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गन्ने की फसल में नवीन तकनीक के प्रयोग से पाई संपन्नता

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के कारकबेल गांव के निवासी नारायन सिंह पटेल भारत एक उत्साही और प्रयोगधर्मी किसान हैं। उनके पास 10 हैक्टेयर खेती है जहां वह प्रमुख रूप से गन्ने की फसल को उगाते हैं। कम उत्पादन के चलते गन्ने की फसल उनके लिए काफी लाभप्रद नहीं रही। इसमें रही दिक्कतों को दूर करने के लिए उन्होंने स्थानीय जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर और कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से संपर्क किया। उनकी सलाह पर नारायन सिंह ने गन्ने की खेती में अधिक दूरी बनाए रखने के सिद्धांत पर अमल किया जिससे उन्हें काफी फायदा मिला।

नारायन सिंह ने अपने प्रयासों को यहीं तक सीमित नहीं रखा, उन्होंने विशेषज्ञों द्वारा सुझाई गई विधियों में अपने स्तर पर कुछ और परिवर्तन किए जिससे उन्हें और अधिक फायदा मिला। विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने उन्हें गन्ने की खेती में 60-90 सेंटीमीटर की दूरी रखने को कहा था, जिसे उन्होंने 135 सेंटीमीटर कर दिया। इससे खरपतवार निकालने और अन्य कार्यों में काफी मदद मिली। उन्होंने स्वयं द्वारा विकसित ट्रैक्टर आपरेटर वीडर का प्रयोग किया। इससे उनकी उत्पादन लागत, समय और अन्य खर्चों में काफी कटौती हुई।

 

गन्ने की खेती में अधिक दूरी रखने की यह विधि जिले में काफी लोकप्रिय हो चुकी है। इस समय गन्ने की 40 फीसदी खेती में इसका प्रयोग किया जा रहा है। इससे गन्ने की बुवाई की लागत में 25-30 फीसदी (15,000 से 20,000 रुपये प्रति हैक्टेयर) तक कमी आई है। इस विधि में 50 फीसदी कम बीज की आवश्यकता होती है और इससे उत्पादन 72 फीसदी तक (950 कुंतल प्रति हैक्टेयर) तक बढ़ जाता है। खाद के लिए नारायन सिंह ने फर्टिलाइजर ड्रिल का विकास किया है जिसकी मदद से खाद को गन्ने की जड़ों तक पहुंचाया जा सकता है।

नारायन सिंह अब अपने अनुभवों को अन्य किसानों तक पहुंचाना चाहता है। इसके लिए उन्होंने किसान क्लब का गठन किया है। उसने अपनी नवीन तकनीक पर आधारित सीडी तैयार की है जिसकी 100 सीडी वह साथी किसानों को दे चुके हैं। अब नारायन सिंह क्षेत्र के लोगों में प्रगतिशील किसान के रूप में विख्यात हैं। खुद नारायन सिंह अपनी उपलब्धियों और खेती में बढ़ी लाभप्रदता से संतुष्ट हैं।

(स्त्रोत-एनएआईपी मास मीडिया सब प्रोजेक्ट,डीकेएमए, नई दिल्ली और जोनल प्रोजेक्ट डायरेक्टोरेट-7, जबलपुर)

 

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