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दोनों पैरों से हैं विकलांग फिर भी अनार की खेती कर लाखों रुपये कमा रहे हैं: प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं तारीफ, पद्म श्री पुरस्कार सहित हासिल किए 17 अवार्ड्स

परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हो अगर इंसान का इरादा अटल हो और साहस के साथ निरन्तर प्रयास किए जाएं तो कोई भी लक्ष्य आसान हो जाता है। इस कथन को स्तरीय किया विकलांग किसान ने। सभी जानते हैं कि किसानी में कितनी मेहनत की जरूरत होती है जिसके लिए शारीरिक रूप से फीट होना निश्चित होता है। लेकिन आज बात एक ऐसे महान किसान गेनाभई दर्गाभई पटेल की जिन्होंने विकलांग होकर भी अपनी किसानी की सफलता की ऐसी चकाचौंध रौशनी फैलाई कि उसकी आभा सरकार के आंगन तक फैल गई।

जो अपनी मेहनत से अनार की खेती करके आज प्रति वर्ष करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं। इतना ही नहीं इन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर पदम श्री पुरस्कार सहित कुल 17 अवार्ड भी हासिल किए हैं और अब तो इन से प्रेरणा लेकर गाँव के लगभग 150 किसानों ने भी करीब 1500 बीघा ज़मीन पर अनार की खेती का काम शुरू कर दिया है तथा लाखों रुपए का मुनाफा भी कमाते हैं।

इन किसान का नाम है, गेनाभाई दरगाभाई पटेल (Genabhai Dargabhai Patel) , जो गुजरात के बनासकांठा जिले में रहते हैं। चलिए अब इनके बारे में और विस्तार से जानते हैं

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पोलियो की बीमारी से हुए ग्रस्त, बचपन से कई संघर्षों का सामना किया

गेनाभई पटेल (Genabhai Dargaabhai Patel) गुजरात के बनासकांठा जिले के अंतर्गत आने वाले सरकारी गोलिया गांव के निवासी हैं। गेनाभई का दोनों पैर पोलियो ग्रस्त है। पैर पोलियो ग्रस्त होने के कारण इनके पिताजी सोचते थे कि यह खेती में उनकी मदद नहीं कर सकतें। इसलिए वह गेनाभई की पढ़ाई पूरी करवाना चाहते थे। पढ़ाई पूरी करने के लिये गेनाभई को बहुत ही कम उम्र में 30 किलोमीटर की दूरी पर एक हॉस्टल में डाल दिया गया। वह अपने तिनपहिया साइकिल चलाकर आसानी से स्कूल जाते थे। गेनाभई 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद अपने गांव वापस गये।

वैसे तो गेनाभाई 15 वर्षों से खेती का कार्य कर रहे हैं, परन्तु अनार की खेती वे 9 सालों से ही कर रहे हैं। वह एक किसान परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। उनके पिताजी और भाई सभी मिलकर सारा दिन खेती का कार्य ही किया करते थे। लेकिन गेनाभाई को उनके परिवार वालों ने खेतों में काम करने को नहीं कहा था, क्योंकि उन्हें पोलियो होने की वज़ह से उनके दोनों पैर खराब हो गए थे।

उनके पिताजी चाहते थे कि वह अच्छी शिक्षा प्राप्त करके अपने जीवन को बेहतर बनाएँ। इसी कारण से उन्होंने गेनाभाई का एडमिशन अपने घर से 30 किलोमीटर दूर एक हॉस्टल में करवा दिया था ताकि वे अच्छे से पढ़ाई कर सकें। लेकिन उनका परिवार शिक्षित नहीं था इसलिए स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात ही उन्हें परिवार वालों ने फिर से गाँव में बुलवा लिया।

विकलांग होने की वज़ह से गेनाभाई खेती के काम में तो अपने पिताजी और भाइयों की सहायता नहीं कर पाते थे अतः उनकी मदद करने के लिए उन्होंने ट्रेक्टर चलाना सीख लिया। वह एक कुशल ट्रैक्टर ड्राइवर बन गए थे, बल्कि यूं कहें कि अपने गाँव के सबसे अच्छे ट्रेक्टर ड्राइवर बन गए थे। इसके साथ ही वे फसलों की देखरेख का काम भी किया करते थे।

