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किचन और गार्डन में इस्तेमाल किया सिर्फ वर्षा-जल, हर दिन बचाया 13 हज़ार लीटर पानी
सिर्फ साफ़-सफाई के लिए ही नहीं, यह परिवार बारिश का पानी, खाना बनाने और पीने के लिए भी इस्तेमाल करता है।
देश के कई शहरों में पानी की समस्या है। गर्मी में पानी के लिए लोगों को वाटर टैंक मंगवाने पड़ते हैं। पानी की कमी का मुख्य कारण है भूजल स्तर का नीचे जाना। अब भूजल स्तर क्यों इतना गिरा है, इसकी कोई एक वजह नहीं है। पेड़ों का लगातार कटना, पारंपरिक जल-स्त्रोतों का खत्म होते जाना, प्रदूषण से मौसम में बदलाव और भी न जाने क्या-क्या?
अगर हम सोचें कि हम एक दिन में यह तस्वीर बदल देंगे तो यह संभव नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम कुछ करे ही ना। अगर हम सब अपनी तरफ से छोटे-छोटे कदम भी जल-संरक्षण की तरफ उठाएं तो यकीनन बड़ा बदलाव आ सकता है। और इस बात की सीख हमें चेन्नई के रहने वाले मुनीबाबु रेड्डी दे रहे हैं। पिछले दो सालों से बारिश के पानी को इकट्ठा करके अपने घर की ज़रूरतों और गार्डन के लिए इस्तेमाल करने वाले मुनीबाबु हम सबके लिए प्रेरणा हैं।
सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च में बतौर रिसर्च असिस्टेंट रिटायर हुए 65 वर्षीय मुनीबाबु रेड्डी को गार्डनिंग का काफी शौक है। इसके साथ ही, वह प्रकृति के साथ समन्वय से जीने में भरोसा रखते हैं।
Munibabu Reddy with his rainwater harvesting model
साल 2018 में उन्होंने अपने घर में वर्षा जल संचयन के लिए सिस्टम लगवाया। मुनीबाबु ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं अलग-अलग लेवल पर वॉटर हार्वेस्टिंग करता हूँ और फिर अलग-अलग कामों के लिए इस पानी का इस्तेमाल घर में किया जाता है।”
उन्होंने लगभग 7500 रुपये खर्च करके अपने घर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाया और आज वह इसकी मदद से इतना पानी इकट्ठा कर लेते हैं, जो लगभग 3 महीने तक उनकी दैनिक ज़रूरतों को पूरा करता है। इससे उन्हें पानी की समस्या नहीं होती और साथ ही, उन्होंने अपने घर के गार्डन में ही एक सोखता गड्ढा बनवाया हुआ है जो भूजल को रिचार्ज करने में मदद करता है।
आखिर क्या है उनका वर्षाजल संचयन मॉडल:
मुनीबाबु बताते हैं कि उनका घर दो मंजिला है और वह दोनों ही फ्लोर पर पानी को इकट्ठा करते हैं। पहले फ्लोर से आने वाले पानी को गार्डनिंग और भूजल रिचार्ज के लिए उपयोग किया जाता है और दूसरे फ्लोर के पानी को घर और किचन के कामों में इस्तेमाल में लिया जाता है।
पहले फ्लोर पर उनका गार्डन है। उन्होंने अपने गार्डन को इस तरह से बनाया है ताकि जब वह पेड़-पौधों को पानी दें तो गमले और ग्रो बैग आदि से ड्रेनेज होने वाला पानी भी एक जगह इकट्ठा हो जाए। इस पानी को वह बड़े बर्तनों में इकट्ठा करके, एक मोटर पंप की मदद से ऊपर रखे एक टैंक में पहुंचाते हैं। इस पानी में कुछ ताजा पानी मिलाकर वापस पेड़-पौधों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
“इससे पानी भी संरक्षित होता है और साथ ही, हम जो भी पोषक तत्व पौधों को देते हैं वह व्यर्थ बहने की बजाय दूसरी बारी में पानी के साथ पौधों को मिलता है,” उन्होंने आगे कहा।
इसके अलावा, अगर कभी बारिश हो जाए तो पहले फ्लोर से पानी नीचे ग्राउंड फ्लोर पर लगे गार्डन में आता है। यह पानी यहाँ लगे पेड़-पौधों की सिंचाई करता है और जो एक्स्ट्रा पानी होता है, वह गार्डन में बने सोखते गड्ढे में जाता है। इससे भूजल रिचार्ज में सहायता मिलती है।
