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रामबाण औषधि है हल्दी, किसानों की गरीबी का भी इसकी खेती में है ‘इलाज’
किसानों को हल्दी की खेती करने से बहुत ही कम लागत में और कम खेती लायक जमीन में अच्छा मुनाफा हो सकता है। हल्दी का उपयोग उपचार में हजारों वर्षों से होता आ रहा है और इसके आलावा हर घर में इसका उपयोग होता है, अतः इसकी मांग पूरे साल रहती है।
वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए तरीकों से अगर हल्दी की खेती की जाए तो किसानों को अच्छे फसल की प्राप्ति हो सकती है। हल्दी से कुरकमिन तत्व निकलता है। इसका उपयोग अल्सर, पेट संबंधी तकलीफ और कैंसर जैसी बीमारियों के उपचार वाली दवाओं के निर्माण में किया जाता है। बाजार में इसकी कीमत 20 से 25 हजार रुपए किलो रहती है। तो आइए जानते है की हल्दी की खेती करने समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
हल्दी की किस्में
अल्प कालीन किस्में- इस किस्म के फसलें 7 महीने में पक कर तैयार हो जाते है।
मध्य कालीन किस्में- इस किस्म के फसलें 8 महीने में पक कर तैयार हो जाते है।
दीर्घ कालीन किस्में- इस किस्म के फसलें को पकने में लगभग 9 महीना लग जाता है।
उन्नतशील प्रजातियां हल्दी की प्रजातियां पाई जाती है जैसे कि सी.ओ.1, कृषणा, रोमा, रंगा, रश्मि,स्वर्ण, सुदर्शन, सुगंधम, पंत पीतम, सुरोमा, बी. एस. आर1, प्रभा, प्रतिभा, कान्ती, राजेंद्र, सोनिया, शोभा, सुगना, आजाद हल्दी1 एवं सुवर्णा आदि प्रजातियां हैI
बुवाई जिन किसान भाइयों के पास पानी की पर्याप्त सुविधा है वे अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक हल्दी को लगा सकते है। लेकिन जिनके पास सिंचाई सुविधा का पर्याप्त मात्र में अभाव है वे मानसून की बारिश शुरू होते ही हल्दी लगा सकते है किंतु खेती की तेयारी पहले से ही करके रखना चाहिए।
कटाई मई-जून में बोई गई फसल फरवरी माह तक खोदने लायक हो जाती है इस समय धन कंदो का विकास हो जाता है और पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती है तब समझना चाहिए कि हल्दी पक चुकी है तथा अब इसकी कटाई या खोदाई की जा सकती है। पहले पौधों के दराती हसिए से काट देना चाहिए तथा बाद में हल से जुताई करके हल्दी के कंदों को आसानी से निकाला जा सकता है।
बढ़ा हल्दी का एक्सपोर्ट स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया के मुताबिक वित्त वर्ष 2015-16 की पहली छमाही के दौरान देश से 46,500 टन हल्दी का एक्सपोर्ट हो चुका है, जबकि 2014-15 की पहली छमाही में 44,406 टन हल्दी का एक्सपोर्ट हुआ था।
हल्दी की खेती के लिए भूमि का चयन हल्दी की खेती बलुई दोमट या मटियार दोमट मृदा में सफलतापूर्वक की जाती है। जल निकास की उचित व्यवस्था होना चाहिए। यदि जमीन थोड़ी अम्लीय है तो उसमें हल्दी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
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