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महाराष्ट्र : कभी इंजिनियर रह चुका यह किसान आज खेती से हर साल कमा रहा है 20 लाख रूपये!

अनूप पाटील महाराष्ट्र के पुणे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर अपने गांव लौट आए और खेती करना शुरू कर दिया।

आईपीएस बनने का सपना देख महाराष्ट्र के अनूप पाटिल ने युवाओं को कामयाबी की नई राह दिखाई है। अनूप तो पचास हजार की इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ खेती से सालाना पचीस लाख कमा रहे हैं। श्याम ने तो मूली की उपज का देश में नया रिकार्ड बनाया है।

कई बार कुछ ऐसी हकीकतें सामने आती हैं, जो कामयाबी की मिसाल ही नहीं बनतीं, आम लोगों के लिए एक मजबूत प्रेरणा स्रोत भी बन जाती हैं।

सांगली (महाराष्ट्र) के गांव नागराले के युवा किसान हैं अनूप पाटिल, जिनकी उम्र अभी मात्र अट्ठाईस साल है। वह पुणे की एक कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। अच्छी सैलेरी भी मिल रही थी लेकिन अपनी जिंदगी में कुछ अलग कर दिखाना चाहते थे। दो साल पहले नौकरी छोड़कर वह गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र के सफल किसानों से मिलने निकल पड़े। उसके बाद बाजार में फसलों के मोल-तोल का जायजा लिया। कई नई जानकारियां मिलीं। इसके बाद अपने गांव नागराले लौटकर अपने बारह एकड़ खेत में शिमला मिर्च, मक्का, गन्ना और गेंदे के फूल की खेती करने लगें। अब उन्हे हर साल 25 लाख रुपए की कमाई हो रही है यानी हर महीने दो लाख रुपए से ज्यादा, जबकि नौकरी में उन्हे पचास हजार रुपए महीने मिलते थे।

सांगली जिले के नागरेल गाँव एक पेशेवर शिक्षक के घर में जन्मे अनूप ने कंप्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली। उसके बाद अनूप ने पुणे में नामी आईटी कंपनियों जैसे Wipro और Cisco में बतौर नेटवर्क इंजीनियर नौकरी भी की। 2008 से 2016 तक वह आठ साल पुणे में रहे। उनकी नौकरी अच्छी-खासी चल रही थी। हफ्ते में 5 दिन की नौकरी होती थी और वीकेंड्स पर वे फ्री होते थे। लेकिन जल्द ही उन्हें यह रूटीन वाली नौकरी बोरिंग लगने लगी।

हालांकि उनके माता-पिता चाहते थे कि अनूप पुणे में ही रहे और नौकरी करते रहे। भविष्य में शादी करने और पुणे में बसने का विचार भी उनके माता-पिता के मन में शुरू हुआ। लेकिन अनूप, जो इस ढलती ज़िन्दगी से तंग चुके थे। उन्होंने अपने माता-पिता को समझाया कि अगर हम घर की खेती पर ध्यान दें, तो हम मिट्टी को समृद्ध कर सकते हैं, अगली पीढ़ी के लिए अच्छा भोजन तैयार कर सकते हैं और वास्तव में समृद्ध जीवन जी सकते हैं।

जैसे-जैसे ये विचार उनके दिमाग में आते रहे, उनका हौसला भी बढ़ने लगा। और आखिरकार उन्होंने एक दिन नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद तीन महीने तक अनूप ने गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान में किसानों से मुलाकात की और उनकी खेती के बारें उनसे राय लेते हुए उनकी समस्याएं भी जानी। इसके बाद अनूप गाँव लौट आए और अपने परिवार को खेती का प्रस्ताव दिया। शुरूआत में परिवार के सदस्यों ने अनूप के विचार का विरोध किया और उन्हें नौकरी करने के लिये कहा। लेकिन अनूप खेती करने के लिए दृढ़ थे और उन्होंने परिवार को इसके लिए राजी कर लिया। अपने परिवार की अनुमति के साथ, अनूप ने कुल 10 एकड़ जमीन पर खेती करने की ज़िम्मेदारी ली।

