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बेमिसाल बेटी: असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़ किसान बनीं 27 साल की वल्लरी चंद्राकर, 20 लाख सालाना आय
भारत में अधिकतर लोंगो के जीवन-यापन का जरिया खेती है। किसान खेतों में मेनहत कर फसल उगता है तब सभी लोग उसे भोजन के रूप में सेवन करते हैं। कभी-कभी इलाके में सुखा के कारण फसलें बर्बाद हो जाती है और कभी बाढ़ के कारण। कुछ किसान इस परेशानी का सामना आसानी से करते हैं कुछ आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ किसान चाहते हैं कि मेरा बेटा किसान बने और कुछ चाहते हैं कि वह अपना रोजी-रोजगार की व्यवस्था किसी और काम के जरिए करे। महिलाएं भी कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। आपको पहले भी महिलाओं के अन्य कहानियों से अवगत कराया जा चुका है। यह कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसने इंजीनियरिंग छोड़कर खेती करने का फैसला लिया और इनकी सब्जियों की बिक्री विदेशों में हो रही है।
अगर आप किसी से पूछे कि वह क्या बनना चाहता हैं तो सब के अपने-अपने सपने होते हैं पर उनमें से कोई नही कहेगा कि उसे किसान बनना हैं। वही पर अगर कोई पढ़ -लिख कर अपनी नौकरी छोड़ कर खेती करने की सोचे तो सब उसे मूर्ख ही समझेंगे।
रायपुर जिला मुख्यालय से करीब 80 किमी दूर छोटा सा गांव है सिर्री (बागबाहरा)। यहां की बेटी वल्लरी चंद्राकर को अपनी धरती से इस कदर प्रेम हुआ कि वह राजधानी रायपुर के एक प्राख्यात कालेज से नौकरी छोड़कर आ अपने गांव आ गईं। धरती का कर्ज चुकाने और ‘स्वर्ग से सुंदर अपना गांव’ का नारा बुलंद करते हुए वल्लरी कहती है कि नौकरी कितनी भी बड़ी क्यों न हो, खेती से श्रेष्ठ नहीं हो सकती है। खेती में परिश्रम थोड़ा अधिक करना पड़ता है। किंतु, अन्नदाता होने का जो सुकून है, वो किसी भी नौकरी में आ ही नहीं सकता। हाईटेक तकनीक को अपनाकर खेती की जाए तो इसमें मुनाफा ही मुनाफा है।
वल्लरी के पिता जल मौसम विज्ञान विभाग रायपुर में उप अभियंता हैं। उनका पैतृक ग्राम सिर्री है। वल्लरी अपनी पुश्तैनी जमीन में खेती को देखने पिता के साथ कभी-कभी रायपुर से बागबाहरा के पास सिर्री गांव आती थी। अपनी धरती से वल्लरी को इस कदर लगाव हुआ कि वह रायपुर के दुर्गा कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर गांव आ गईं । पर उस समय किसी को यह अंदाजा नही था कि यह लड़की कोई ऐसा कदम उठाएगी जो कोई लड़का भी न सोचें।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर वल्लरी बनी किसान
बीई(आईटी) और एम टेक (कंप्यूटर साइंस) तक उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद सफ्टवेयर इंजीनियर इस बेटी ने खेती को अपना व्यवसाय बनाकर सबको चौंका दिया है। इतना ही नहीं वल्लरी खुद ट्रैक्टर चलाकर खेती कर लेती है । इन दिनों उनकी बाड़ी में मिर्ची, करेला, बरबट्टी और खीरा आदि की फसल लहलहा रही है। अपनी शिक्षा का सदुपयोग आधुनिक तकनीक से खेती में करने पर जोर देते हुए वल्लरी कहती हैं कि उनकी प्रतिभा को गांव वालों और समाज के लोगों ने प्रोत्साहित किया, इससे हौसला बढ़ता गया। अब तो जिस धरती पर जन्म लिया, वहां खेती करके उन्नतशील कृषक बनना ही उनका सपना है।
