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लाखों की नौकरी छोड़ 3 दोस्तों ने बनाई ट्रेकिंग कंपनी, सलाना टर्नओवर हुआ 1 करोड़

 The founders of Trekmunk – Mohit, Harshit, and Oshank.

अगर आप भी अपनी 9 से 5 वाली जॉब को छोड़कर, कोई रोमांचक बिज़नेस करना चाहते हैं तो इन तीन दोस्तों की कहानी ज़रूर पढ़ें।

यह कहानी तीन ऐसे युवा दोस्तों की है, जो अपनी नौकरी से ऊब गए थे। उन्हें कुछ अलग और रोमांचक करना था।

कॉर्पोरेट की दुनिया को अलविदा कर इन तीनों ने एक टूर एजेंसी की शुरूआत की जो लोगों को पहाड़ों की यात्रा करवाता है।

हर्षित पटेल (28 वर्ष), मोहित गोस्वामी (28 वर्ष) और ओशांक सोनी (32) , ये तीनों अलग-अलग जगहों पर काम करते थे। ओशांक एक इनवेस्टमेंट बैंकर थे, जबकि मोहित आईआईटी, खड़गपुर से इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। वहीं हर्षित माउंटेनर हैं।

ये तीनों एक दूसरे से पहले कभी नहीं मिले थे लेकिन उनका जूनून एक जैसा था। जब भी ये तीनों अपने काम से ऊब जाते तो सबकुछ छोड़कर कुछ दिनों के लिए ट्रेकिंग करने निकल जाते थे। वहाँ से रिफ्रेश होने के बाद अपने रुटीन में वापस जाते थे।

2014 में एक दिन ऐसा हुआ कि इनवेस्टमेंट बैंकिंग के काम के भारी दबाव से थककर ओशांक ने अपना बैग पैक किया और कोलकाता की फ्लाइट ले ली। कोलकाता में छोटी सी ट्रिप के बाद वह सिक्किम से गंगटोक तक रोड ट्रिप पर निकल गए। गोएचाला ट्रेक के साथ उनकी यात्रा समाप्त हुई और वह वापस गए। इस यात्रा ने उन्हें बैंक की नौकरी से बाहर निकलकर कुछ और करने के लिए प्रेरित किया।

मोहित ने IIT खड़गपुर से पढ़ाई की थी। इतने नामी और बड़े संस्थान में पढ़ाई करने के कारण उनके माता-पिता काफी खुश थे और उन पर गर्व महसूस करते थे। लेकिन ग्रेजुएशन के बाद मोहित को हमेशा लगता था कि उन्हें जो करना चाहिए, वह उसे नहीं कर पा रहे हैं। छह महीने के भीतर उन्होंने तीन नौकरी बदली। अंत में उन्होंने सबकुछ छोड़ने का फैसला किया और टिकट बुक करके लेह चले गए। इससे पहले उन्हें ट्रेकिंग का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन उन्होंने चंदर दर्रा में अकेले ट्रेकिंग की। मोहित कहते हैं, “वह मेरे जीवन का सबसे खास पल था।

हर्षित ने 19 साल की उम्र में अकेले घूमना शुरू कर दिया था। केरल के तट पर बाइक चलाते समय उनका एक्सिडेंट हो गया और उनके पैर की दो हड्डियां टूट गईं। एक्सिडेंट के एक साल बाद डॉक्टरों ने कहा कि वह पहले की तरह कभी नहीं चल पाएंगे। लेकिन उचित इलाज और फिजियोथेरेपी के बाद हर्षित ने लद्दाख में स्टोक कांगड़ी पर अकेले ट्रेक पर जाकर डॉक्टर की बात को गलत साबित कर दिया। इस उपलब्धि ने उन्हें पर्वतारोही बनने के लिए प्रेरित किया। उन्हें लगा कि अब वह कभी भी डेस्क पर बैठकर काम नहीं कर पाएगें।

ट्रेकिंग के अपने पैशन के कारण तीन दोस्तों ने अपना स्टार्टअप शुरू किया और टूर गाइड बन गए। पिछले साल उनकी कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ रूपए तक पहुँच गया।

