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आलू और प्याज की खेती छोड़ 3 एकड़ में लगाया थाई अमरुद का बाग, सालाना 5 लाख की कमाई

देश में बागवानी फसलों की बढ़ती मांग को देखते हुए कई किसानों ने पारंपरिक खेती से हटकर फलों की खेती का रुख किया है। जानकारों के मुताबिक बागवानी में भी वो किसान ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं जो क्वालिटी युक्त, बाजार की मांग के अनुसार खेती करते हैं। ऐसे ही एक किसान हैं मध्य प्रदेश के राजेश पाटीदार जो जैविक तरीके से बागवानी कर रहे हैं।

अगर आप अपने खेती या बागानी में सफलता हासिल करना चाहते हैं तो आप पौधों के लिए केमिकल युक्त रसायन नहीं बल्कि जैविक उर्वरक का उपयोग करें। अगर आप ऐसा करेंगे तो 100% इस बात की गारंटी है कि आप इसमें सफलता हासिल कर सकते हैं।

आज हम आपको एक ऐसे किसान से रूबरू कराएंगे जो परंपरागत खेती को छोड़ नए तकनीक को अपनाकर खेती कर रहें हैं और लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं। वह अपने बाग में थे अमरूद को लगाकर उससे अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

इंदौर के किसान राजेश पाटीदार अपने आसपास के ज्यादातर किसानों की तरह आलू, प्याज और लहुसन की खेती करते थे लेकिन लागत के अनुरूप में मुनाफा नहीं हो रहा, इसलिए राजेश ने अमरुद की बागवानी शुरु की। 3 एकड़ जमीन के मालिक राजेश पाटीदार पिछले 4 साल से थाई अमरुद की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें सालाना करीब 5 लाख रुपए की कमाई होती है। मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से करीब 55 किलोमीटर जमली गांव में राजेश पाटीदार की जमीन है, जिसमें वो अमरुद की खेती और उसके बीच में मौसम के हिसाब से सफेद मूसली, अदरक या हल्दी की इंटरक्रॉपिंग करते हैं।

"पहले मैं भी परंपरागत तरीके से आलू, प्याज और लहसुन की खेती करता था, जैसे बाकी लोग करते थे लेकिन बढ़ती लागत के कारण काफी काफी नुकसान हुआ, जिसके साल 2017 में मैंने उन्हें बंद कर दिया और बागवानी के साथ औषधीय पौधों की खेती शुरु कर दी।" राजेश अपनी शुरुआती कहानी बताते हैं।

राजेश पाटीदार (51 वर्ष) ने अमरुद का बाग (Thai Guava) लगाने के वक्त किस्म और तकनीक का सही चुनाव किया। छत्तीसगढ़ के रायपुर से वीएनआर किस्म के पौध मंगवाए। 3 एकड़ जमीन में उन्होंने करीब 1800 पौधे लगवाए हैं। औसतन किसान एक एकड़ में 600-800 पौधे अमरुद जैसी फसलों के लगवाते हैं, जिन्हें बीच ज्यादा दूरी चाहिए होती है और दूसरी फसलों को प्रमुखता से लेना होता है वो पौधे से पौधे और लाइन से लाइन के बीच की दूरी बढ़ा देते हैं। राजेश के पौधों की दूरी 7 गुणा 10 फीट है। राजेश बताते हैं, "पौधों में पोषण और सिंचाई का काम सही तरीके से हो और कम खर्च में हो इसलिए हमने शुरुआत में ही ड्रिप इरीगेशन लगवा दिया था।" अमरुद की बाग में अमूमन 18-20 महीने में फल आने शुरु हो जाते हैं और समय के साथ उत्पादन बढ़ता जाता है।

जॉब छोड़ लौटे गांव शुरू की खेती

वह बताते हैं कि शुरुआती दौर में मैंने एक प्राइवेट कंपनी में जॉब किया है परंतु जब मन ऊब गया तो उसे छोड़ गांव वापस गया और फिर यहां 3 एकड़ जमीन में खेती प्रारंभ कर दी। जब मुझे खेती में उतना अधिकतर आय प्राप्त नहीं हुआ था तो मैंने बागानी प्रारंभ की। वह बताते हैं कि वह अपने बागान में अमरुद के पौधे के बीच इंटरक्रॉपिंग फसल के तौर पर औषधीय फसल जैसे अदरक हल्दी मूसली आदि को लगाया हैं। इस वर्ष उन्होंने अपने बगीचे में सफेद मूसली उगाया जिससे उन्हें अधिक लाभ मिला। उनके 3 एकड़ में लगभग 4 क्विंटल मूसली का उत्पादन हुआ। मार्केट में मूसली की कीमत 850 रुपए होती है जिससे उन्हें हर वर्ष इससे 4 लाख की आमदनी होती

