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तीस लाख सालाना आईटी रिटर्न भरने वाले हाईस्कूल फेल किसान रामसरन
रामसरन (बाएं)
हाईस्कूल फेल बाराबंकी (उ.प्र.) के उन्नत किसान रामसरन वर्मा अपनी तीन सौ एकड़ की हाइटेक खेती की कमाई से खुद के बनाए ह्वाइट हाउस में उन्नत नस्ल के कुत्तों की रखवाली में लग्जरी लाइफ गुजारते हैं। सिर्फ ब्रांडेड कपड़े पहनकर सरकार को सालाना 30 लाख का आयकर रिटर्न भरते हैं।
हमारे देश में एक ओर रोजाना लाखों, करोड़ों किसानों का रोना-धोना मचा हुआ है, लाखों किसान आत्महत्याएं कर चुके हैं, राजनीतिक दल, केंद्र-प्रदेश सरकारों, कृषि वैज्ञानिकों, अफसरशाहों, सियासी संगठनों के अलग-अलग वर्ग उन पर फोकस-ऐक्टिव हैं, दूसरी तरफ उन्ही हालात में कई एक ऐसे किसान भी आए दिन की सुर्खियां बन रहे हैं, जिनके खेतों में सोना बरस रहा है। वे सचमुच साबित कर रहे हैं कि हमारा देश आज भी सोने की चिरैया हो सकता है, बस समझादारी, हिम्मत और मेहनत से खुद की कमर कस लेने की जरूरत है।
एक ऐसी हिम्मतवर, सफल, आधुनिक किसान शख्सियत हैं, बाराबंकी (उ.प्र.) के एक मामूली से गांव टेरा दौलतपुर के 54 वर्षीय रामसरन वर्मा। वह 1986 से अपने खेत में टमाटर की खेती से ढाई-तीन लाख रुपए, आलू से लगभग एक लाख रुपए, मेंथा से पचास-साठ हजार रुपए प्रति एकड़ कमा रहे हैं। शुरू में वह छह एकड़ खेत में उन्नत खेती कर रहे थे। इस समय उनकी खेती का कुल रकबा तीन सौ एकड़ तक पहुंच चुका है। उनके साथ लगभग पचास हजार किसानों की रोजी-रोटी चल रही है। इसी सफलता पर रामसरन को इस साल केंद्र सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है।
रामसरन वर्मा बताते हैं कि अपनी खेती से वह इतनी अच्छी कमाई कर रहे हैं कि हर वर्ष उनको तीस लाख रुपए का इनकम टैक्स रिटर्न भरना पड़ रहा है। खेती की पारंपरिक धारणा बदलते हुए वह अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। रामसरन राजनीतिक समझ भी रखते हैं। वह किसानों की कर्जमाफी योजना की मुखालफत करते हुए कहते हैं कि सरकार को कर्ज माफी की जगह किसानों को नियमित तौर पर आर्थिक मदद उपलब्ध करानी चाहिए। इससे बुआई के लिए कर्ज की जरूरत नहीं होगी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र की 'पीएम किसान योजना' एक अच्छी स्कीम है। वर्मा का सुझाव है कि किसान गेहूं, तिलहन, दलहन, धान, गन्ने आदि की परंपरागत खेती की बजाय कैश क्राप यानी मेंथा, आलू, केला, स्ट्रॉबेरी, एलोवेरा जैसी फसलों की खेती करें। यही समय की मांग है। किसानों की मदद के लिए रामसरन खुद की वेबसाइट (vermaagri.com) भी चलाते हैं।
कभी घर की गरीबी ने वर्मा को अच्छी शिक्षा नसीब नहीं होने दी। अब तो खेतों में हाईटेक यंत्रों से केला, टमाटर, आलू, मेंथा की अपनी उत्तम खेती से उनके ठाट भी बड़े निराले हो चुके हैं। उनके पास ह्वाइट हाउस जैसी हवेली है। वह मजेदार जीवन शैली में हजारों रुपए के ब्रांडेड कपड़े पहनते हैं। अपनी रखवाली के लिए उत्तम नस्ल के शानदार कुत्ते पालते हैं। अब तो विदेशों के भी कृषि वैज्ञानिक, विशेषज्ञ और देश के आईएएस, पीसीएस उनसे प्रशिक्षित होने आते हैं। वह खुद तो धन-धान्य संपन्न हो ही चुके हैं, उनके खेतों में काम करने वाले लोग भी उनके काम के तौर-तरीके सीखकर छोटे-छोटे खेतों में टमाटर, केले की फसलों से दिन संवार रहे हैं।
मौजूदा समय में रामसरन 125 एकड़ में हाईटेक तरीके से टमाटर की खेती कर रहे हैं। प्रति एकड़ करीब चार सौ क्विंटल टमाटर पैदा होता है, जिसकी बिक्री से सवा दो लाख रुपए की कमाई हो जाती है। वह अपनी वेबसाइट पर रोजाना कम से कम 15 हजार किसानों अपनी खेती से प्रशिक्षित करते हैं। वैसे उन्होंने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से करीब 25 लाख रुपये का कर्ज भी ले रखा है। मार्च 2017 की बात है, नाबार्ड की सहयोगी संस्था बर्ड के प्रशिक्षक डॉ. श्रीनाथ रेड्डी और डॉ. कैलाश चन्द्र शर्मा के साथ दुनिया के 13 देशों की 33 सदस्यीय टीम रामसरन के गांव टेरा दौलतपुर पहुंची। उस टीम में वियतनाम, बांग्लादेश, फिलीस्तीन, तिरगिस्तान, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान, घाना, तंजानिया, केन्या, यूगांडा, जिम्बाब्वे, सूडान और मॉरिशस के अधिकारियों, कृषि वैज्ञानिकों, बैंक अधिकारियों, फाइनेंस के जानकारों ने उनके खेती के तरीके का मौके पर अध्ययन-अनुशीलन किया।
अब्दुल कलाम ने थी रामशरण को 'खेती का जादूगर' की संज्ञा
रामशरण वर्मा को 2007 में देश का सबसे बड़ा कृषि सम्मान राष्ट्रीय कृषि पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा 2010 में भी उन्होंने राष्ट्रीय कृषि पुरस्कार जीतकर अपनी मेहनत और काबिलियत का लोहा मनवाया। 2014 में बागवानी के क्षेत्र में भी इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों ने भी रामशरण वर्मा को वैज्ञानिक खेती के लिए सम्मानित किया। साल 2012 में एक कार्यक्रम में रामशरण वर्मा को सम्मानित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें खेती का जादूगर होने की संज्ञा दी थी।
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