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जानिए कैसे अनोखी तकनीकें अपनाकर फसलों का उत्पादन बढ़ा रहे हैं ये किसान!
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित टिकरी गाँव के रहने वाले 63 वर्षीय किसान, राम अभिलाष पटेल पिछले दो दशक से जैविक खेती कर रहे हैं। मात्र ढाई एकड़ ज़मीन पर वह गेहूं, चावल और मौसमी सब्जियों की फसल के साथ-साथ मछली पालन भी कर लेते हैं। साथ ही, वह जैविक खाद भी बनाते हैं। इस तरह से अलग-अलग प्रकार की खेती और अतिरिक्त आय के साधनों से उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है। अच्छी बात यह है कि 12वीं पास यह किसान अपने फसल को मंडी की बजाय सीधा ग्राहकों को पहुंचाता है।
पटेल ने Kurmi world को बताया, “अगर मैं सब्ज़ियां मंडी में भेजूं तो वहां मुझे मेरी लागत और मेहनत के हिसाब से दाम नहीं मिलेगा। इसलिए मैंने शहरों में अपना नेटवर्क बनाया हुआ है और मैं सीधा ग्राहकों को अपने उत्पाद पहुंचाता हूं। मैंने अपने साथ में अन्य किसानों को भी जोड़ा हुआ है ताकि हम सभी मिलकर जैविक उगाएं और लोगों तक जैविक पहुंचाएं। इससे देश के नागरिकों को स्वस्थ आहार मिल रहा है और हम किसानों को मेहनत का सही दाम।”
हालांकि, राम अभिलाष पटेल की खेती के बारे में और बहुत-सी उपलब्धियां हैं जो उन्हें सिर्फ जैविक किसान नहीं बल्कि किसान वैज्ञानिक बनाती हैं। पटेल ने लगभग 25 बरस पहले चावल की फसल लगाने के लिए एक नई तकनीक ईजाद की थी। इसमें लागत और समय दोनों कम लगता है। इस तकनीक से आप सीधा अपने खेत में धान लगा सकते हैं, आपको पहले नर्सरी में पौध बनाने की और फिर उसे खेतों में लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। धान लगाने की इस विधि को उन्होंने ‘गोली विधि’ नाम दिया, जिसे अंग्रेजी में ‘क्ले पैलेट’ मेथड कहते हैं।
कहां से मिला आईडिया:
Ram Abhilash Patel, Innovative Farmer
पटेल बताते हैं कि उनके यहां धान से चूड़ा बनाने वाली मशीन चल रही थी। वहीं पास में गाँव के कुछ बच्चे खेल रहे थे और वह मिट्टी की गोलियां बना रहे थे। खेल-खेल में उन्होंने इस मिट्टी में पास में पड़े चावलों के दाने भी मिला लिए। पटेल कहते हैं, “मैं भी उन्हें काम करते हुए देख रहा था। उनके जाने के बाद किसी महिला ने इन मिट्टी की बनी गोलियों को पास के मेरे खेत में डाल दिया। उस समय मेरे मन में कुछ खास नहीं आया लेकिन फिर एक-डेढ़ महीने बीता और तब बारिश हो गई थी तो मैंने अपने खेत में जुताई कर रहा था, तब बैल और हल से यह काम होता था।”
पटेल को जुताई करते समय, खेत के एक कोने में धान के पेड़ दिखाई दिए जो अच्छे से पनप रहे थे। उन्हें पहले तो कुछ अजीब लगा पर फिर उन्हें बच्चों की बनाई मिट्टी की गोलियां याद आईं। उन्होंने उन कुछ पौधों को निकाला तो उनकी जड़ों की मिट्टी भी अलग थी। बस उसी पल उन्हें लगा कि अगर इस विधि से पूरे खेत में धान लगाया जाए तो शायद अलग से पौध लगाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। पटेल, इस विधि को लेकर इलाहबाद के कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचे और वहां वैज्ञानिकों को इस बारे में बताया।
वैज्ञानिकों ने उनकी बात सुनी और उन्हें प्रोत्साहित किया कि वह अपने खेत के छोटे-से हिस्से में यह प्रयोग करके देखें। पटेल बताते हैं कि केवीके की मदद से उन्होंने अगले मौसम में 5 बिस्वा ज़मीन के लिए यह गोलियां (क्ले पैलेट) तैयार किए। उन्होंने अप्रैल और मई के महीने में गोलियां बनाकर सूखा लीं। गोलियां बनाने के लिए उन्होंने तालाब की काली मिट्टी का इस्तेमाल किया क्योंकि इसमें जीवांश अधिक होता है तो यह काफी उपजाऊ होती है।
उन्होंने कहा,”तालाब की मिट्टी लेते समय भी ध्यान रहे कि जिस तरफ की हवा है उस तरफ से मिट्टी लें। इससे खरपतवार के बीज मिट्टी में नहीं बैठते क्योंकि वह हवा से सतह पर ही बहती रहती है। मिट्टी निकालने के बाद अगर यह बहुत पतली है तो इसमें राख मिलाएं न कि बाहर की मिट्टी। अब इसे आटे की तरह गुंथे और इसमें धान के बीज भी मिला लें। जब यह अच्छी तरह तैयार हो जाए तो आप इसकी गोलियां बनाएं। कुछ गोलियां बनाने के बाद देखें कि हर एक गोली में कितने बीज आ रहे हैं। यदि किसी गोली में सिर्फ 1-2 बीज ही हैं तो आप और बीज मिट्टी में मिलाएं।”
Patel with his family making clay pallets for paddy farming (Old Picture)