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कृषि से रहा गहरा लगाव

गेनाभई खेती में अपने पिताजी की मदद नहीं कर सकते थे लेकिन फिर भी वह साथ में खेत जाया करते थे। तब उनके मन में विचार आया कि वह सिर्फ एक तरीके से अपने पिता की सहायता कर सकते हैं। उन्होंने ने ट्रैक्टर चलाना सीख लिया। हाथ से क्लच और ब्रेक को सम्भालने लगे और बहुत ही जल्द एक अच्छे ट्रैक्टर चालक बन गयें। गेनाभई के पिताजी परम्परागत तरीके से खेती करतें थे। वह गेहूं, बाजरा जैसे गुजरात के पारंपरिक फसलों को उगाते थे। सिंचाई की व्यव्स्था नहीं होने के कारण बोरबेल की सहायता से सिंचाई किया जाता था। लेकिन बोरबेल की मदद से सिंचाई करने में पानी अधिक बर्बाद होता था। गेनाभई को भी कृषि करना था। वह किसी ऐसे फसल की खोज कर रहे थे जिसे वह अपाहिज होते हुए भी उगा सकें और एक बार बोने के बाद अधिक वक्त तक उससे उपज मिलती रहें।

 

मोदी जी के भाषण से हुए प्रभावित, अनार की खेती करने का निश्चय किया

गेनाभाई ने बताया कि 2004-05 में जब वे डीसा में आयोजित एक कृषि मेले के दौरान देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से पहली बार मिले, तो उनके भाषण से प्रभावित होकर उन्होंने दोनों पैरों में विकलांगता होने के बावजूद खेती में कुछ नया करने का सोचा तथा वर्ष 2004 में आधुनिक तरीके से खेती शुरू करने का विचार किया।

52 साल के गेनाभाई का कहना है-“मैं खेती करना चाहता था इसलिए मैंने फसलों को देखना शुरू किया कि कौन-सी खेती मेरे अनुकूल होगी। कुछ ऐसा जिसे केवल एक बार उगाने की ज़रूरत हो और लम्बे समय के लिए रिटर्न्स मिले।

पहले वे आम की खेती करना चाहते थे, पर यह थोड़ा रिस्की होता है, इसलिए उन्हें आम की खेती पर निवेश करना ठीक नहीं लगा, क्योंकि आम साल में केवल एक बार ही उगता है और यदि फ़सल ख़राब हो गई तो किसान की मेहनत भी बेकार जाती है तथा उसे सारा साल इंतज़ार करना पड़ता है। उन्होंने कई सारे एग्रीकल्चर ऑफिसर यूनिवर्सिटी से खेती के लिए सुझाव लिए, फिर वे इस नतीजे पर पहुँचे कि उनके लिए अनार की खेती चुनना ही सही रहेगा।

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ऐसे आया अनार की खेती का विचार

गेनाभई (Genabhai) ने शुरु में आम का पेड़ लगाने के बारें में विचार किया। इसके साथ समस्या यह है कि यदि मौसम परिवर्तित हो तो आम के फूल गिर जातें है और फिर अगले वर्ष का इंतजार करना पड़ता। यह सोच कर वह दूसरे फसलों के बारें में जानने का प्रयास करने लगे। इसके लिये उन्होनें स्थानीय कृषि विभाग से सम्पर्क किया। कृषि विश्वविद्यालय भी गयें। इसके अलावा उन्होंने सरकार के कृषि मेले में जाकर जानकारी इकट्ठी की। इससे भी नहीं हुआ तो गेनाभई ने लगभग 3 महीने तक गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र का दौरा किया। उनके जज्बे ने उन्हें कामयाबी दिला दी। गेनाभई ने महाराष्ट्र के किसानों को अनार की खेती करतें हुयें देखा। महाराष्ट्र का मौसम भी गुजरात के जैसा ही रहता हैं। अनार में फूल सालभर उगते है और उन्हें ज्यादा देखभाल की भी जरुरत नहीं होती हैं।

