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केले की खेती, कैसे बने करोड़पति किसान
महाराष्ट्र का शहर जलगांव का नाम तो आपने सुना ही होगा। ये गांव भारत में केले की राजधानी कहा जाता है। और केले की खेती ने इस यहां के किसानों को करोड़पति भी बनाया है। इन्हीं में से दो करोड़पति किसान हैं – एक तो हैं कुछ साल पहले तक जलगांव शहर के एक चौराहे पर चाय बेचने वाले 62 साल के किसान टेनू डोंगार बोरोले और दूसरे हैं 64 साल के लक्ष्मण ओंकार चौधरी, जो कि स्कूल में टीचर थे।
कैसे बने करोड़पति किसान
केलों के पौधे पालने-पोसने की सुविधा और बाज़ार तक इनकी पहुँच ने टेनू और लक्ष्मण की किस्मत बदल दी। लक्ष्मण 1974 से ही परंपरागत केले की खेती किया करते थे। जिनमें डेढ़ साल में सिर्फ एक बार ही फल आता है।
लेकिन कुछ साल पहले वो एक एग्रीकल्चर प्रो़डेक्ट बनाने वाली कंपनी के संपर्क में आए जिनके वैज्ञानिकों ने 1990 में केले की एक नई प्रजाति ग्रेनेड नाइने को तैयार किया था। इस ग्रेनेड नाइने प्रजाति के केले की खास बात ये थी कि इनके मुख्य तने में फल के अलावा दो बार और फल आते थे। ऐसा पंरपरागत केले की फ़सल में नहीं होता था। इसे पेड़ी फ़सल कहते हैं।
इसके अलावा नई खोज टिश्यू कल्चर यानी केलों की प्रजाति के संवर्धन ने भी बहुत मदद की। एक समान ज़्यादा उपज देने वाले और संक्रमण से मुक्त केलों के तने को टेस्ट ट्यूब में तैयार किया जाता और उन्हें नर्सरी तक लाया जाता।
करोड़ों में कमाई
केले से एक साल का चौधरी का टर्नओवर एक करोड़ रूपए पार कर गया है। परंपरागत खेती करते समय चौधरी के पास सिर्फ 4 एकड़ जमीन ही थी। लेकिन अब ये बढ़कर 10 गुना यानी 40 एकड़ हो गई है। वो साल में अब 12,500 कुंटल केले की पैदावार निकाल लेते हैं। पिछले साल ये रूपए 900 प्रति कुंटल यानी कुल रूपए 1,12,50,000 में बिके जबकि इस साल ये भाव रूपए 1200 प्रति कुंटल है यानी करीब 25 प्रतिशत ज्यादा, जिनसे इस साल चौधरी जी की कमाई होगी कुल रूपए डेढ़ करोड़।
टेनु बोरोले भी कई एकड़ में केले की खेती कर रहे हैं। दोनों किसान ख़ुशकिस्मत है कि इन्हें सिंचाई में मदद मिल रही है।
केले की खेती के लिए क्या है खास जलगावं के वातावरण में
केले की पैदावार गर्म और आर्द्रता वाली जलवायु में होती है। जलगांव गर्म इलाक़ा है, यहां तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचता है, लेकिन आर्द्रता 20 फ़ीसदी तक पहुँच जाती है जबकि केलों के लिए इसका 60 प्रतिशत से ज़्यादा होना चाहिए।
वैज्ञानिकों की सलाह पर चौधरी और टेनू ने केले के बग़ीचे के अंदर सूक्ष्म स्तर पर जलवायु प्रबंधन का रास्ता निकाला। केले को पास-पास लगाने पर ज़मीन की सतह सूख नहीं पाती। बग़ीचे केलों के पत्तों से ढँक जाते हैं और यह एयर कूलर की तरह काम करने लगता है। बग़ीचे के किनारों में गजराज घास का इस्तेमाल होता है जो हवा रोकती है। इन सबसे जलगांव में केले का उत्पादन काफ़ी बढ़ गया।
महाराष्ट्र के कुल केला उत्पादन का 71 फ़ीसदी हिस्सा जलगांव से आता है। साल 2012-13 में 40.10 लाख टन केला उगाने के साथ महाराष्ट्र, गुजरात के बाद दूसरे पायदान पर रहा। अगर जलगांव शहर एक राज्य होता तो यह केला उत्पादन में भारत का पांचवां राज्य होता