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प्री बुकिंग से बिकते हैं सूरत के इस खेत में उगे लाल, पीले और सफ़ेद ड्रैगन फ्रूट

पेशे से इंजीनियर, सूरत के जशवंत पटेल ने BSNL में नौकरी से रिटायर होने के बाद खेती करना शुरू किया। आज वह ऐसी-ऐसी किस्मों के ड्रैगन फ्रूट उगा रहे हैं, जिनको चखना तो दूर हमने देखा भी न हो।

कॉमर्शियल फार्मिंग के लिए ड्रैगन फ्रूट एक बेहतर ऑप्शन है। कम लागत और कम वक्त में इससे अधिक कमाई की जा सकती है। पिछले कुछ सालों में इसकी डिमांड बढ़ी है और लोग इसकी फार्मिंग भी कर रहे हैं। खास कर कोरोना के बाद इसका इस्तेमाल इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में किया जा रहा है। गुजरात के सूरत में रहने वाले जसवंत पटेल रिटायरमेंट के बाद पिछले 4 साल से ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। उनके पास अलग-अलग वैराइटी के 7 हजार से ज्यादा ड्रैगन फ्रूट के प्लांट हैं, जिसकी मार्केटिंग वे गुजरात के साथ ही एमपी, राजस्थान और बाकी राज्यों में कर रहे हैं। इससे वे हर साल 8 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं।

68 साल के जसवंत गवर्नमेंट इंजीनियर रहे हैं। नौकरी के दौरान ही खेती को लेकर उनकी दिलचस्पी जागी। इसके बाद 2007 में उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर पॉली हाउस तैयार किया। इसमें उन्होंने मेडिसिनल फ्लावर्स लगाए। कुछ साल तक तो अच्छी मार्केटिंग हुई, देश के कई राज्यों में उन्होंने अपने प्रोडक्ट भेजे, लेकिन मार्केट में चाइनीज फ्लावर्स के आने के बाद उनके प्रोडक्ट की डिमांड घट गई। धीरे-धीरे आमदनी कम होने लगी, ऊपर से पॉली हाउस को मैनेज करने में पैसे ज्यादा लग रहे थे। लिहाजा उन्होंने यह काम बंद कर दिया।

उन्होंने बताया, “देश के कुल ड्रैगन फ्रूट उत्पादन (Dragon Fruit Cultivation In India) में गुजरात का योगदान लगभग 40 प्रतिशत है। चूंकि यह एक ड्राई पौधा है, जो गर्म वातावरण में भी अच्छे से विकसित होता है, इसलिए इसे अब भारत के कई हिस्सों में उगाया जा रहा है।”

फूल की खेती से हुई शुरुआत

नौकरी में रहते हुए ही उन्होंने 2007 में अपने बेटे और एक दोस्त के साथ मिलकर, अपने खेत में ग्रीन हाउस बनवाया था। जिसमें उन्होंने सजावट में उपयोग होने वाले, जरबेरा के फूलों की खेती शुरू की थी। हालांकि उस समय उनके दोस्त ही इसे संभालते थे। ग्रीन हाउस बनाने में उन्होंने हाईटेक तकनीक और साधनों का उपयोग किया था। वह बताते हैं, “उस समय हमारे फूल सूरत से दिल्ली और मुंबई भी जाते थे। हम उसे जारी रखना चाहते थे लेकिन 2012-13 में मार्केट में चीनी सजावटी फूल आने लगे थे और जरबेरा के फूलों की मांग काफी घट गई थी। हमें ग्रीन हाउस को चलाने में काफी खर्चा भी हो रहा था। जिसके बाद हमने ग्रीन हाउस खेती बंद कर दी।”