गेनाभई ने वर्ष 2004 में महाराष्ट्र (Maharastra) से अनार के 18 हजार पौधें लेकर आये। अपने भाई की मदद से अनार के पौधों को खेतों में लगाया। गेनाभई ने बताया, “मुझे इस काम को करते देखकर गांव के लोगों को लगा कि मेरा दिमाग घूम गया है, क्यूंकि इससे पहले गांव में अनार की खेती किसी ने नहीं की थी।लेकिन गेनाभई का मानना है कि एक किसान की आंखे कभी धोखा नहीं खा सकती। गेनाभई के इस काम में उनके भाई और भतीजे ने काफी सहायता की।

 

दोनों पैरों से दिव्यांग होने पर भी शुरू की अनार की खेती

खेती से जुड़ी और ज़्यादा जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने गुजरात, महाराष्ट्र राजस्थान का दौरा भी किया और जब वे महाराष्ट्र में दौरे पर थे तो उन्हें उनके सारे सवालों का जवाब मिल गया। महाराष्ट्र में सफ़र करने के दौरान ही उन्होंने अनार की खेती करने का फ़ैसला किया। उनके पास अपनी स्वयं की खेती योग्य भूमि तो थी ही, परंतु वह बचपन से ही दिव्यांग थे, इसलिए उन्हें हिचकिचाहट थी कि वे यह खेती कर पाएंगे या नहीं। फिर उन्होंने अपने इरादों को मज़बूत किया और अपने फैसले पर अमल करने का सोचा।

इस खेती की शुरुआत के लिए पहले उन्होंने महाराष्ट्र से 15 रुपये प्रति पेड़ की दर से 6,000 पौधे खरीद लिए। जिसके लिए उन्हें 1.5 लाख रुपये का ख़र्च करना पड़ा था। 2004 और 2007 के बीच उन्होंने 18, 000 पौधे लगाए। उन्होंने खेती के लिए आधुनिक तरीकों का उपयोग किया। बस, फिर क्या था उन्हें कभी पीछे मुड़कर देखने की आवश्यकता नहीं पड़ी और आज गेनाभाई एक कामयाब किसान हैं तथा सभी किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं।

 

शुरुआत में कई बाधाएँ आयीं, परिवार ने दिया साथ

उनके गाँव के लोगों के लिए अनार की फ़सल कोई सामान्य फ़सल नहीं थी। इस वज़ह से बहुत से लोग गेनाभाई के फैसले से असहमत थे। लेकिन उनके परिवार ने उनका पूरा साथ दिया था, उनके फैसले को रजामंदी देकर बीज लगाने में भी उनकी सहायता की। पर अभी उनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ था। उन्हें अपनी फ़सल के लिए खरीददार भी नहीं मिल पा रहे थे। फिर उन्होंने इस समस्या को भी अपने एक आईडिया से सुलझा लिया। उन्होंने एक ऐसे कस्टमर को अपनी फ़सल बेची जो की सीधे खेतों से ही उनके प्रोडक्ट ले जाया करे। इस वज़ह से उनको अपनी फ़सल बेचने के लिए जयपुर या दिल्ली भी नहीं जाना पड़ा।

 

CCTV कैमरे से रखते थे फसलों पर नजर, ड्रिप विधि से की सिंचाई

दिव्यांग होने के कारण गेनाभाई खेतों में घूम-घूम कर फ़सल का मुआयना नहीं कर पाते थे, इसलिए हर एक पेड़ पर नज़र रखने के उन्होंने ने सारे खेत में CCTV लगवाए। उन्होंने अपनी फ़सल इस प्रकार से उगाई, जिससे ट्रायसिकल से भी वे हर एक पौधे तक पहुँच सकें। अनार की खेती शुरू करने के कुछ समय बाद ही उनके जिले में पानी की किल्लत गई थी। पानी की कमी होने की वज़ह से वहाँ के किसानों को खेती में बहुत परेशानी आने लगी। परन्तु गेनाभाई ने इस परेशानी का भी हल निकाला तथा ड्रिप सिंचाई तकनीक को अपनाकर फसलों की सिंचाई की। पानी की बचत भी हो गयी।

 

