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सोयाबीन की खेती में क्या हैं चुनौतियां? कैसे करें निपटारा? जानिए मध्य प्रदेश के प्रगतिशील किसान योगेंद्र सिंह पवार से

देश में सबसे ज़्यादा सोयाबीन का उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है।

सोयाबीन भारत की एक महत्त्वपूर्ण तिलहनी नकद फसल है। सोयाबीन को पिला सोना भी कहा जाता है। भारत में सोयाबीन तेल सबसे ज़्यादा लोकप्रिय और उपयोग में किए जाने वाला खाद्य है। देश में सबसे ज़्यादा सोयाबीन का उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है। सोयाबीन अनुसंधान केंद्र (ICAR-Indian Institute of Soybean Research) भी मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में है। मध्य प्रदेश के अलावा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में भी सोयाबीन की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। किसान ऑफ़ इंडिया ने मध्य प्रदेश के देवास के रहने वाले योगेंद्र सिंह पवार से सोयाबीन की खेती पर ख़ास बातचीत की।

परिवार की धरोहर खेती-किसानी को आगे बढ़ाया

पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर रहे योगेंद्र सिंह पवार किसान परिवार से ही आते हैं। योगेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने परिवार को शुरू से खेती-किसानी के कार्य करते देखा है, तो लिहाज़ा इस क्षेत्र की तरफ़ रुझान भी स्वाभाविक रहा। कहीं और नौकरी करने के बजाय, उन्होंने सोचा क्यों अपने परिवार के ही पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाया जाए। 50 साल के योगेंद्र यादव पवार करीबन पिछले 28 साल से खेती कर रहे हैं।

सोयाबीन अनुसंधान केंद्र और कृषि वैज्ञानिकों का पूरा सहयोग मिला

योगेंद्र सिंह पवार बताते हैं कि जब उन्होंने 1992 में खेती को ही अपना व्यवसाय चुनने का फैसला किया, उस दौरान सोयाबीन अनुसंधान केंद्र और कृषि वैज्ञानिकों का पूरा सहयोग मिला। वह उनके संपर्क में रहे और खेती की उन्नत तकनीकों के बारे में जाना। दिल्ली, गांधीनगर से लेकर पुणे तक कृषि से जुड़ी गतिविधियों में हिस्सा लेने का अवसर मिला।

सोयाबीन की उन्नत किस्मों की खेती

योगेंद्र सिंह पवार 22 हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती कर रहे हैं। जेएस 21-72 (JS-21-72), आरवीएसएम 1135 (RVSM 1135), आरवीएस 2024 (RVS 2024) और एनआरसी 142 (NRC 142) सहित सोयाबीन की कुल 6 किस्मों का वो उत्पादन लेते हैं।

सोयाबीन की खेती में लागत और उत्पादन

योगेंद्र सिंह पवार ने बताया कि सोयाबीन की खेती में प्रति हेक्टेयर करीबन 50 हज़ार की लागत आती है। जलवायु अनुकूल रहा तो प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल का उत्पादन रहता है। प्रति हेक्टेयर करीबन 25 से 30 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा रहता है

क्या हैं चुनौतियां?

योगेंद्र सिंह पवार कहते हैं कि पिछले तीन साल में पर्यावरण और जलवायु की बदलती परिस्थियों का नकारात्मक असर सोयाबीन की फसल पर पड़ा है। मध्य प्रदेश में कई किस्मों में बीमारियों के प्रकोप से फसलों को नुकसान पहुंचा है। हालात ये रहे कि पिछले साल प्रति हेक्टेयर 7 से 8 क्विंटल का ही उत्पादन रहा। योगेंद्र सिंह पवार ने बताया कि बोने के एक महीने तक बरसात ही नहीं पड़ी। इससे भारी नुकसान पहुंचा।

योगेंद्र सिंह आगे कहते हैं कि मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा फसल सोयाबीन की ही लगी है। वहीं उनके क्षेत्र में तो लगभग 100 फ़ीसदी किसान सोयाबीन की ही खेती से जुड़े हैं। फसल चक्र अपनाने में कई दिक्कतें आती हैं।

क्या हो सकता है समस्या का समाधान?

योगेंद्र सिंह कहते हैं कि इस तरह की किस्में विकसित की जाए, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो। जलवायु परिवर्तन हो रहा है, लेकिन किसान अभी भी 15 से 20 साल पुरानी किस्में लगा रहे हैं। किसानों तक उन्नत किस्मों के बीज पहुंच नहीं पाते। किस्में रिलीज़ तो हो जाती हैं, लेकिन किसान तक पहुंचने में उसे या तो देर हो जाती है या बीज उपलब्ध ही नहीं रहते। समय सीमा और उत्पादन क्षमता का तालमेल सही होगा तभी किसान सोयाबीन की अच्छी फसल ले सकते हैं। इस चुनौती पर चिंतन से काम करना ज़रूरी है।

सोयाबीन की खेती में इन बातों का रखें ध्यान

  • सोयाबीन के बीजों का रखरखाव अच्छे से करें। उनका अंकुरण अच्छे से होना चाहिए।
  • नुकसान की आशंका को कम करने के लिए बीजों का जर्मिनेशन टेस्ट करें।
  • बिना बीज उपचारित किए सोयाबीन की फसल लगाएं।
  • सलाह लेकर आवश्यकतानुसार दवाइयों का छिड़काव करें।
  • खरपतवार को सोयाबीन की फसल के पास पनपने दें। बचाव के लिए खरपतवार नाशकों का प्रयोग कर सकते हैं।

सोयाबीन की खेती में पंक्ति से पंक्ति की दूरी तकरीबन 35 सेंटीमीटर रखी जाती है। जो किस्म लंबे समय वाली होती हैं यानी कि 100 दिन से ज़्यादा दिनों में तैयार होती है, उनमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर रखी जाती है। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 3 से 4 इंच के आसपास होती है।

सही और पूरी जानकारी के बाद ही शुरू करें सोयाबीन की खेती

योगेंद्र सिंह पवार गेहूं और चने की भी खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि गेहूं की उन्नत किस्मों के चुनाव से उनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 90 क्विंटल तक भी गया है।

योगेंद्र सिंह पवार भावी किसानों को सलाह देते हैं कि अधूरे ज्ञान के साथ सोयाबीन की खेती करें। उन्नत तकनीक से लेकर उन्नत बीज और सावधानियां क्या बरतनी चाहिए, उसकी पूरी जानकारी जुटाएं। बता दें कि योगेंद्र सिंह पवार को उनके कृषि कार्यों के लिए कई सम्मानों से भी नवाज़ा जा चुका है।