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भारतीय इतिहास के लौह पुरुष और आजाद हिंदुस्तान के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की 31 अक्टूबर को जयंती है। पूरा देश इस दिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाएगा। सरदार पटेल की ये परिकल्पना थी कि देश एक राष्ट्रशक्ति तब तक नहीं बन सकता जबतक उस सामूहिकता का सही संचालन न किया जाए। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस दिन को राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित किया गया था।
गांधी के चंपारण सत्याग्रह से पटेल काफी प्रभावित थे
सरदार पटेल की गांधी से कई बातों पर अलग अलग राय थे लेकिन गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से वे काफी प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया।
खुद का भी मकान नहीं था सरदार पटेल के पास
सरदार पटेल ऐसे नेता थे जिनका खुद का मकान नहीं था। वे अहमदाबाद में किराए के मकान में रहते थे। साल 1950 में निधन के समय उनके अकाउंट में सिर्फ 260 रुपए ही थे।
इस दौरान मिली सरदार की उपाधि
सरदार पटेल बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे थे। इसमें मिली सफलता पर वहां की महिलाओं ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को ‘भारत का बिस्मार्क’ और ‘लौहपुरुष’ भी कहा जाता है। सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे।
पटेल के आगे झुके थे अंग्रेज..
पटेल अपने लक्ष्य में सफल हुए, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार को उस साल का राजस्व कर माफ करना पड़ा। इसके साथ वह गुजरात के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए।
देश की आजादी के लिए किया संघर्ष…
महात्मा गांधी के कार्यों व आदर्शों से प्रेरित होकर पटेल भी देश की आजादी के लिए किए जा रहे संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए टैक्स के विरोध में खेड़ा, बारडोली व गुजरात के अन्य क्षेत्रों से किसानों को संगठित किया और गुजरात में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की।
पटेल की शादी..
17 साल की उम्र में वल्लभ भाई की शादी हो गई थी। उनका ब्याह गना गांव की रहने वाली झावेरबा से हुआ।
पेशे से वकील थे ‘पटेल’
पटेल का गोधरा से गेहरा नेता है। वहां उन्होंने एक वकील के रूप में अपनी कानूनी प्रैक्टिस शुरू की थी। वह एक सफल वकील थे।
भारत पुत्र को मिला था ‘भारत रत्न’..
सन 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरान्त ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था
पटेल का निधन..
सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को हुआ था। मुंबई, महाराष्ट्र में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
पटेल का ‘गुप्त ऑपरेशन’
सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन पोलो चलाया। साल 1948 में चलाया गया ऑपरेशन पोलो एक गुप्त ऑपरेशन था। इस ऑपरेशन के जरिए निजाम उस्मान अली खान आसिफ को सत्ता से अपदस्त कर दिया गया और हैदराबाद को भारत का हिस्सा बना लिया गया।
उस समज देश एक जुट नहीं था, तब देश को एक धागे में पिरोने वाले बने ‘पटेल’..
पटेल को भारत का एक सूत्रधार कहा जाता है। उस समज देश एक जुट नहीं था। अलग अलग रियासतें थीं। जिन्हें पटेल ने एक कर भारत बनाय। लेकिन उस वक्त एक रियासत पटेल की बात मानने को तैयार नहीं थी। हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान आसिफ ने स्वतंत्र रहने का फैसला किया था। निजाम ने फैसला किया कि वे न तो भारत और न ही पाकिस्तान में शामिल होंगे।
पटेल के जबरदस्त भाषण ने दर्शायी लोगों की भावनाएं..
उस समय जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी पर देश गुस्से में था, ऐसे में पटेल ने जबरदस्त भाषण दिया था जिसने लोगों की भावना को दर्शाया।
पटेल में कूट कूट कर भरी थी काबिलियत…
1931 में पटेल को कांग्रेस के कराची अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। तो वहां पटेल देश की आजादी के बाद पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने।
भाई पटेल ऐसे बने ‘सरदार’…
पटेल की मेहनत रंग लाई इसके बाद 30 फीसदी लगान को 6 फीसदी कर दिया गया। इसी के बाद से उनको सरदार कहा जाने लगा। बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी।
सरकार ने ऐसे झुकाया पटेल के आगे अपना सिर…
गुजरात में सन 1928 में बारडोली सत्याग्रह हुआ। इसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने किया। इस प्रमुख किसान आंदोलन का उद्धेश्य था किसानों से भारी लगान वसूली पर बैन। उस समय प्रांतीय सरकार किसानों से भारी लगान वसूल रही थी। इस बीच सरकार ने लगान 30 फीसदी बढ़ा दिया था। गरीब किसान बेहद परेशान थे। ऐसे में वल्लभ भाई पटेल आए और उन्होंने सरकार की इस लगान व्यवस्था का कड़ा विरोध किया। सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के कई प्रयास किए। लेकिन सरकार को बाद में इस आंदोलन के आगे सिर झुकाना ही पड़ा।और किसानों की मांगों को पूरा करना पड़ा।
गांधी जी की पहली पसंद थे पटेल..