बाजार ना होने से बिक्री की समस्या

गेनाभई ने जो पौधे लगाए थे उसमें 2 साल बाद 2007 में फूल आना शुरु हो गया। इसे देखकर दूसरे किसान भी इनकी मदद से अनार की खेती करने लगे। लेकिन गेनाभई के लिये सबसे बड़ी चुनौती अनार को बेचने की थी क्यूंकि पूरे राज्य में अनार का बाजार कहीं नहीं था। अनार बेचने के लिये गेनाभई ने अनार की खेती करने वाले सभी कृषकों को बनासकांठा (Banaskantha) में एकत्रित किया और ट्रकों में अनार लादकर दिल्ली (Delhi) और जयपुर (Jaipur) के बाजारों में बेचने की व्यवस्था किए। लेकिन यह उपाय ज्यादा दिन तक टिक नहीं सका। इसलिए गेनाभई को ऐसे व्यापारी की जरुरत थी जो उनसे सीधा माल खरीद सके।

 

उत्पाद बेचने के लिए बनाई सार्थक योजना

गेनाभई ने अपनी पहली ऑर्डर के बारें में बताया कि व्यापारी को जब विश्वास होता है कि माल की पर्याप्त मात्रा है तब ही वह फल खरीदता है। अपने फल को बेचने के लिए उन्होंनें एक योजना बनाई। उनहोंने प्रत्येक खेतों में अलग-अलग किसानों को बैठाया और एक ही खेत को व्यापारियों को अनेक बार दिखाया। वास्तव में उनके पास सिर्फ 40 खेत थे लेकिन अपनी योजना के अनुसार उनहोंने व्यापारी को 100 खेत दिखाया जिससे उन्हें विश्वास हो गया कि माल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। हम सभी जानते है कठिन परिश्रम का फल जरुर मिलता है। गेनाभई को उनके मेहनत का फल मिला। उनके जिले के अनारो का सप्लाई दुबई (Dubai), श्रीलंका (Sri Lanka) और बांग्लादेश (Bangladesh) तक होता है। विदेशों में सप्लाई होने के वजह से किसानों को अच्छी आमदनी भी होती है। हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने दासा में एक यात्रा के दौरान गेनाभई के नाम का जिक्र भी किया था।

 

लाखों का हुआ मुनाफा

गेनाभई के अनार के पहले ऑर्डर की बिक्री 42 रुपये किलो के भाव पर हुई। इसके बाद गेनाभई ने 5 एकड़ की भूमि पर अनार की खेती की जिससे लगभग 54 हजार किलो अनार का उपज किए। गेनाभई ने बताया कि एक एकड़ पर किसानों को पारंपरिक खेती से 20,000 से 25,000 का आमदनी होती है लेकिन मुझे मेरी खेती से 10 लाख से अधिक का फायदा हुआ है।

 

अन्य किसानों के लिए बने प्रेरणा

गेनाभई से प्रेरणा लेकर गांव वालों ने भी पारंपरिक खेती को छोड़कर अनार की बागबानी करने लगे। किसानो की सहायता के लिये गेनाभई ने एक वर्कसॉप का आयोजन किया और इसमें कृषि जानकारों एवम कृषि वैज्ञानिकों को बुलाया, ताकि उनहोंने जो गलती किया वह दूसरे किसान भाई करे। वर्तमान में गेनाभई किसानों को समस्या से निपटने के लिये सुझाव भी देते है। वे कहतें हैं कि किसानो को पारंपरिक खेती और फसल के तरीकों से कुछ अलग भी सोचना चाहिए। जैविक खाद बनाने के लिये प्रत्येक किसान भाईयों के पास 2 देशी गाय होना चाहिए। इसके अलावा वह बताते हैं कि बाजार की मांग के हिसाब से उत्पादन करेंगे तो सभी किसान भाई अपने सामान को विदेशों में भी बेच सकते हैं। यह देश के लिए और उनके लिये भी लाभकारी होगा।

 

समस्याओं से बिना विचलित हुए निकाला समाधान

अपने इस व्यवसाय में गेनाभई को कई मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा। एक वक्त ऐसा आया जब पूरे जिले में जल स्तर नीचे चले जाने के कारण जल संकट गया। ऐसे में फलों की सिंचाई के लिये उन्होंने ड्रिप सिंचाई का व्यवस्था किया। गेनाभई का कहना है कि उनके पास ड्रिप सिंचाई करने स्थापित करने के लिये सिर्फ 50% सब्सीडी थी। आज यह बढ़कर 80% हो गई है। सरकार अनार की खेती करने वाले किसानों को 42 हजार की सब्सीडी देती हैं जिसकी सहायता से उन्होंने ने ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था की।

