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ओईस्टर मशरूम की व्यवसायिक खेती में बढ़ रहा किसानों का रुझान, कम लागत में अधिक मुनाफा देती है यह प्रजाति

दैनिक खान-पान में मशरूम ने अपनी अलग ही पहचान बना ली है। आजकल अधिकतर लोगों को मशरूम अधिक पसंद आने लगा है। कई प्रदशों में शब्जियों की छोटी-छोटी दुकानों में भी मशरूम खूब बिक रहा है। बाजार में अधिक मांग के चलते मशरूम की खेती भारत में तेजी से बढ़ी है। भारत में मशरूम की अनेकों प्रजातियां हैं। मशरूम की खेती के लिए जरूरी नहीं की किसान के पास बहुत ज्यादा खेत हों। मशरूम की खेती किसान अपने घर में भी कर सकता है और मुनाफा कमा सकते हैं। ऐसे ही सोनभद्र, बनारस, जौनपुर के किसान घर पर ही ओईस्टर मशरूम की खेती कर रहे हैं जो उनकी आय का बेजोड़ नमूना साबित हो रहा है। विंध्याचल मंडल के किसान कम जगह में अधिक मुनाफा देने वाली फसल को अपना रहे हैं। ओईस्टर मशरूम को बढ़ावा देने के लिए कुछ संस्थाएं ग्रामीणों को घर पर मशरूम की फसल तैयार करने के लिए नि:शुल्क प्रशिक्षण के साथ-साथ बीज भी उपलब्ध करा रही हैं।


इलाहाबाद ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के किसानों को ओईस्टर मशरूम की ट्रेनिंग देने वाले ट्रेनर मनोज पटेल (34 वर्ष) बताते हैं, “प्रशिक्षण में हम ग्रामीणों को ओस्टर मशरूम की एक महीने की ट्रेनिंग देते हैं। ओईस्टर मशरूम के बीज रांची से मंगाए गए थे। ये मशरूम गेहूं के भूसे में तैयार किए जाते हैं। इसके उत्पादन के लिए लोगों के पास जमीन होना आवश्यक नहीं है। ग्रामीण अपने घरों में इसे उगा सकते हैं। ऑइस्टर मशरूम का बाजार भाव काफी अच्छा है।


बागवानी विभाग के मशरूम विशेषज्ञ डॉ. निरवंत सिंह बताते हैं, "ओईस्टर मशरूम 10/10 के कमरे में लगभग छह किलो बीज बोए जा सकते हैं। बीजाई के 15 दिन बाद बीज में अंकुर आने लगता है। उसके बाद प्रतिदिन स्प्रे पंप से पानी देना चाहिए।" इलाहाबाद ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक रवि रंजन कुमार बताते हैं, “संस्थान से ट्रेनिंग करके निकलने वाले ग्रामीण अपने घरों और खेतों में ओईस्टर मशरूम की खेती कर रहे हैं। इस मशरूम की खेती में के बराबर लागत आती है। ओईस्टर मशरूम के बीज हम रांची से मंगाते है और किसानों को बांटते हैं।


मशरूम की होती हैं कई प्रजातियां

मशरूम एक तरह की फफूंद होती है, जो खाने में काफी स्वादिष्ट होता है। इसकी चार प्रजातियां होती हैं, जिन्हें खाने में इस्तेमाल किया जाता है। जैसे- ओईस्टर मशरूम, सफेद बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, दूधिया मशरूम और पुआल मशरूम होते हैं।

 प्रचुर मात्रा में होता है प्रोटीन

मशरूम में 47 प्रतिशत प्रोटीन के साथ अमीनो अम्ल, फॉलिक एसिड और भरपूर फाइबर होता है। साथ ही आयरन की प्रचुर मात्रा होती है। जो मानव शरीर के लिए लाभदायक होती है।

ओईस्टर मशरूम खेती की विधि

घर में ओईस्टर मशरूम की खेती करने के लिए सबसे पहले गेहूं के भूसे को 12 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है। उसके बाद भूसे में कीटनाशक, फफूंदनाशक दवा (बावेस्टीन, फार्मोलिन) मिलाकर रखा जाता है। फिर भूसे को डलिया में डालकर पानी निचोड़ दिया जाता है। इसके बाद भूसे को हल्की घूप में रख देते हैं जिससे उसमें नमी बरकरार रहे। इसके बाद 16/24 की पॉलीथीन को लेकर उसके नीचे के भाग को बांध देते हैं। फिर एक पॉलीथीन में एक इंच भूसे को उसमें फैला देते हैं फिर एक लेयर में ओईस्टर मशरूम के बीच फैला देते हैं। ऐसे ही एक पॉलीथीन में पांच लेयर बनाई जाती है। पॉलीथीन को ऊपर से कस के बांध देते हैं। हवा जाने के लिए उसमें 15 से 20 छेद कर देते हैं। पॉलीथीन को 10 से 12 दिन जमीन से ऊपर कमरे में रखते हैं और फिर पॉलीथीन को हटा देते हैं। जब भूसा पूरी तरह से सफेद हो जाता है तब बांस या लकड़ी के सहारे उनको जमीन से ऊपर छांव में रखते हैं। जब भी नमी की मात्रा कम हो तो स्प्रे से पानी का छिड़काव करते हैं। पांच से सात दिन बाद अंकुरण होने लगता है है फिर 10 से 15 दिन में मशरूम तैयार होने लगता हैं। मशरूम को घुमा कर तोड़ लिया जाता है। एक बंडल में दो से तीन किलो मशरूम तैयार होते हैं। इसकी खेती सितंबर से लेकर मार्च तक होती है।

 

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