हमेशा कुछ अलग करने की चाह रखने वाले जशवंत इसी सोच में थे कि अब क्या नया किया जाए? उन्होंने गुजरात के तापमान और मिट्टी को ध्यान में रखकर कई फसलों पर प्रयोग किए। उन्होंने अमरुद के पेड़ भी लगाए थे लेकिन सबसे ज्यादा उत्पादन उन्हें ड्रैगन फ्रूट से हुआ। उस समय इलाके में कोई भी ड्रैगन फ्रूट नहीं उगाता था। बावजूद उन्होंने इसकी खेती शुरू की हालांकि इसमें फायदे के साथ नुकसान की भी संभावना थी।

 

15 प्लांट के साथ ट्रायल किया, सफल हुए तो खेती शुरू की

जसवंत कहते हैं कि 2014 में रिटायर होने के बाद मुझे कुछ नया करने के लिए वक्त मिल गया। कुछ दिनों तक मैंने अलग-अलग प्लांट के बारे में रिसर्च किया और फिर तय किया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती करेंगे। हालांकि तब इसका कॉन्सेप्ट बिल्कुल नया था और बहुत कम किसान इसकी खेती करते थे। इसलिए मैंने भी 15 प्लांट के साथ शुरुआत की ताकि अगर कामयाबी न भी मिले तो नुकसान कम हो, लेकिन किस्मत अच्छी रही और प्रोडक्शन अच्छा हुआ।

6 एकड़ जमीन पर खेती, 7 हजार से ज्यादा प्लांट

इसके बाद 2017 में जसवंत ने कॉमर्शियल लेवल पर ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की। उन्होंने देश की अलग-अलग जगहों से अच्छी वैराइटी के प्लांट मंगाए और करीब 6 एकड़ जमीन पर खेती शुरू की। दो साल बाद यानी 2019 में उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिलने लगा। उनके ज्यादातर प्लांट तैयार हो गए और फ्रूट निकलने लगे। इसके बाद वे सूरत और आसपास के इलाकों में इसकी मार्केटिंग करने लगे। मदद के लिए कुछ लोगों को उन्होंने अपनी टीम में शामिल कर लिया।

जसवंत कहते हैं कि फिलहाल हमारे पास 1800 पोल हैं। एक पोल पर करीब 4 प्लांट लगते हैं। इस तरह 7 हजार से ज्यादा प्लांट अभी हमारे पास हैं। इसके साथ ही हमने हाल ही में ट्रैली सिस्टम से भी 500 प्लांट लगाए हैं। इसमें प्लांट को एक पाइप के सहारे लाइन से लगाया जाता है। इससे जगह की बचत होती है। अगर वैराइटी की बात करें तो हमारे पास अभी कुल 7 वैराइटी हैं। इनमें थाईलैंड, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया की वैराइटीज हैं। हमारे पास रेड, यलो और व्हाइट तीनों ही तरह के प्लांट हैं।

कम लागत में अधिक मुनाफा

ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Cultivation) में वह हर वर्ष 1 एकड़ से 8 से 10 लाख रुपये कमा रहे हैं. जबकि इसकी शुरुआत करने के लिए उसको करीब 6 लाख रुपये खर्च करने पड़े थे. जिसके बाद वे अब किसानों से अपील कर रहे हैं कि रिवायती फसलों की खेती से बाहर निकल कर इस तरह की फसल उगाएं जिसमें पानी की भी कम लागत आए और मुनाफा भी अधिक हो. दरअसल, ज्यादातर किसान गेहूं और गन्ने की फसल उगाते हैं, जिसमें पानी की अधिक खपत होने के कारण ज्यादा लागत आती है. वहीं, ड्रैगन फ्रूट की खेती में पानी की बहुत कम खपत है और मुनाफा भी अधिक होता है.

ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) से जुड़ी जरूरी बातें

जशवंत कहते हैं कि Dragon Fruit, पोल बनाकर उगाए जाते हैं। एक पोल पर तकरीबन चार पौधे उगते हैं। इसके एक पौधे को उगाने में 100 रुपये लगते हैं। इस तरह एक पोल पर 400 से 500 रुपये का खर्च आता है। वहीं प्रोडक्शन 18 महीने बाद शुरू हो जाता है।

जून से शुरू होकर इसमें नवंबर तक फल आते रहते हैं। यानी अगर इसे आप दिसंबर या जनवरी महीने में लगाते हैं, तो अगले साल जून तक आराम से प्रोडक्शन () आने लगता है। जशवंत कहते हैं, “पहले साल एक पोल से पांच से छह किलो का प्रोडक्शन होता है। वहीं साल दर साल जैसे-जैसे पौधा विकसित होता है, उपज भी बढ़ने लगती है। तीन साल के बाद प्रोडक्शन 15 से 20 किलो तक पहुंच जाता है। इस तरह ड्रैगन फ्रूट में पहले ही साल पोल का खर्च निकल जाता है, फिर खाद और कटाई आदि का खर्च ही लगता है। यानी खर्च कम और मुनाफा ज्यादा।”

बाजार में इसकी कीमत की बात करें, तो जशवंत पटेल Dragon fruit को 200 से 400 रुपये प्रति किलो के भाव में बेचते हैं।

कैसे करें ड्रैगन फ्रूट की खेती?

पहले ऐसा माना जाता था कि ड्रैगन फ्रूट की खेती भारत में नहीं हो सकती। यह अमेरिका, वियतनाम, थाईलैंड जैसे देशों से भारत में आता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से भारत में भी बड़े लेवल पर इसका प्रोडक्शन हो रहा है। गुजरात तो इसका हब है। यहां सरकार ने इसका नाम ‘कमलम’ रखा है। इसके अलावा यूपी, एमपी, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी इसकी खेती होने लगी है।

ड्रैगन फ्रूट उगाने के लिए बीज अच्छे किस्म का होना चाहिए। ग्राफ्टेड प्लांट हो तो ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि उसे तैयार होने में समय कम लगता है। बरसात को छोड़कर पूरे साल इसके बीज लगाए जा सकते हैं। इसके लिए किसी विशेष किस्म की जमीन की जरूरत नहीं होती है। बस हमें इस बात का ध्यान रखना होता है कि पानी या जलजमाव वाली जगह न हो। महीने में एक बार सिंचाई की जरूरत होती है। मार्च से जुलाई के बीच प्लांटिंग करना ज्यादा बेहतर होता है।

प्लांटिंग के बाद नियमित रूप से कल्टीवेशन और ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। इसके लिए सीमेंट के खंभे की भी जरूरत होती है। एक खंभे के साथ तीन-चार प्लांट लगाए जा सकते हैं। जैसे-जैसे प्लांट बढ़ता है उसे रस्सी से बांधते जाते हैं। एक-सवा साल बाद प्लांट तैयार हो जाता है। दूसरे साल से फ्रूट निकलने लगते हैं। हालांकि तीसरे साल से ही अच्छी मात्रा में फल का प्रोडक्शन होता है।

इसके लिए टेम्परेचर 10 डिग्री से कम और 40 डिग्री के बीच हो तो प्रोडक्शन बढ़िया होता है। बेहतर प्रोडक्शन के लिए हमें ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। खाद को प्लांट की जड़ के पास अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके साथ ही जीवामृत का भी रेगुलर छिड़काव करना चाहिए। इसके लिए ड्रिप इरिगेशन ज्यादा बेहतर तरीका होता है।

इस रेट से बिकता है ड्रैगन फ्रूट

जोसेफ कहते हैं- “फलों का मौसम अप्रैल से अक्टूबर तक छह महीने तक चलता है. इस दौरान मैं किलो के हिसाब से 200 रुपये के हिसाब से फल बेचता हूं ” बागवानी में रोजगार पाने वाले मजदूर जीतू बताते हैं कि टीम हर छह महीने में गोबर खाद तैयार करती है और पौधों की पोषण संबंधी आवश्यकता को पूरा करने के लिए तीन महीने के अंतराल पर जमीन पर गोबर की खाद का छिड़काव करती है.