बचपन से ही था खेती से लगाव
वल्लरी बताती हैं कि उनके दादा स्वर्गीय तेजनाथ चंद्राकर राजनांदगांव में प्राचार्य थे। शासकीय सेवा में होने से उनके घर में तीन पीढ़ियों से खेती किसी ने स्वयं नहीं किया । दादा और पिता नौकरीपेशा होने से खेती नौकर भरोसे होती रही । वल्लरी को खेती की प्रेरणा अपने नाना स्वर्गीय पंचराम चंद्राकर से मिली है। वह अपने ननिहाल सिरसा (भिलाई) जाती थी, तो वहां की खेती देखकर व भाव विभोर हो उठती थी । बचपन का उनका खेती के प्रति लगाव उन्हें अपनी धरती पर खेती करने खींच लाया । वल्लरी की छोटी बहन पल्लवी भिलाई के कालेज में सहायक प्राध्यापक हैं।
15 एकड़ भूमि से की खेती की शुरुआत
वल्लरी के पिता के पास जो जमीन खरीदी हुई थी उसमें वह खेती शुरू की। फिर वर्ष 2016 में 15 एकड़ जमीन में खेती की शुरुआत करी। इस खेती में उन्होंने सब्जियां उगानी शुरू की। सब्जियों के रूप में उन्होंने खेत में शिमला मिर्च, टमाटर, लौकी, भिंडी, करेला, बिन्स आदि लगाएं। उनकी खेती सफल हुई और उन्हें सब्जियों के आर्डर आने लगें। जिस तरह से कस्टमर सब्जियों का आर्डर देते, उसी तरह से यह सब्जियां खेत में उगाने लगी। इनकी सब्जियां इंदौर, (Indor), भोपाल (Bhopal), दिल्ली (Delhi), उड़ीसा (Odisa), बेंगलुरु (Bengluru), नागपुर (Nagpur) आदि शहरों में बिकने लगी। यहां तक कि दुबई में इनकी सब्जियों का सप्लाई किया जा रहा है।
मुश्किलो का सामना
वालारी का यह सफर आसान बिल्कुल भी नही था। शुरुआत में उन्हें बहुत मुश्किलो का सामना करना पड़ा। शुरू में उनकी बातों को लड़की होने के कारण कोई गंभीरता से नही लेता था। किसान, बाजार और मंडीवालो से उनकी डील नही पाती थी।
छत्तीसगढ़ी सीखी
वल्लरी ने किसानों से बेहतर संवाद की लिए छत्तीसगढ़ी सीखी। साथ ही बेहतर खेती के लिए इंटरनेट से खेती की नई तकनीक भी सीखी। उन्होंने देखा कि कैसे दुबई, इजराइल और थाईलैंड में खेती होती है और उसे अपनाने की कोशिश की।
लोगों ने बेवकूफ ठहराया
शुरुआती दौर में वल्लरी को सभी लोगों ने पढ़ी-लिखी बेवकूफ होने का दर्जा दिया था। लोगों का मानना था कि जब तुम अच्छी नौकरी कर रही थी तो उसे छोड़ खेती करने की क्या जरूरत थी। इनके पिता ने जो जमीन फॉर्म हाउस के लिए लिया था उन्होंने वहां खेती करना सही समझा और लोगों की बात को अनसुना कर अपने कार्य मे लगी रहीं। इनकी तीन पीढ़ी में अभी तक किसी भी व्यक्ति या महिला ने खेती नहीं किया था। इसीलिए शुरुआती दौड़ में इन्हें मार्केट में किसी भी व्यक्ति से खेती के बारे में बातचीत करने में बहुत दिक्कत होती थी। पहले तो वल्लरी को खेती करने के कुछ भी तरीके की जानकारी नहीं थी। कौन सा पौधा कब लगाए? खेती में क्या लगाकर इसकी शुरुआत करें? ऐसे बहुत से सवाल थे। इसीलिए इन्होंने इंटरनेट की मदद से देश में कैसे खेती हो रही है, इसके लिए जानकारी इकट्ठी की। बेहत सम्वाद कौशल के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ में जाकर खेती के बारे में जानकारी ली। बहुत मेहनत के बाद उनकी सफलता ने सबका मुंह बन्द कर दिया। इनके खेतों में सब्जियां उगने लगीं। साथ मे बिक्री भी होने लगीं।
युवा भी करतें हैं साथ काम