कैसे हुई शुरुआत

2015 में ये तीनों ऋषिकेश स्थित ट्रैवल ऑर्गेनाइजेशन में ट्रेक लीडर की नौकरी के लिए इंटरव्यू के दौरान एक-दूसरे से मिले।

ओशांक कहते हैं, “इस इंटरव्यू के दौरान हमने एक दूसरे को जाना और हमने महसूस किया कि हम तीनों एक ही नाव में सवार हैं। हम अपने पैशन को पूरा करने के लिए कुछ करना चाहते थे। सौभाग्य से, हम तीनों नौकरी के लिए सेलेक्ट हो गए। कुछ महीने की ट्रेनिंग के बाद, हमें फुल-टाइम पोजीशन दे दिया गया।

दुर्भाग्य से यहाँ भी काम का माहौल उनकी पिछली कंपनियों के जैसा ही था। ओशांक और हर्षित ने नौकरी छोड़ दी और अपनी बाइक लेकर यात्रा पर निकल गए।

ओशांक बताते हैं, “उस समय मोहित कंपनी में ही थे जब हर्षित और मैंने नौकरी को छोड़ने का फैसला किया। हम उस ऑर्गेनाइजेशन में काम के माहौल से खुश नहीं थे। हमने अपनी बाइक ली और गुजरात के वलसाड से, कन्याकुमारी की ओर हर्षित के गृह नगर की यात्रा पर निकल गए। हर दिन हम इस बात की चर्चा करते हैं कि हम कैसे कुछ ऐसा करें कि जिससे यात्रा और ट्रेकिंग दोनों हो जाए क्योंकि यह हमारा जुनून था।

स्टार्टअप की शुरूआत

अपनी एक महीने की लंबी यात्रा के दौरान, दोनों ने अपने पैशन को पूरा करते हुए पैसे कमाने का प्लान बनाया। इस दौरान उन्हेंट्रेकमंकनामक एक टूर एजेंसी का विचार आया। जो ग्रुप के लिए ऑफबीट ट्रेक आयोजित करती है। नवंबर 2016 में अपनी ट्रिप से दिल्ली लौटने के बाद उन्होंने आधिकारिक तौर पर अपने स्टार्टअप को पंजीकृत कराया। इसके बाद मोहित भी ऋषिकेश स्थित टूर एजेंसी की नौकरी छोड़ इसमें शामिल हो गए। तीनों ने दिल्ली में अपने बचत के पैसे से किराए पर ऑफिस ली।

ओशांक कहते हैं, “इसके बाद, हर्षित और मैंने अमेरिका में नेशनल आउटडोर लीडरशिप स्कूल (एनओएलएस) में आयोजितवाइल्डरनेस फर्स्ट रिस्पांडरनामक 10-दिवसीय कोर्स में भाग लिया। इससे हमें अपने खुद की ट्रेकिंग और दूसरों को भी अपने साथ ले जाने का आत्मविश्वास आया।

वहीं दूसरी ओर तीनों के माता-पिता उनके निर्णय से खुश नहीं थे। उन्हें लगा था कि उनके बेटे अगर कॉरपोरेट सेक्टर में स्थायी नौकरी करें तो बेहतर होगा।

लेकिन ये तीनों अपने काम से काफी खुश थे। तीनों नए क्षेत्रों में टूरिज्म को बढ़ावा देना चाहते थे और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार उत्पन्न करना चाहते थे।

हर साल, 200 से 300 पर्यटक एक ही ट्रेकिंग ट्रेल्स से गुजरते हैं। पर्यटक केवल कचरा छोड़ते हैं बल्कि उनकी गतिविधियों से उस क्षेत्र में वनस्पतियों और जीवों को नुकसान पहुँचता है। हालांकि अधिकांश पर्यटक केदारकांठा जैसे ट्रेल्स से परिचित हैं लेकिन किसी को भी बुरहानघाटी, लमखागा पास और चामेसर खंगरी के बारे में पता नहीं है,” ओशांक कहते हैं।

ओशांक कहते हैं कि वह ट्रेकर्स से अपने साथ कोई डिस्पोजेबल प्लास्टिक सामग्री नहीं ले जाने के लिए कहते हैं। यदि ट्रेकर्स ऐसा करते हैं तो ट्रेकमंक द्वारा उन पर 500 रुपये से लेकर 2000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाता है।

जनवरी 2017 में, ट्रेकमंक ने हरमुक घाटी में अपने पहले 5-दिवसीय ट्रेक का आयोजन किया। इसमें तीन अलग-अलग बैच बनाए गए और हर बैच में 10 से कम सदस्य थे।

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A trek to Buran Ghati.

