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कभी मजदूरी कर हर दिन कमाते थे 50 रूपये, आज खेती करके यह किसान कमा रहे 50 लाख सलाना

हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के किसान दिन रात मेहनत करके अनाज उपजाने के साथ-साथ खेतों के मिट्टी का भी ध्यान रखते हैं। ऐसी हीं एक कहानी है झारखंड के रहने वाले गंसू महतो की जो अपनी मेहनत से बंजर जमीन को उपजाऊ जमीन में परिवर्तित कर डाला।

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 30 किलोमीटर दूर प्रकृति की गोद में बसे ओरमांझी प्रखंड के सदमा गांव निवासी 41 वर्षीय गंसू महतो महज 50 से 100 रुपए की दिहाड़ी के लिए 20 किलोमीटर दूर काम करने जाते थे। उन्होंने मेहनत की बदौलत बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में परिवर्तित कर तीन-चार वर्षों में ही अपनी तकदीर बदल डाली। गंसू महतो की सफलता की कहानी आज कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गई है। रांची ही नहीं पूरे राज्यभर में उनकी गिनती प्रगतिशील किसानों के तौर पर होती है।

गंसू महतो के पास अपनी जमीन तो नहीं थी। लेकिन लगभग 9 एकड़ बंजर जमीन में अपना काम शुरू कर दिया। गंसू महतो ने बताया कि यह जमीन काफी बंजर थी इसे उपजाऊ बनाने के लिए इसमें गोबर की खाद धीरे-धीरे डाल कर इस बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया। शुरुआती दौर में इस जमीन पर गोड़ा धान और शकरकंद की खेती की।

गंसू महतो ने बताया कि साल 1998 में 12 डिसमिल जमीन में शिमला मिर्च की खेती की। उस शिमला मिर्च की खेती से वह लगभग 1 लाख 20 हजार की कमाई की। इस कमाई से गंसू महतो का आत्मविश्वास काफी बढ़ गया। और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।

झारखंड में पानी की काफी किल्लत होने के कारण यहां के किसान बारिश कि पानी पर निर्भर रहते हैं। जिससे किसानों के उपज सिर्फ खाने तक की ही होती है। इसीलिए यहां के किसान अपना जीवन-यापन चलाने के लिए दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। फिलहाल यहां की सरकार ने काफी योजनाएं किसानों तक पहुंचाई है। जिससे किसान पोली हाउस सब्सिडी पर ड्रिप इरिगेशन आधुनिक तरीके से खेती करना शुरू किए हैं। जिसका एक जीता जागता उदाहरण गंसु महतो हैं।

गंसू महतो बताते हैं कि सरकार की सब्सिडी की मदद से 25-25 डिसमिल में दो पॉलीहाउस तथा दो ग्रीन हाउस और ड्रिप इरिगेशन लगाया है। जिसमें जरबेरा फूल के पौधे लगाई है। या फूल 75 दिनों के बाद तोरा शुरू हो जाती है। वे बताते हैं कि 1 सप्ताह में दो बार फूलों की तुलाई होती है। और यह जरबेरा एक बार लगाने पर 4 सालों तक उपज देता है।

गंसू महतो के पास कुल 14 एकड़ जमीन है। जिसमें वह 9 एकड़ जमीन में खेती करते हैं। और बाकी के जमीन अभी चट्टानी है। गंसू अपने आधुनिक तरीके से खेती करने का शुरुआत 2015 में किया था जिसमें वह कुल 9 एकड़ जमीन में खेती किए थे। इस 9 एकड़ जमीन में 1 एकड़ जमीन में जरबेरा की खेती और 8 एकड़ जमीन में अनेक प्रकार के सब्जियां उगाते थे। गंसू महतो बताते हैं कि वह साल 2017 में 15 लाख की सब्जी बेच चुके हैं।

गंसू महतो बाजार का कोई भी कीटनाशक या खाद दवाई का उपयोग नहीं करते। यह दवाई और खाद खुद घर पर तैयार करते हैं।

इतनी कम दिहाडी पर किया करते थे मजदूरी

ओरमांझी प्रखंड के सदमा गांव के गंसू महतो का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसे भी दिन देखे हैं, जब उन्हें प्रतिदिन 50 रुपए की दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए कई किलोमीटर दूर तक साइकिल से काम पर जाना पड़ता था। कई वर्ष आर्थिक कठिनाई से जूझने के बाद उन्होंने अपनी खेत में ही पसीना बहाने का निर्णय किया।

पिछले साल की 50 लाख की कमाई

छत्तीसगढ़ के दुर्ग से खेती की बारीकियां सीखकर लौटने के बाद गंसू अपने गांव वापस लौटे और महज ढ़ाई से तीन सालों में ही अपनी बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर आमदनी में कई गुणा बढ़ोत्तरी कर ली। गंसू महतो ने पिछले साल 35 लाख रुपए का जरबेरा के फूल और 15 लाख रुपए से अधिक की सब्जियां बेंची। प्रारंभ में उन्होंने महज दो-ढ़ाई एकड़ में खेती प्रारंभ की, लेकिन आमदनी होने के बाद उन्होंने आसपास के ग्रामीणों से जमीन खरीद ली और आज उनके पास नौ एकड़ से अधिक खेती योग्य भूमि है। गंसू महतो सिर्फ अपनी जमीन पर खेती कर रहे है, बल्कि दूर-दूर से किसान उनके पास खेती को लेकर प्रशिक्षण लेने भी पहुंचे।

इस नवीन तकनीक का कर रहे प्रयोग

उन्होंने अपनी मेहनत और तकनीक के जरिए खेती की नई परिभाषा गढ़ी है। उन्होंने बताया कि उनकी खेती की एक विशेष बात यह भी होती है कि वे किसी प्रकार के कीटनाशक या खाद का इस्तेमाल नहीं करते है। सिर्फ पौधों को समय पर पानी उपलब्ध कराना ही उनका काम है। वहीं पानी की बचत के लिए भी स्पीलंटर तकनीक का प्रयोग किया गया है, इसके लिए प्रशासन की ओर से किसानों को 90 प्रतिशत तक सब्सिडी भी दी जाती है। शेष राशि किसानों को लगानी पड़ती है। इस तकनीक से पानी की काफी बचत होती है। सिर्फ पौधे में ही आवश्यकता के अनुरुप पानी पहुंचता है, इससे अनावश्यक खत-पतवार और घास भी नहीं पनपती है, जिससे पौधे को संरक्षित करने में लगने वाला श्रम भी बच जाता है।

परिवार सालों से जुटा है खेती में

गंसु महतो की खेती की एक विशेषता यह भी है कि इन्हें करीब नौ एकड़ भूमि पर खेती कार्य के लिए प्रतिदिन किसी को मजदूरी पर रखने की जरुरत नहीं होती है, बल्कि वे खुद अपनी पत्नी, बच्चों दो अन्य भाईयों समेत 10 लोगों के साथ खेती के कार्य को पूरा करते है। गंसु महतो का परिवार कई पीढियों से खेती किसानी से जुड़ा रहा है ,इसलिए परिवार के अन्य सदस्यों का भी इसमें पूरा सहयोग मिलता है। गंसू महतो आज इलाके में खेती किसानी के पर्याय बन चुके हैं। बंजर भूमि को जिस तरह से उन्होंने सोना उगाने लायक बनाया है निश्चित तौर पर इससे बदलाव की कहानी लिखी जा रही है।

 

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