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आईटी की नौकरी नहीं भाई तो किसानी में आजमाई किस्मत, आज हर महीने 3 लाख रुपये आसानी से कमाते हैं
हैदराबाद के रामपुर गाँव में जन्में आर नंदा किशोर रेड्डी का बचपन काफी साधारण से पारिवारिक माहौल में गुजरा था। पिता पेशे से किसान थे। जिस वजह से उन्हें किसानी करने का शौक भी बचपन से ही रहा है।
‘जिंदगी की राहों में अक्सर ऐसा होता है, फैसला जो मुश्किल होता है वही बेहतर होता है।’
ज्यादातर युवाओं का सपना होता है कि वे IT कंपनी में जॉब करे लेकिन सभी के लिए ये संभव नहीं होता। आज हम आपको एक ऐसे शख्स से रूबरू करवाएंगे, जिन्होंने IT कंपनी की नौकरी छोड़ खेती कर एक बेहतर किसान बनने की ठानी।
वह कहते हैं, “मुझे 35 हजार रुपए वाली नौकरी छोड़ने का कोई अफसोस नहीं है। मैं बचपन से ही खेतों और किसानों के बीच बड़ा हुआ हूँ। जिस कारण खेती के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी मुझे पहले से ही थी। हालांकि, आईटी सेक्टर को छोड़कर कृषि की तरफ आना थोड़ा मुश्किल काम था लेकिन मैंने खुद को यह चैलेंज दिया। इस काम में मेरे पिता और मेरे एक दोस्त ने मेरी हर मोड पर काफी मदद की। उन्होंने अपने खेत में पालक की खेती करने का फैसला लिया और इस फैसले ने उन्हे आगे बढ़ने की राह दिखाई। मिट्टी की तरफ लौट कर आना मेरे लिए काफी फायदे का सौदा रहा।”
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “घर पर पिता को खेती-किसानी करते लंबे समय तक देखा था। लेकिन, तब तक मेरे मन में ऐसा कोई विचार नहीं था। जब पूरा देश महामारी से जूझ रहा था और प्रोफेशनल्स की नौकरियां जाने लगी। उस समय भी कोई थोक में खाद्य सामग्री खरीदकर इकठ्ठा कर रहा था तब मुझे कृषि की अहमियत समझ आई।”
बचपन से ही खेती की ओर था रुझान
हैदराबाद के रामपुर गाँव में जन्में आर नंदा किशोर रेड्डी का बचपन काफी साधारण से पारिवारिक माहौल में गुजरा था। पिता पेशे से किसान थे। जिस वजह से उन्हें किसानी का करने का शौक भी बचपन से ही रहा है। लेकिन, समाज और परिवार को देखते हुए उन्होंने आई.टी इंजीनिरिंग का रास्ता अपनाया।
हालांकि, यह फील्ड उन्हें बहुत अधिक दिनों तक प्रभावित नहीं रख पाई और एक दिन ऐसा आया जब नंदा ने एक मोटी सैलरी वाली जॉब से रिजाइन दे दिया है और पिता के पास वापस गाँव चले गए। जहां उन्होंने खेतों में पारंपरिक तरीके से हो रही फसलों में बदलाव करके ऑर्गेनिक खेती पर जोर देना शुरू कर दिया।
लॉकडाउन के दौरान हुई खेती करने का एहसास
किशोर (R. Nanda Kishore Reddy) ने बताया कि, कृषि हमारे लिए कितना जरूरी है, इसका एहसास मुझे देश में लगे लॉकडाउन के दौरान हुआ। लोग लॉकडाउन के दौरान अपने घरों में खाने का सामान खरीदकर स्टोर करने लगे। यह सब मंजर दिल को झकझोरने वाला था और उसी दौरान मैंने अपने पांव कृषि के तरफ बढ़ाया।
अपने पक्के इरादों के साथ किशोर (R. Nanda Kishore Reddy) ने एक एकड़ में फैले अपने पॉली हाउस और दो एकड़ की अन्य जमीन पर विदेशी खीरा और पालक उगाना (Spinach Farming) शुरू किया। आज उनकी वार्षिक उपज 30 टन है और उनकी प्रति माह की आमदनी 3.5 लाख रुपये हो गई है।
उन्होंने (R. Nanda Kishore Reddy) बताया कि, पालक (Spinach Farming), विदेशी खीरा और सहायक फसलें की खेती करने के लिए करीबन 5 लाख रुपये की लागत आती है। इन 5 लाख रुपए में मज़दूरों को दिए जाने वाला पैसा, उर्वरक, कीटनाशक और पॉली हाउस की मरम्मत पर होने वाला सभी खर्च शामिल है।
आसान नहीं था फैसला लेना