स्वास्थ्य के लिए अच्छा (Health Benefits Of Dragon Fruit)

Dragon Fruit में फाइबर, विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट की अच्छी मात्रा पाई जाती है। इसमें खास बात यह है कि यह कोशिकाओं, शरीर की सूजन और पाचन तंत्र के लिए लाभकारी है।

जशवंत पटेल के फार्म में थाईलैंड रेड का प्रोडक्शन (Dragon Fruit Cultivation) इतना अच्छा है कि एक फल तकरीबन 250 से 400 ग्राम का होता है। उन्होंने तीन एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) के लिए 1700 पोल बनवाए हैं। उन्होंने बताया कि पोल भी अलग-अलग तरीके से बन सकते हैं। ज्यादातर किसान सीमेंट या टायर से पोल बनवाते हैं।

आशा है Dragon Fruit से जुड़ी इन जानकारियों से किसानों को मदद मिलेगी। यदि आप भी इसकी खेती (Dragon Fruit Farming) के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं, तो जशवंत पटेल से 81608 95191 पर संपर्क कर सकते हैं।

ड्रैगन फ्रूट के फायदे

जशवंत ने बताया कि दिसंबर से अप्रैल तक इसका रेस्ट पीरियड होता है। इस दौरान पौधों की कटिंग की जाती है। एक पौधे से कटिंग करके, कई पौधे तैयार किए जा सकते हैं। किसान पौधे तैयार करके बेच भी सकते हैं। उनके फार्म में थाईलैंड रेड के 4000 पौधे, थाईलैंड वाइट के 1500 पौधे, वहीं Dragon Fruit की सबसे प्रीमियम वैरायटी गोल्डन येलो के 800 पौधे सहित ड्रैगन फ्रूट के कुल 8000 पौधे लगे हैं।

गौरतलब है कि अभी हमारे देश में Dragon fruit की पांच से छह किस्में उपलब्ध हैं। भारत में थाईलैंड रेड किस्म सबसे ज्यादा बिकता है। क्योंकि इसका स्वाद मीठा होता है। जशवंत ने बताया, “जो फल मीठा होता है, वही ज्यादा बिकता है। इसलिए वह रेड वैरायटी ज्यादा उगाते हैं। प्रीमियम वैरायटी गोल्डन येलो स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है, लेकिन यह मीठा नहीं होता है, इसलिए अपने देश में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है।”

कहां से ले सकते हैं ट्रेनिंग?

ड्रैगन फ्रूट की खेती की ट्रेनिंग स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र से ली जा सकती है। इसके साथ ही इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) जो देश में कई शहरों में स्थित है, वहां से भी ट्रेनिंग ली जा सकती है। इसके साथ ही ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसानों से भी इसके बारे में जानकारी ली जा सकती है। इसके अलावा इंटरनेट की मदद से भी जानकारी जुटाई जा सकती है। इसकी खेती को लेकर कई लोगों ने वीडियो तैयार किए हैं। कई संस्थान सेमिनार और वर्कशॉप भी आयोजित करवाते रहते हैं।

हर साल 8 लाख कमा सकते हैं मुनाफा

छोटे लेवल पर 100 से 200 प्लांट के साथ इसकी खेती की शुरुआत की जा सकती है। अगर बजट की बात करें तो शुरुआत में करीब एक लाख रुपए की लागत आएगी। जब आपकी फसल तैयार हो जाए, फ्रूट निकलने लगे और मार्केट में डिमांड हो तो आप इसका दायरा बढ़ा सकते हैं। सबसे चैलेंजिंग काम मार्केट में जगह बनाना होता है। जिसका मार्केटिंग नेटवर्क अच्छा है, बड़े शहरों और सुपर मार्केट तक पहुंच है, उसके लिए तो बल्ले-बल्ले है।

सम्पर्क सूत्र : किसान साथी यदि खेती किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें kurmiworld.com@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फ़ोन नम्बर +91 9918555530 पर कॉल करके या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं Kurmi World के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल ।

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