 

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अब अनार की खेती के लिए विख्यात है बनासकांठा

गुजरात में स्थित बनासकांठा अनार की खेती के लिए जाना जाता है। यहाँ पर उगाए जाने वाले अनार ना सिर्फ़ देश भर में बल्कि बहुत से दूसरे देशों जैसे श्रीलंका, मलेशिया, दुबई और यूएई इत्यादि में भी एक्सपोर्ट किया जाता है और विदेशों में जो अनार एक्सपोर्ट किया जाता है उसमें गेनाभाई का काफ़ी हद तक योगदान रहा है। समय बीतने के साथ-साथ बनासकांठा में अनार का उत्पादन भी बढ़ गया है और पिछले 12 वर्षों में यहाँ पर लगभग 35 हज़ार हेक्टेयर भूमि पर अनार उगाया जा रहा है। यह ज़िला बागवानी में सबसे आगे है और यहाँ पर अधिकतर कृषक अनार की खेती हेतु ड्रिप सिंचाई तकनीक का उपयोग किया करते हैं।

 

2012 में जहाँ लाखों की कमाई होती थी वह अब करोड़ों तक पहुँच गई है

गेनाभाई ने दिव्यांग होने के बावजूद अपनी लगन और अटल निश्चय से खेती में सफलता प्राप्त की। हर वर्ष उनका उत्पादन और मुनाफा बढ़ता चला गया। जब गाँव के सारे किसान खेती करके 20,000 से 25,000 रुपये ही कमा पाते थे, तब भी गेनाभाई 10 लाख रुपये तक की कमाई कर लेते थे।

साल 2012 में उन्हें अनार के उत्पादन में लगभग 26 टन का इज़ाफ़ा हुआ। परन्तु उस वर्ष में उन्होंने वे अनार 66 रुपये प्रति किलो की दर से बेचे थे। इस वज़ह से उन्हें 17.16 लाख प्रति हेक्टेयर की बजाय 20 लाख रुपये का मुनाफा हुआ। इस तरह गेनाभाई, जो 15.16 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की कमाई करते थे, उन्होंने 75.80 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया और फिर वर्ष 2018 तक तो उनकी आमदनी और बढ़ गई तथा अब तो वे करोड़ों रुपए की कमाई करते हैं।

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गेनाभाई पद्म श्री लेते हुए

7 सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार तथा पद्मश्री पुरस्कार से हुए सम्मानित

अनार की खेती में उनके सराहनीय कार्यों के लिए साल 2009 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ किसान का प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। फिर वर्ष 2012 में उन्हें राज्य का सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार भी प्रदान किया गया। अब तक उन्हें कुल 7 दफा सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार हासिल हुआ है।

गेनाभाई पटेल की प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में प्रशंसा की तथा पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी द्वारा उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाज़ा गया। इस बारे में उन्होंने बताया कि एक दिन उन्हें दिल्ली से एक फ़ोन आया था। फ़ोन उठाने पर उन्हें सूचना दी गई कि उनको पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। वे कहते हैं कि पहले तो मैं उनकी बात समझ ही नहीं पाया था, बाद में मैंने अपने भाई को यह बात बताई। फिर वे आगे बताते हैं कि मेरे दोनों पैरों में विकलांगता है, फिर भी मैं पुरस्कार लेने दिल्ली गया था। पुरस्कार लेते वक़्त मुझे प्रसन्नता का अनुभव हुआ था। इतना ही नहीं, राजस्थान के तत्कालीनी मुख्यमंत्री अशोक गहेलोत द्वारा भी उन्हें अनार कि फ़सल के लिये 1 लाख रुपए का पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

वाकई में, गेनाभाई दरगाभाई पटेल (Genabhai Dargabhai Patel) ने अपनी दिव्यांगता को कमजोरी नहीं बल्कि अपनी ताकत बनाया और उसे कभी अपने कामयाबी के रास्ते में रोड़ा नहीं बनने दिया। उनकी हिम्मत और मेहनत से वे सैकड़ों किसानों के लिए एक मिसाल बन गए हैं।

 

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