बस इन्हीं इरादों के साथ, किशोर ने नौकरी छोड़ दी और खेत में अपने पिता की मदद के लिए गांव लौट आए। आज एक एकड़ में फैले पॉली हाउस और दो एकड़ की अन्य जमीन पर किशोर और उनके पिता राजा, विदेशी खीरा और पालक उगाते (Spinach Farming) हैं। उनकी वार्षिक उपज 30 टन है। जहां किशोर अपनी नौकरी से महीने में सिर्फ 35 हजार रुपये कमा पाते थे, आज उनकी आमदनी 3.5 लाख रुपये प्रति माह हो गई है।
पालक (Spinach Farming), विदेशी खीरा और सहायक फसलें उगाने के लिए, तीन महीनों के दौरान कुल लागत 5 लाख रुपये आती है। जिसमें मज़दूरों को दिए जाने वाला पैसा, उर्वरक, कीटनाशक और पॉली हाउस की मरम्मत पर होने वाला खर्च शामिल है। किशोर का दावा है कि कमाई औसतन 10 लाख तक पहुंच जाती है। साल के बाकी महीनों में वह अपने खेतों में शिमला मिर्च, हरी मिर्च और भिंडी की खेती करते हैं।
किशोर बताते हैं, “मैं बचपन से ही खेतों के बीच पला-बढ़ा हूं। खेती के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी थी मुझे। लेकिन आईटी पेशे को छोड़, कृषि की तरफ आना इतना आसान नहीं था। इसमें मेरे पिता और मेरे एक दोस्त ने काफी मदद की। उन दोनों ने मुझे इस क्षेत्र के बारे में काफी कुछ सिखाया। फसल की बुवाई कब करनी है, कब उसे काटना है और कौन सी फसल किस मौसम के लिए उपयुक्त है- ये सारी जानकारी मुझे पिताजी ने दी थी और जो बाकी बच गया था, उसे कृषि विषय में पढ़ाई कर रहे मेरे दोस्त ने समझा दिया था।”
इन फसलों की करते हैं खेती
नंदा ने घर वापसी करने के बाद पिता के साथ मिलकर खेतों में ऑर्गेनिक फार्मिंग की शुरुआत की। इसमें उन्होंने मल्टी फार्मिंग विकल्प को चुना। शुरुआत में उन्होंने एक एकड़ में पॉली हाउस और अन्य दो एकड़ में विदेशी खीरा व पालक उगाने लगे। एक साल में इसकी पैदावार 30 टन हुई। जिससे उनकी 3.5 लाख रुपए का मुनाफा हुआ। इस मुनाफे का गणित अब धीरे-धीरे उन्हें समझ आने लगा था। इसलिए उन्होंने इसका दायरा बढ़ा दिया। तीन महीने में पालक और खीरे की खेती समाप्त हो जाने वाले के बाद उन्होंने खाली पड़े खेतों में शिमला मिर्च, हरी मिर्च और भिंडी की खेती करनी शुरू कर दी हैं। वे ड्रिप इरिगेशन, नॉन रेसिड्युएल स्प्रे, रेज्ड बेड सिस्टम और ड्रिप फर्टिगेशन जैसे नए तकनीकों का उपयोग करके खेती करते है।
मेहनत में जोड़ दी टेक्नोलॉजी
अक्सर खेतों में काम कर रहे किसान भाई बेहद ही कड़ी मेहनत करके फसलों को उगाते हैं जिसके बाद हम सबका भरण-पोषण हो पाता है। चूंकि, नंदा ने तकनीक की दुनिया में काफी समय तक काम किया था जिसका उन्हें यहां पर पूरा फायदा मिला। नई चीजों को समझना और उन्हें उपयोग में लाना उनके लिए काफी आसान काम था। इसलिए उन्होंने खेती को फायदेमंद बनाने और शारीरिक श्रम को कम करने के लिए अधिक से अधिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया।
वह कहते हैं, “मैंने जैविक खेती और क्षेत्र में नए इनोवेशन के बारे में काफी जानकारी हासिल कर ली थी। इससे मुझे खेती में पूरा समय काम करने का हौसला मिला।”
क्या है ड्रिप फर्टिगेशन?
उन्होंने (R. Nanda Kishore Reddy) बताया कि, “ड्रिप फर्टिगेशन में पानी के साथ उर्वरकों को मिलाकर, डिपर के जरिए बूंद-बूंद करके पौधों तक पहुंचाया जाता है। इसप्रकार पौधों की जड़ें पानी को धीरे-धीरे सोखती हैं और पानी के साथ उर्वरक भी सीधा जड़ों में समान रूप से पहुंचता रहता है। इस तकनीक के जरिए मिट्टी में उच्च पोषक तत्व बने रहते हैं तरह यह मिट्टी में लंबे समय तक नम रखती है, जिससे पानी की बचत होती है और मिट्टी की उर्वरक क्षमता को भी बढ़ाती है। इसमें फसलों की पैदावार भी बढ़ती है तथा मिट्टी का कटाव भी कम होता है।”
क्या है रेज्ड बेड सिस्टम?
