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कोमल हैं, कमजार नहीं ; हम हिंदुस्तान की नारी हैं
आज की नारी किसी भी स्तर पर पुरुषों से कम नहीं है। चाहे खेती-किसानी हो या फिर देश की सीमा पर तैनात रह कर देश की रक्षा करना हो, शिक्षा जगत हो या उद्योग जगत हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। ये अपनी अजीविका तो चला ही रही हैं। साथ ही तसर उद्योग, मशरूम पालन व सिलाई कढ़ाई कर अन्य महिलाओं को भी आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है। आज हम ऐसी ही नारियों के बारे में बता रहे हैं।
स्वरोजगार से महिलाओं को स्वावलंबी बना रही सोमा
मुसाबनी खड़िया कॉलोनी में स्वरोजगार की राह पकड़ महिलाएं स्वावलंबी बन रही हैं। इनके स्वावलंबन में वह चीज काम आ रही है जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने भी बड़ी समस्या माना था। वह है खेतों में फसल काटने के बाद छोड़ दी जानेवाली पराली (पुआल) जिसे आमतौर पर किसान जला देते हैं। इन सबके पीछे जिस सशक्त महिला का हाथ है उसका नाम है सोमा महतो। सोमा के संघर्ष के बूते आज दर्जनों महिलाएं उससे जुड़कर आर्थिक संपन्नता हासिल कर रही हैं।
पराली सदुपयोग संस्थान बना दिखाई नई राह
‘पराली सदुपयोग संस्थान’ बनाकर सोमा अन्य सदस्यों के साथ मिलकर बेरोजगारी से निपटने के लिए खेतों में बेकार पड़े पुआल का उपयोग करती हैं। खेतों में बेकार छोड़े गए पराली यानी पुआल को एकत्रित कर संस्थान की महिलाएं मशरूम की खेती कर रही है। मशरूम उत्पादन के बाद बेकार हुए पुआल को सड़ाकर उसमें नीम के पत्ते, खली, गोबर, बची सब्जी समेत अन्य सामग्री मिलाकर जैविक खाद तैयार कर रही हैं। ऐसा कर ‘पराली सदुपयोग संस्थान’ की महिलाओं ने पर्यावरण संरक्षण और समाज को नई दिशा देने के साथ आर्थिक रूप से आत्म निर्भर भी हो रही है। संस्थान द्वारा उत्पादित मशरूम की मांग दूर-दूर तक है। पर्यावरण संरक्षण और उपजाऊ भूमि को बंजर होने से बचाने के लिए शुरू किए गए उनके मुहिम को लोगों का व्यापक समर्थन मिल रहा है।
पिता की मृत्यु के बाद शुरू किया अभियान
पराली सदुपयोग संस्थान की प्रमुख सोमा महतो के पिता छत्रधर महतो मुसाबनी माइंस के मध्य विद्यालय में सहायक शिक्षक थे। माइंस में खनन बंद होने पर स्कूल भी बंद हो गया। जिसके बाद वे बेरोजगार हो गए। इसी दौरान उन्हें कैंसर हुआ और उनकी मृत्यु हो गई। आर्थिक तंगी ङोल रहे परिवार पर विपत्ति टूट पड़ा। किसी प्रकार का नशापान नहीं करने और खानपान भी ठीक रहने के बावजूद कैंसर की शिकायत ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया। चिकित्सकों ने आशंका जताई की खाद्यान्नों में इस्तेमाल हो रहे रासायनिक खाद से भी कभी-कभी कैंसर की शिकायत होती है। इसके बाद सोमा महतो ने लोगों को जैविक कृषि के प्रति जागरूक करने के लिए और पौष्टिक मशरूम से समाज को स्वस्थ्य बनाने के लिए लोगों को जागरूक कर रही है। उनका मानना है कि महिला साथियों के साथ मिलकर वे समाज को सही दिशा देने की कोशिश कर रही हैं।
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