिता

सरोजा बताती हैं कि लगभग 42 साल पहले उनकी शादी हुई। 1979 में नागेंद्रप्पा से शादी करने के बाद परिवार में बंटवारा हुआ। 25 एकड़ खेती की जमीन में उनके पति नागेंद्रप्पा के हिस्से में काफी छोटा भूखंड आया। परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए सरोजा के पति गांव के ही कॉयर संयंत्र में काम करने लगे। वे बताती हैं कि नारियल के कचरे को कॉयर में परिवर्तित कर कारखाने में गद्दे, रस्सियों और अन्य वस्तुओं का उत्पादन होता था। इससे प्रेरित होकर एक व्यवसाय शुरू करने और घर पर ही एक छोटी इकाई स्थापित करने का फैसला लिया। सरोजा ने फैमिली लोन और अपने पास जमा कुछ पैसों की मदद से कॉयर मैट, ब्रश और अन्य सामान बनाने के लिए यूनिट की स्थापना की। कुछ दिनों के बाद छोटा डेयरी फार्म शुरू करने का फैसला लिया और गायें भी खरीदीं।

घाटे के कारण कंपनी पर लगा ताला

सरोजा बताती हैं कि उन्होंने जिन वस्तुओं का उत्पादन किया उनकी
बाजार में डिमांड भी अच्छी थी। इसके बाद वे एक फर्म शुरू करने की योजना बना रही थीं, लेकिन खराब बुनियादी ढांचे और बिजली आपूर्ति में अड़चन के कारण, जितना सोचा उतने पैसों की इनकम नहीं हुई। अंत में घाटे में होने के कारण कंपनी बंद करनी पड़ी।

जैविक उत्पादों की मार्केटिंग

कंपनी बंद होने के बाद के संघर्ष के बारे में सरोजा बताती हैं कि उन्होंने जैविक खाद्य पदार्थों और उत्पादों की मार्केटिंग पर विचार किया। उन्होंने बताया कि बाजरा और अन्य पारंपरिक अनाज का इस्तेमाल कर खाना पकाना उनका शौक रहा है। जैविक खेती की शुरुआत में सरोजा के पति नागेंद्रप्पा ने जैविक सब्जियों के साथ-साथ ही ज्वार, रागी, धान और बाजरा जैसे अनाजों की रोपाई की। सरोजा ने अपने खेत की ताजा फसल का उपयोग रासायन मुक्त सब्जियों और पारंपरिक व्यंजनों की मार्केटिंग में किया।

सरोजा की मेहनत को मिला सम्मान

सरोजा बताती हैं कि बाजार में उतरने के बाद कई किसानों ने उनसे संपर्क किया। उनके उत्पादों को बाजार में पहचान मिली और डिमांड अच्छी होने के कारण उत्पादों की अच्छी कीमत भी मिली। सरोजा ने महिलाओं और पुरुषों को एक समान रूप से प्रशिक्षित करना शुरू किया। ट्रेनिंग के दौरान जैविक कीट प्रबंधन में मौजूदा कृषि संसाधनों का सही उपयोग और मिट्टी की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार हो पर जोर दिया गया। कृषि विभाग के अधिकारियों ने सरोजा पाटिल के प्रयासों को देखा और उनसे जैविक खेती को बढ़ावा देने की अपील की। सरोजा की योग्यता का असर ऐसा हुआ कि आस-पास के 20 गांवों के किसान उनसे सलाह लेने आने लगे। वे बताती हैं कि दूसरे किसानों से संवाद के दौरान खुद भी नई फसल उगाने की तकनीक सीखी। कृषि क्षेत्र में ज्ञान और पैसे दोनों मिले। इससे परिवार की वित्तीय स्थिति सुधारने में मदद मिली।

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