आय कम होने के कारण खेती छोड़ शुरू की बागवानी

वह किसान हैं 50 वर्षीय राजेश पाटीदार (Rajesh Patidar) जो मध्यप्रदेश के इंदौर से नाता रखते हैं। वह भी पहले आलू प्याज एवं लहसुन की खेती किया करते थे परंतु जब उन्हें इस खेती से उनके योग्य लाभ नहीं हुआ तब उन्होंने अमरूद की बागवानी प्रारंभ की। अब वह 3 एकड़ जमीन में 4 वर्षों से अमरूद की खेती कर उसमें सफलता हासिल कर चुके हैं एवं वह अपने बागवानी से हर वर्ष 500000 रुपए कमाते हैं। इसके अतिरिक्त वह अदरक, सफेद मूसली एवं हल्दी की इंटरक्रॉपिंग भी करते हैं। उन्होंने बताया कि पहले मैं परंपरागत खेती को अपना कर खेती किया करता था परंतु जब इसमें लागत बढ़ने लगी और मुनाफा कम आने लगा तब मैंने इसे वर्ष 2017 में छोड़ दी एवं एक बागवानी की शुरुआत की जिसमें औषधीय पौधों को लगया।

साल में 7-8 लाख की होती है उपज, 2-3 लाख रुपए आता है खर्च

कमाई के बारे में पूछने पर राजेश बताते हैं, "पिछले साल लॉकडाउन में अमरुद 50-60 रुपए किलो में बिका था, और करीब 20 टन उत्पादन हुआ था, इस साल और 30 टन का उत्पादन और 50 रुपए किलो के रेट का अनुमान है। पूरी फसल से सालभर में करीब 5 लाख रुपए सलाना की आमदनी कमाई होती है।"

राजेश बताते हैं, " पूरे साल में अमरुद से करीब 7-8 लाक रुपए की आय होती है, जिसमें से 2-3 लाख रुपए की लागत निकल जाती है। इस तरह 5 लाख के आसपास का मुनाफा होता है। वहीं अमरुद की बाग में मूसली की खेती से सालाना 3-3.5 लाख की उपज मिलती है और खर्च हटाकर औसतन डेढ़ से से 2 लाख रुपए तक बच जाते हैं।"

राजेश पाटीदार के मुताबिक अमरुद जैसे फलों में हार्वेटिंग के समय की बहुत अहमयित होती है, फल ज्यादा बड़ा होने पर ही उसका अच्छा रेट नहीं मिलता है।

राजेश के बाग में इस वक्त 400-700 ग्राम वजन के अमरुद लगे हैं। वो कहते हैं, "हमारी बाग में पहले चरण की हार्वेस्टिंग जारी है। जो फसल 500-700 ग्राम का होगा उसी की तोड़ाई होगी। फिर उन्हें पैक करके 20-20 किलो के बॉक्स में रखकर बाजार भेजा जाता है। जिस फल का वजन एक किलो तक हो जाता है, बाजार में उसका रेट कम हो जाता है इसलिए समय पर फलों को तोड़ा जाना जरुरी है। इंदौर मंडी के अलावा वो दिल्ली और मुंबई भी अपने अमरुद भेजते हैं।

लहसुन, आलू और प्याज की खेती छोड़ने के बाद उन्होंने बागवानी के अलावा खेतों में दो और प्रयोग किए थे, पहला उन्होंने अपनी खेती को जैविक किया और दूसरा बाग में पौधों के बीच में बची जगह में मूसली, हल्दी और अदरक जैसी कंद वाली फसलें उगानी शुरु की।

अपनी यात्रा के बारे में राजेश पाटीदार बताते हैं, "कुछ साल पहले मैं एक प्राइवेट कंपनी में काम भी करता था लेकिन जल्द ही मन उकता गया और गांव वापस आ गया फिर अपने गांव जमली से 15 किलोमीटर दूर 3 एकड़ की अपनी जमीन पर बाग लगाया।

बागवानी के साथ सफेद मुसली की खेती

राजेश आगे बताते हैं कि अमरूद के पौधों के बीच में इंटर क्रॉपिंग के तौर पर वह औषधीय फसलों जैसे सफेद मुसली (Musli) हल्दी और अदरक आदि की खेती करते हैं। इस साल उन्होंने अपने बगीचे में सफेद मुसली खेती जिसकी हार्वेस्टिंग कुछ दिनों पहले ही हुई है। जून महीने में उन्होंने सफेद मूसली की फसल लगाई थी। उन्होंने बताया कि तीन एकड़ से लगभग 400 किलोग्राम (4 कुंटल) सफेद मूसली का उत्पादन हुआ है।

