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अमरूद की बाग से सालाना चार लाख कमाते हैं रमेश वर्मा

रमेश चंद्र वर्मा की बाग में करीब एक हजार अमरूद के पेड़ हैं, जिससे वो साल में करीब 4 लाख रुपये कमाते हैं। मेंथा के गढ़ बाराबंकी में फूल, सब्जी और बागवानी का काम तेजी से बढ़ा है। परम्परागत खेती जैसे धान, गेहूं, गन्ना, जैसी फसलो में बढ़ते मौसमी जोखिम के चलते अब किसान खेती के नए विकल्प तलाशने लगे हैं। बाराबंकी मुख्यालय से 35 किमी दूर फतेहपुर ब्लॉक के मझगवां शरीफ गाँव के किसान रमेश चन्द्र वर्मा वर्षो पहले अपने खेतो में पारम्परिक खेती करते थे। लेकिन वर्तमान में उन्होने अपने 20 बीघे के खेत में अमरुद की बाग लगा रखी है।

रमेश चन्द्र ने बताया, "शुरुआत में 20 बीघे के खेत में लगभग 450 अमरुद के पेड़ 150 आम के पेड़ लगाये थे। जिससे पेड़ो के बीच जो जगह मिलती थी उस पर खेती भी हो जाती थी। लेकिन बागवानी में अधिक लाभ देख अमरुद के पेड़ो की संख्या बढ़ा दी वर्तमान में लगभग एक हजार के आस पास पेड़ हैं जिनसे अच्छा लाभ प्राप्त हो जाता है।" अमरुद का फल साल में दो बार आता है और स्थानीय बाजारों से लेकर लखनऊ की मंडियों में आसानी से बिक जाता है चूंकि इसे गरीबो का सेब भी कहा जाता है इसलिए इसकी मांग गाँवो में अधिक रहती है।

रमेश चन्द्र ने बताया, "अमरुद की फसल की गुड़ाई साल में एक बार की जाती है और इसमें लगभग सात से आठ बार पानी देना पड़ता है बरसात में पानी नही देना पड़ता। बाग की रोज देख रेख करनी पड़ती है नही तो पेड़ो में तुरन्त कीड़े लग जाते है। जैसे कली आने वाली होती है दवाई का छिड़काव करना पड़ता है और बीस दिनों बाद जब बतिया आने लगती है तो सूंडी कीड़ा मारने के लिए कीटनाशक दवाई का छिड़काव करना पड़ता है और फल को स्वस्थ रखने के लिए टॉनिक का भी छिड़काव करते हैं। बाग़ में साल में दो बार रासायनिक उर्वरक एन पीके और डीएपी का भी इस्तेमाल करना पड़ता है। पूरे साल में लगभग दो लाख का खर्च जाता है और पूरा खर्च निकाल कर लगभग साढे तीन चार लाख रूपये बच जाता है।

क्षेत्र में मजदूरो की कमी के कारण अमरुद की खेती का आया बिचार

अमरुद की खेती का बिचार कैसे आया इस प्रश्न के जवाव में रमेश चंद्र ने बताया कि हमारे बड़े भाई के दो लड़के सरकारी सेवा में है और हमारे दो लड़को में एक आर्मी में नौकरी कर रहा है। जब खेतो में काम होता था तो मजदूरो की भारी किल्लत रहती थी और मजदूरी भी अधिक देनी पड़ती थी, जिससे एक दिन मन में बिचार आया कि ऐसी खेती की जाये जिसमे मजदूरो का प्रयोग होता हो कई लोगो से पूछा तो बागवानी की खेती करने की सलाह दी फिर जहा-जहा अमरुद की बागे लगी थी उनके मालिको से पूरी जानकारी ली अमरुद की खेती अपने गाँव में प्रारम्भ कर दी।

अमरुद में औषधीय गुण भी होते हैं

पटना के बैद्य बबेश दीक्षित बताते है कि अमरुद में औषधीय गुण भी होते हैं इसके कोमल पत्तियो का प्रयोग मुख में छाला और मधुमेह जैसे रोगों में किया जाता है और फल पाचन शक्ति को बढ़ाता है। जिला उद्यान अधिकारी जयकरन सिंह ने बताया, "बाराबंकी जनपद में लगभग 15700 हेक्टेयर भूमि पर अमरुद की खेती की जाती है। अमरुद की खेती करने के लिए सरकार की तरफ से अनुदान तो दिया जाता है लेकिन किसान अनुदान में कोई रूचि नही लेते है जिससे अनुदान की राशि पुनः वापस कर दी जाती है।"

सम्पर्क सूत्र : किसान साथी यदि खेती किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें kurmiworld.com@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फ़ोन नम्बर +91 9918555530 पर कॉल करके या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं Kurmi World के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल ।

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