गोलियां बनाने के बाद इन्हें धूप में सुखाएं और फिर जून के आखिरी सप्ताह व जुलाई के पहले सप्ताह में इन्हें अपने खेत में लगाएं। समान दूरी पर आप लाइन से खेत में यह गोलियां लगा दें। इसके बाद, जैसे ही पहली बारिश हुई तो पटेल के खेत में पौधे अंकुरित होना शुरू हो गए। कुछ समय पश्चात, उन्होंने सिर्फ एक बार खेत में निराई की। वह कहते हैं कि उन्हें खेत में बहुत पानी लगाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी क्योंकि धान की जड़ को सिर्फ नमी चाहिए होती है और हमने पहले ही तालाब की मिट्टी से गोलियां बनायीं थीं। जिसमें काफी मात्रा में नमी होती है।
“इसमें लागत भी कम आई क्योंकि नर्सरी तैयार करने के लिए किसी लेबर की ज़रूरत नहीं पड़ी और समय भी बचा। बाद में जब हमने फसल काटी तो हमारा उत्पादन पहली फसल से लगभग एक क्विंटल ज्यादा था। एक-दो बार जब इसी विधि से धान की अच्छी उपज लेने में सफल रहा तो दूसरे किसानों ने भी मुझे जानना शुरू किया,” उन्होंने कहा।
साल 2005 में पटेल की इस अनोखी तकनीक के बारे में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन को पता चला। उन्होंने पटेल से न सिर्फ इस तकनीक को समझा बल्कि उन्हें राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित भी किया। पटेल कहते हैं कि किसानों से उनका जितना नेटवर्क जुड़ा और आज वह जहां भी हैं, इसका श्रेय NIF को ही जाता है। NIF ने उन्हें मौका दिया जिससे वह दुनिया भर के अन्वेषक किसानों से मिल पाए और तब से उनकी खेती ने एक अलग राह ले ली।
खेती के साथ मछली पालन भी
पटेल ने इसके बाद अपने धान के खेत में ही मछली पालन शुरू किया। खेत के एक किनारे पर उन्होंने 3 फ़ीट गहरा गड्ढा खोदा, जिसे बाकी तीन तरफ से मेढ़ों से बाँधा गया है। लेकिन खेत वाली तरफ से यह खुला हुआ है। इसमें उन्होंने पानी भर दिया और मछलियां डाल दीं। धान के खेत में थोड़ा-बहुत पानी भरकर रखा जाता है। “दिन में जब गर्मी होती है तो मछलियां गड्ढे में रहती हैं और रात को यह खेत में तैरती हैं। एक बात और मैंने नोटिस की कि पानी रहने से धान के पेड़ों की जड़ों पर अक्सर काई लगने लगती है। मछलियों के लिए यह काई और अन्य छोटे-मोटे जीवाणु उनका चारा होते हैं। इस तरह से आप एक ही खेत में दो फसल ले सकते हैं,” पटेल ने बताया।
पटेल अपने खेत में गेहूं, धान और मछली पालन के साथ मौसमी सब्ज़ियां भी लगाते हैं। उन्होंने अपने खेतों पर ही जैविक खाद बनाने की यूनिट भी लगाई हुई है। इससे उनके खेत को खाद मिलती है और साथ ही, दूसरे किसान भी उनसे खाद खरीदते हैं। सब्जियों को मंडी में बेचने की बजाय, वह सीधा ग्राहकों तक पहुंचा रहे हैं। वह कहते हैं कि उन्हें खाद से महीने का 5-6 हज़ार रुपये की कमाई होती है और सब्जियों से हर मौसम में वह लगभग डेढ़ लाख रुपये तक की बचत कर रहे हैं।
खोजा सदाबहार चारा
राम अभिलाष पटेल की एक उपलब्धि यह भी है कि उन्होंने पशुओं के लिए एक हरे चारे की खोज की है। वह कहते हैं कि अपने गाँव से 65 किमी दूर वह एक रिश्तेदार के यहां गये थे। यह बारिश का मौसम था और खूब बारिश हुई तो पास के जंगलों से कुछ पेड़-पौधे बहकर उस गाँव के खेतों के पास पहुंच गये। सुबह पटेल अपने रिश्तेदार के साथ टहलने गए तो उन्होंने देखा कि चारा चरने आए पशु खेतों के बाहर पड़े कुछ पेड़ों को खा रहे हैं। उन्हें लगा कि उन्हें इस पौधे के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए।
पटेल कहते हैं, “मैं वहां से कुछ पौधे ले आया और अपने यहां लगा दिए। जब यह पौधे बड़े हुए तो इन्हें मैंने पशुओं को खिलाया और कुछ जानकारों से इस पर चर्चा की। यह कोई जंगली पौधा था जिसे पशुओं के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। मुझे वैज्ञानिकों ने बताया कि इस पौधे में प्रोटीन की मात्रा भी अच्छी है। मैंने इसे नित्या घास नाम दे दिया। आज मेरे साथ और भी बहुत से किसान भाई इसे अपने खेतों की मेढ़ों पर उगा रहे हैं।”
सबसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने अपने साथ अपने इलाके के अन्य किसानों को भी जोड़ा हुआ है। उन्होंने कुछ समय पहले एक किसान उत्पादक संगठन का रजिस्ट्रेशन कराया है। उनका उद्देश्य है कि वह अपनी फसलों की खुद प्रोसेसिंग करें, जिससे उनके इलाके के किसानों को फायदा हो।
सम्पर्क सूत्र : किसान साथी यदि खेती किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें kurmiworld.com@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फ़ोन नम्बर +91 9918555530 पर कॉल करके या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं Kurmi World के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल ।
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