पॉलीहाउस लगाकर की शुरूआत

अनूप ने शुरू से ही कृषि में व्यावसायिकता लाना शुरू कर दिया। बेहतर तकनीक का उपयोग करने का निर्णय लिया। उन्होंने पारंपरिक गन्ने की खेती को परिवर्तित करते हुए पॉलीहाउस स्थापित किए। इसकी लागत 20 लाख रुपये तक थी। अनूप ने खर्च के लिए बैंक से लोन लिया और इसके लिये उन्हें 50 प्रतिशत कृषि विभाग से सब्सिडी भी मिली। लेकिन पॉलीहाउस में बनी रंग-बिरंगी (लाल और पीली) शिमला मिर्च ने उन्हें इस बात का आभास कराया कि कृषि में आपदाएँ कैसे आती हैं।

 

खेत में बनवाया पॉलीहाउस

नागरले क्षेत्र के पॉलीहाउस में कोई भी रंगीन मिर्च नहीं लेता है। अनूप ने नौकरी के समय गुजरात में रंगीन मिर्च की खेती देखी थी। उन्होंने अपने पॉलीहाउस में मिर्च के पौधे लगाए। लेकिन प्रकोप के कुछ दिनों के भीतर, इनमें से एक हजार से अधिक पौधे वायरस का शिकार हो गए। इससे उन्हें काफी धक्का लाग साथ ही उन्हें आर्थिक और मानसिक नुकसान भी हुआ।

अनुप बताते हैं,

"लोगों ने मुझे रिझाना शुरू कर दिया। लोगों ने कहा कि खेती करना तुम्हारा काम नहीं है, तुम वापस पुणे जाकर नौकरी कर लो।"

नहीं हारी हिम्मत

बहुत सोचने के बाद, वह आखिरकार एक नई उम्मीद के साथ फिर खेती में लौट आए। उन्होंने जानकार किसानों के खेतों का दौरा किया। फसलों का बारीकी से अध्ययन किया। वायरस से संक्रमित पौधों को हटा दिया गया था। उन्होंने रासायनिक उर्वरकों के साथ कीटनाशकों के उपयोग का किया।

पीली और लाल शिमला मिर्ची की फसल

उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई और उन्हें 18-20 टन का उत्पादन मिला। इन मिर्चों की मुंबई और पुणे मार्केट में कीमत 90 रुपये प्रति किलोग्राम थी। इससे अनूप का आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद मिली।

मिर्ची के बाद उन्होंने गेंदे के फूलों की फसल की। इस फसल ने उत्पादन के मामले में उन्हें निराश नहीं किया। अनूप ने खुले मैदान में चार एकड़ में गेंदा लगाया है। इसकी उन्हें मार्केट में रेट भी 50 से 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिली।

अब धीरे-धीरे अनुप खेती से सफलता का स्वाद चखने लगे। इसके बाद अनुप ने गन्ने, स्वीट कॉर्न और सोयाबीन की खेती में भी हाथ आजमाया और अपनी सफलता में चार चांद जड़े।

अनूप ने खेती में प्राप्त अनुभव से सीख लेकर खेत के प्रबंधन पर जोर दिया। आज तक, उन्होंने कृषि में जोखिम को कम करने के लिए बहु-फसल प्रणाली को अपनाया है। इसलिए, भले ही एक फसल प्रभावित हो, लेकिन यह पूरी फसल को प्रभावित नहीं करेगी, दूसरी फसल का उत्पादन होगा।

अनुप कहते हैं,

"हमने जो शिक्षा हासिल की है, उसका पूरा उपयोग करके नई फसलों, बीमारियों, कीटों और उपचारों की खेती के बारे में सीखना शुरू कर दिया है।"

वह कृषि में नवीनतम तकनीकों के बारे में लगातार सीख रहे हैं। वे ध्यान से अध्ययन करके अपने खेत में आवश्यक तकनीकों को लागू करने का प्रयास करते हैं।

मछली पालन

अनूप ने अपनी जमीन का पूरा इस्तेमाल किया है। उन्होंने लगभग एक एकड़ बंजर भूमि में मछली पालन भी शुरू किया। उन्होंने इस आर्द्रभूमि क्षेत्र डेढ़ एकड़ में तीन मीटर गहरा एक तालाब बनवाया। इसके लिये उन्होंने पश्चिम बंगाल से मछलियों के खाने के लिये बीज मंगवाया। हालांकि मछली पालन के लिये उन्हें सरकार या विभाग से किसी तरह की मदद नहीं मिली।

अपने यहां की मछलियों को वे दूसरे राज्यों जैसे - कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश आदि में बेचते हैं जिससे उन्हें बेहतर आमदनी मिलती है।

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