वल्लरी 7 युवाओं के साथ मिलकर खेती कर रही है। यह युवा इंजीनियरिंग और मार्केटिंग फील्ड से हैं। ये टीम अपने गांव वालों को भी इस खेती के लिए जागरूक कर रही है और लोगों को रोजगार मुहैया भी करा रही हैं। इनकी टीम इनके साथ अहम भूमिका निभा रही है और आगे भी बढ़ रही है। जब यह फ्री रहती हैं तो वहां के बच्चों को इंग्लिश और कंप्यूटर पढ़ाती हैं। लड़कियों के लिए प्रत्येक शाम 2 घण्टे कंप्यूटर और इंग्लिश क्लास भी चलाती है ताकि इनका संवाद कौशल सही हो और ज्ञान बढ़े।
विदेशो में सब्ज़ियों की मांग
आज वल्लरी की सब्ज़िया दिल्ली, भोपाल,इंदौर, ओडिशा, नागपुर तक जाती हैं। अब तो उन्हें विदेशो से भी आर्डर मिलने लगे हैं। सब्ज़िया दुबई , इजराइल जैसे देशों में निर्यात के लिए तैयार हैं। उन्हें दुबई और इजराइल से टमाटर और लौकी का आर्डर मिला हैं।
खेती के अलावा वल्लरी शाम 5 बजे खेत से घर आने पर लड़कियों को अंग्रेज़ी और कंप्यूटर का ज्ञान भी देती है। ताकि यह लड़कियो को आत्मनिर्भर बना सके।
सीखना चाहती हैं इजरायल की खेती
इजरायल इस युग में खेती के लिए नंबर 1 पर आता है। इसीलिए वल्लरी वहां जाकर खेती कैसे की जाती है यह सीखना चाहती हैं। नए तरीके अपनाकर जानकारी इक्ट्ठा कर गांव में आकर खेती करना चाहती हैं।
खेती से हर साल 20 लाख रुपये की कमाई
युवा सोच और ड्रीप ऐरिगेशन (टपक पद्धति से सिंचाई) से सब्जी-भाजी की खेती को वल्लरी ने लाभदायक बनाया है। उनका कहना है कि शुरूआत में प्रति एकड़ करीब डेढ़ लाख स्र्पए खर्च करना पड़ा। इस तरह उनके दो फार्म हाउस में करीब 55 से 60 लाख स्र्पए खर्च हुआ । यह वन टाइम इन्वेस्टमेंट है । इससे फार्म हाउस खेती के लिए पूरी तरह विकसित हो चुका है। सालभर में सभी खर्च काटकर प्रति एकड़ करीब 50 हजार स्र्पए शुद्ध आय हुई। इस तरह उनकी खेती से वार्षिक आय 19 से 20 लाख स्र्पए हो रहा है। वल्लरी का कहना है कि खेती को व्यवसायिक और सामुदायिक सहभागिता से उन्नत बनाने की दिशा में वे प्रयास कर रही हैं।
गांव के बच्चों को दे रही कंप्यूटर की शिक्षा
शहर से गांव आई वल्लरी कंप्यूटर की खास जानकार हैं। गांव के गरीब बच्चे आगे बढ़ सकें, सूचना क्रांति के क्षेत्र में उनका नाम हो। इसके लिए वह गांव के दर्जनभर बच्चों को नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा भी दे रही है। दिनभरखेत में कामकाज और प्रबंधन देखने के बाद देर शाम से रात तक बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा देना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है।
भविष्य में योजना
वल्लरी यही नही रुकती है बल्कि भविष्य में उनकी योजना इजराइल जाकर आधुनिक खेती की तकनीक सीखने की हैं। ताकि वह खेती में और प्रयोग कर किसानी की मदद कर सके।
सम्पर्क सूत्र : किसान साथी यदि खेती किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें kurmiworld.com@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फ़ोन नम्बर +91 9918555530 पर कॉल करके या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं Kurmi World के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल ।
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