राजेश बातते हैं, "खेत से निकालने के बाद सफेद मूसली (क्लोरोफाइटम बोरीविलियेनम) को अच्छी तरह सुखाकर इंदौर के सियागंज में बड़े व्यापारियों को बेच देते हैं, इस बार उन्हें 800-850 रुपए का दाम मिला है।"

खर्च के बारे में वे बताते हैं, "औषधीय फसलों में लगभग आधा खर्च होता है। इस साल सफेद मूसली की खेती से 3 से 4 लाख रूपए की कमाई हो जाएगी। जिसमें लगभग 40 से 50 फीसदी खर्च हो जाता है।"

हुआ था 20 टन फल प्राप्त

उन्होंने अपने बागवानी में रायपुर से वीएनआर किस्म के पौधे मंगवाकर लगाएं। उन्होंने 3 एकड़ जमीन में लगभग 1800 पौधे लगाएं। उनकी बगानी में पौधों की बीच की दूरी लगभग 7-10 फीट है। वह पौधों की सिंचाई एवं पोषण का बेहतर ध्यान रखते हैं इसलिए उन्होंने शुरू से ही ड्रिप इरिगेशन पद्धति को अपनाया है। वह बताते हैं कि अगर आप हम अमरूद की खेती करें तो हमे इससे लगभग 18 माह में फल प्रारंभ हो जाएंगे एवं समय के अनुसार इसकी उत्पादकता बढ़ने लगती है। वह बताते हैं कि साल में मुझे 8 लाख तक की राशि प्राप्त होती है जिसमें मुझे 3 लाख रुपए की लागत लगी होती है। अगले वर्ष उन्हें अपनी खेती में 20 टन फल प्राप्त हुए थे और उन्होंने अपने फल को 60 रुपए प्रतिकिलोग्राम बेचा था।

जैविक खेती के लिए करते हैं गाय पाल

उन्होंने बताया कि जैविक खेती के लिए मैंने गोपालन किया है। उनका मानना है कि अगर हम जैविक खेती कर रहे हैं तो गौ पालन अवश्य करना चाहिए क्योंकि इसके गोबर से बेहतर उर्वरक का निर्माण होता है। उन्होंने अपने फार्म में गोबर गैस प्लांट रखा है जिसके गैस का उपयोग रसोई में किया जाता है और जो अपशिष्ट बच जाते हैं उसका निर्माण उर्वरक बनाने में होता है। वह गौ मूत्र का उपयोग जैविक सरकार की निर्माण के लिए करते हैं अब यहां के किसानों का रुझान जारी खेती की तरफ अधिक बढ़ रहा है और वह भी राजेश से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते हैं। यहां सभी किसान जाविक विधि से खेती करते हैं इसलिए इसे जैविक गांव का नाम मिला है।

मध्य प्रदेश जैविक खेती में अव्वल

मध्य प्रदेश में जैविक खेती के प्रति किसानों का रूझान काफी बढ़ा है। मध्य प्रदेश कृषि विभाग की वेबसाइट के मुताबिक, मध्य प्रदेश में सबसे पहले 2001-02 जैविक खेती को बढ़ावा देने की पहल की गई थी। इस वर्ष प्रदेश के हर जिले के प्रत्येक विकास खंड के एक गांव में जैविक खेती करने का लक्ष्य रखा गया था। वहीं इन गांवों को 'जैविक गांव' का नाम दिया गया था। पहले साल यानि 2001-02 में प्रदेश के 313 गांवों में जैविक खेती की गई।
एग्रीकल्चर एण्ड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेव्हलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) के अनुसार, मध्य प्रदेश जैविक में देशभर में अव्वल है। मध्य प्रदेश के 0.76 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती की जाती है। राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2011 में जैविक कृषि नीति लागू की गई। इसके बाद इंदौर, उज्जैन, सीहोर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, रायसेन, भोपाल, जबलपुर, मंडला, बालघाट समेत कई जिलों के जैविक उत्पादों की देश-विदेश में मांग बढ़ने लगी।

सम्पर्क सूत्र : किसान साथी यदि खेती किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें kurmiworld.com@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फ़ोन नम्बर +91 9918555530 पर कॉल करके या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं Kurmi World के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल ।

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