ओशांक कहते हैं, “उस ट्रेक में शामिल होने वाले सभी सदस्य ऐसे लोग थे जिन्होंने हमारे बारे में किसी और से सुन रखा था। अपने दोस्तों से हमारे बारे में सुनने के बाद पर्यटन के लिए आए। 2018 में हमने एक वेबसाइट लॉन्च किया और सोशल मीडिया पेज के लिए लोगों को काम पर रखा। पहले कुछ महीनों में हमने अपने पास आने वाले लोगों की संख्या पर नज़र नहीं रखी और ना ही यह जानने की कोशिश की कि हमने कितना कमाया है। हमें पता था कि हमने बहुत कुछ बनाया है। कंपनी के लिए और खुद पर जरूरत की चीजों पर खर्च करने के बाद भी हमारे पास कुछ पैसे बच जाते थे। इसने हमें कुछ अलग करने के लिए प्रेरित किया।

मेडिकल कैंप का आयोजन

अपने एक ट्रेक के दौरान ओशांक सांकरी बेसकैंप में यश पनवार नामक एक टूर गाइड से मिले। वह उस गाँव का रहने वाला था, जो निकटतम शहर देहरादून से 200 किलोमीटर दूर था। इससे उस क्षेत्र के लोगों को सही स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने में काफी दिक्कत होती थी।

ओशांक कहते हैं, “हमारे पास कुछ अतिरिक्त पैसे थे। हमने पुणे और नागपुर में डॉक्टरों से बात की, जो हमारे साथ ट्रेक करने और पहाड़ों में चिकित्सा शिविर आयोजित करने के लिए तैयार थे। अप्रैल 2017 में हमने अलग-अलग क्षेत्रों में विशेषज्ञ छह डॉक्टरों को लिया। उन्होंने सांकरी बेस तक ट्रेक किया और कुछ दिनों के लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया। मुंबई की डॉक्टर मंजरी भुसारी उन छह डॉक्टरों में से एक थीं जिन्होंने चिकित्सा शिविर का आयोजन किया। उन्हें प्रकृति से बहुत प्यार था और जब हमने उनसे ट्रेकमंक द्वारा शिविर का संचालन करने का अनुरोध किया गया तो वह बिना किसी संकोच के सहमत हो गई।

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Trek for a cause – medical camp.

 

इसके बारे में डॉक्टर मंजरी कहती हैं, “मैं ट्रेक को लेकर काफी उत्साहित थी। मैंने नहीं सोचा कि यह कितना थकाऊ होगा। हालांकि यह अच्छी तरह से व्यवस्थित था। यह एक चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि हमें ऊपर चढ़ाई करके शिविर का आयोजन करना था। फिर वहाँ से किसी दूसरी जगह जाकर कैंप लगाना था। इस बीच आराम करने का मौका नहीं था। लेकिन उन दुर्गम इलाकों में रहने वाले लोगों की मदद करके काफी संतोष मिलता था। मुझे याद है कि हमने कुछ जरूरी दवाई और विटामिन की खुराक वहाँ के रोगियों को दी थी।

इसके अलावा, तीनों दोस्तों नेकचरा मुक्त हिमालयट्रेक का भी आयोजन किया। इसके लिए वालंटियर्स पर्यटन सीजन खत्म होने के बाद हिमालय के विभिन्न स्थानों पर ट्रेक पर स्वेच्छा से जाते थे और पर्यटकों द्वारा छोड़े गए कचरे को साफ करते थे। वालंटियर्स से ट्रेक की सामान्य फीस का आधा हिस्सा लिया जाता है और मुफ्त में भोजन और रहने का इंतजाम किया जाता है।

यदि आपको ट्रेकमंक और उनके ट्रेकिंग ट्रिप के बारे में और भी कुछ जानकारी चाहिए तो आप उनके ऑफिशियल पेज पर जा सकते हैं।