वह कहते हैं कि इस तरह से अगर दो घंटे भी अच्छी बारिश हो जाए तो उन्हें अपने गार्डन में अगले दो हफ्ते के लिए पानी मिल जाता है।
घरेलू उपयोग के लिए वर्ष जल संचयन:
उनका दूसरा सिस्टम उनके घरेलू उपयोग के लिए है। उन्होंने अपने दूसरे फ्लोर की छत से बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए एक खास सिस्टम बनवाया है। उन्होंने छत से पानी को नीचे भेजने वाले पाइप को एक ड्रम से कनेक्ट कर दिया है। इस ड्रम में साइड में नीचे की तरफ छेद करके एक और पाइप लगाया गया है ताकि ड्रम से पानी बाहर जा सके।
इस पाइप से निकलने वाले पानी को इकट्ठा करने के लिए उन्होंने एक अलग से टैंक का निर्माण कराया है। वह बताते हैं कि छत से जो पानी आता है उसे पहले ड्रम में लिया जाता है। इस ड्रम को उन्होंने एक फिल्टर की तरह तैयार किया है।
इस फिल्टर के बारे में उन्होंने बताया, “सबसे पहले रेत डालें और उसके ऊपर एक जाली रखें। अब इसके ऊपर पत्थर डालें और फिर उसके ऊपर एक और जाली बिछाएं।
इसके बाद फिर से चारकोल डालें और उसके ऊपर एक जाली बिछाएं। अब अंत में कुछ पत्थर डालें। यह सब पानी के लिए एक फिल्टर का काम करेगा। अब बारिश का पानी पाइप से इस ड्रम में आएगा और इसकी तली में लगे नल से फिल्टर होने के बाद वाटर टैंक में चला जाएगा। इस वाटर टैंक से पानी को बाद में ज़रूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है।”
“हमारे वाटर टैंक की क्षमता 13 हज़ार लीटर पानी इकट्ठा करने की है। अगर कभी इससे भी ज्यादा बारिश हो जाए तो इसके लिए भी हम एक इंतज़ाम कर सकते हैं। आप फिल्टर वाले ड्रम से एक और पाइप लगाकर इसे अपने घर में बने किसी कुएं या बोरवेल से जोड़ सकते हैं। आपके वाटर टैंक में लगे पाइप में आप एक वाल्व लगाकर इसे ऑन-ऑफ कर सकते हैं। जब आपका वाटर टैंक भर जाए तो आप वाल्व को बंद कर दें ताकि बाकी पानी दूसरे पाइप से बोरवेल में चला जाए और यह भूजल को रिचार्ज करता रहेगा,” उन्होंने आगे कहा।
मुनीबाबु आगे बताते हैं कि इस पानी को वह अपने घरेलू उपयोग में लेते हैं। उनके घर में पीने के लिए और किचन में खाना आदि बनाने के लिए बारिश का पानी इस्तेमाल होता है। इस पानी को उपयोग में लेने से पहले अच्छे से उबाला जाता है और फिर इसे ठंडा करके किसी तांबे या फिर मिट्टी के मटके में रखा जाता है और उपयोग किया जाता है।
“पिछले तीन महीने से हम किचन और गार्डनिंग के लिए बारिश का पानी ही इस्तेमाल कर रहे हैं। चेन्नई में बहुत ज्यादा बारिश भी नहीं होती लेकिन अगर एक-दो तीन के अंतराल पर भी बारिश होती रहे तो आराम से पानी की आपूर्ति 3-4 महीने तक हो सकती हैं,” उन्होंने कहा।
मुनीबाबु रेड्डी पिछले दो सालों से बारिश के पानी की एक-एक बूँद को सहेज रहे हैं और वह अपने आस-पास के लोगों को भी यही करने की सलाह देते हैं। “आज की ज़रूरत यही है कि हम अपनी प्रकृति को बचाएं। ज़रूरी नहीं कि आप बहुत ज्यादा लागत का सिस्टम बनवाएं। आप अपने घर में किसी भी तरह से बारिश के पानी को इकट्ठा कर सकते हैं,” उन्होंने अंत में कहा।
Kurmi World, मुनीबाबु रेड्डी के इस कदम की सराहना करता है और उम्मीद है कि बहुत से लोग उनसे प्रेरणा लेंगे! आप उन्हें vmbreddy@yahoo.co.in पर ईमेल करके संपर्क कर सकते हैं!