किशोर ने बताया कि, “रेज्ड बेड सिस्टम में कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है। इस तकनीक के जरिए खेत में बुवाई के समय क्यारियां बनाई जाती हैं और इन्हीं के जरिए सिंचाई की जाती है। इस तकनीक की सहायता से पानी की बचत की जाती है। FAO (फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ यूनाइटेड नेशन्स) के अनुसार, रेज्ड बेड सिस्टम, जल उपयोग दक्षता को बढ़ाने वाली एक बेहतर सिंचाई प्रणाली है।”
और भी हैं तरीके फायदे कमाने के
किशोर कहते हैं, “रेज्ड बेड सिस्टम से बेहतर उपज मिलती है, जिससे नालियों या क्यारियों को बनाने के लिए छोड़ी गई जगह की भरपाई हो जाती है। इसके अलावा, कई अन्य पारंपरिक तरीके हैं जिनसे फसलों की अच्छी पैदावार होती है, जैसे- फसल चक्र, खाद, फेरोमोन ट्रैप, रोग और कीट प्रतिरोध बीज, बीज उपचार और फसल अवलोकन आदि।”
बीज उपचार का मतलब समझाते हुए उन्होंने बताया, “फसलों को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए बीज बोने से पहले कुछ फंगशनासी या कीटनाशकों से उपचारित किया जाता है। उदाहरण के लिए पालक (Spinach Farming) को थीरम फंगीसाइड से ट्रीट किया जाता है, ताकि उसे गलने से रोका जा सके। कीट और प्रतिरोधक बीजों का चयन भी उच्च गुणवत्ता वाली उपज सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”
अन्य स्टार्टअप के साथ मिलकर किया काम
किशोर और उनके पिता ने अपने खेती को बेहतर बनाने के लिए Deep Rooted.Co के साथ मिलकर काम किया। बता दें कि, Deep Rooted.Co एक एग्रीटेक फॉर्म-टू-होम स्टार्टअप है, जो पैकेज्ड और क्यूरेटेड फल और सब्जियां बेचता है। साथ ही साथ ये स्टार्टअप किसानों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है, ताकि वे खेती से होने वाले लाभ को बढ़ा सकें।
किशोर (R. Nanda Kishore Reddy) ने बताया कि, Deep Rooted.Co के साथ काम करने के बाद हमारी आमदनी दोगुनी हो गई है। औसतन हम कंपनी से 45 दिनों में लगभग 4 लाख रुपये कमा लेते हैं।
‘खर्चे को कम करके, पैदावार बढ़ाने का लक्ष्य’
डीप रूटेड के सह-संस्थापक, अविनाश बीआर कहते हैं, “हमारा लक्ष्य मांग-संचालित आपूर्ति श्रृंखला के जरिए छोटे किसानों के होने वाले खर्च को कम करके, पैदावार और मुनाफ़े को बढ़ाना है। परिशुद्ध खेती हमारी इन-हाउस एग्रोनॉमी टीम की विशेषता है। खेती के लिए जमीन को तैयार करना, बुवाई और फसल के समय के साथ-साथ हम फसल चक्र के लिए योजना संसाधनों पर लगातार जानकारी साझा करते रहते हैं।”
उन्होंने कहा, “हमने नन्द किशोर जैसे किसानों के कृषि नुकसान को कम करके, पैदावार बढ़ाने में काफी मदद की है और फसल के बाद होने वाले नुकसान को भी 30 से 6 प्रतिशत तक कम कर दिया है। फिलहाल हमारे साथ बैंगलोर और हैदराबाद के 90 से अधिक किसान जुड़े हैं, जो विशेषज्ञों और कृषिविदों के मार्गदर्शन में फसल उगा रहे हैं।”
अविनाश का मानना है कि तकनीकी की अच्छी समझ रखने वाले किशोर जैसे युवा किसानों में आगे बढ़ने की काफी सम्भावनाएं हैं। उनके अनुसार, “जैविक खेती में उनकी दिलचस्पी और नई तकनीकों को सीखने का उत्साह उन्हें ज्यादा से ज्यादा उपलब्धियां हासिल करा पाने में सक्षम है। वह अपनी निरंतर कड़ी मेहनत और हमारे कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से काफी आगे तक जा सकते हैं।”
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