गांधी जी पटेल पर भरोसा करते थे। ऐसे में वह उनकी पहली पसंद थे। खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए गांधी जी ने पटेल को चुना। तक गांधी जी ने कहा था, ”कई लोग मेरे पीछे आने के लिए तैयार थे, लेकिन मैं अपना मन नहीं बना पाया कि मेरा डिप्टी कमांडर कौन होना चाहिए। फिर मैंने वल्लभ भाई के बारे मे सोचा।”
सरदार पटेल का योगदान :
आजादी के बाद ज्यादातर प्रांतीय समितियां सरदार पटेल के पक्ष में थीं। गांधी जी की इच्छा थी, इसलिए सरदार पटेल ने खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से दूर रखा और जवाहर लाल नेहरू को समर्थन दिया। बाद में उन्हें उपप्रधानमंत्री और ग्रहमंत्री का पद सौंपा गया, जिसके बाद उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों तो भारत में शामिल करना था। इस कार्य को उन्होंने बगैर किसी बड़े लड़ाई झगड़े के बखूबी किया। परंतु हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए सेना भेजनी पड़ी। चूंकि भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था, इसलिए उन्हें भारत का लौह पुरूष कहा गया। 15 दिसंबर 1950 को भारत का उनकी मृत्यु हो गई और यह लौह पुरूष दुनिया को अलविदा कह गया।
सरदार पटेल नाम ऐसे पड़ा :
सरदार पटेल को सरदार नाम, बारडोली सत्याग्रह के बाद मिला, जब बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिए उन्हें पह ले बारडोली का सरदार कहा गया। बाद में सरदार उनके नाम के साथ ही जुड़ गया।
गुजरात में बारडोली सत्याग्रह :
साल 1928 में गुजरात में बारडोली सत्याग्रह हुआ जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने किया. यह प्रमुख किसान आंदोलन था. उस समय प्रांतीय सरकार किसानों से भारी लगान वसूल रही थी. सरकार ने लगान में 30 फीसदी वृद्धि कर दी थी. जिसके चलते किसान बेहद परेशान थे. वल्लभ भाई पटेल ने सरकार की मनमानी का कड़ा विरोध किया. सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने की कोशिश में कई कठोर कदम उठाए. लेकिन अंत में विवश होकर सरकार को पटेल के आगे झुकना पड़ा और किसानों की मांगे पूरी करनी पड़ी. दो अधिकारियों की जांच के बाद लगान 30 फीसदी से 6 फीसदी कर दिया गया. बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी.
सरदार पटेल बैरिस्टर से ‘सरदार’ कब बन गए
सरदार पटेल का पूरा नाम वल्लभ भाई पटेल था। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के करमसंद में जन्मे पटेल पेशे से एक वकील यानि बैरिस्टर थे। महात्मा गांधी और उनके विचारों से प्रेरित होकर वह स्वाधीनता संग्राम आंदोलन से जुड़ गए। उनको लौहपुरूष और भारत के बिस्मार्क के साथ सरदार की उपाधियां मिलीं। बारडोली सत्याग्रह की सफलता ने उन्हें देश का हीरो बना दिया। बारडोली की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ बुलाना शुरू कर दिया।
22 साल में पास की 10वीं की परीक्षा
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरदार पटेल ने अपनी दसवीं की परीक्षा तब पास की जब वह 22 साल के हो गए थे। ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि वे पढ़ाई में कमजोर थे, बल्कि घरेलु अभाव के कारण उन्हें स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी वक्त लग गया।आर्थिक तंगी के कारण पटेल ने कॉलेज जाने की बजाय घर पर किताबें लाकर ही ज़िलाधिकारी की परीक्षा के लिए तैयारी की और सर्वाधिक अंक से पास हुए। वह कुशाग्र बुद्धि के थे तभी 36 साल की उम्र में वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए और 36 महीने का कोर्स 30 महीने में ही पूरा कर लिया।
पहले गृहमंत्री बने सरदार वल्लभ भाई पटेल
आजादी के बाद 562 रियासतों में बंटे भारतीय संघ को एकीकृत करना बड़ी चुनौती थी। गृहमंत्री होने के नाते सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यह जिम्मेदारी ली। उन्होंने जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोड़कर शेष सभी रियासतों का भारत में विलय करा दिया। बाद में जनमत संग्रह के आधार पर जूनागढ़ रियासत को भारत में मिलाने का कारनामा भी पटेल की वजह से ही संभव हुआ। संसार के इतिहास की यह पहली घटना है जिसमें खून की एक बूंद बहाए बिना इतनी बड़ी मात्रा में संप्रभु रियासतों का एक राष्ट्र में विलय करा दिया गया हो। हालांकि, केवल हैदराबाद रियासत को भारत में मिलाने के लिए सरदार को सेना भेजने की जरूरत पड़ी। जिसके बाद वहां के निजाम ने आत्मसमर्पण कर भारत में विलय की स्वीकृति दे दी थी।
वकील के रूप में की थी प्रैक्टिस
सरदार पटेल को पढ़ाई का काफी शौक था। उन्होंने गोधरा में एक वकील के रूप में अपनी कानूनी प्रैक्टिस शुरू की और एक वकील के रूप में तेजी से सफलता भी हासिल की और जल्द ही कड़ी मेहनत और अनुशासन के चलते एक वकील बन गए।
हैदराबाद को भारत का हिस्सा बनाने में था अहम योगदान
सरदार पटेल ने 1948 में हैदराबाद के निजाम को खदेड़ने के लिए एक गुप्त ऑपरेशन पोलो चलाया था। इस ऑपरेशन के जरिए ही निजाम उस्मान अली खान आसिफ को सत्ता से बेदखल कर हैदराबाद को भारत में मिलाया गया।
इस वजह से भी याद किया जाता है पटेल को
1931 में पटेल को कांग्रेस के कराची अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया. उस समय जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी पर देश गुस्से में था, पटेल ने ऐसा भाषण दिया जो लोगों की भावना को दर्शाता था.
तेरह साल की उम्र में विवाह
सरदार पटेल गुजरात के नाडियाड में 31 अक्टूबर 1875 को जन्मे थे। महज 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह झावेर बा से कर दिया गया था। झावेर बा ज्यादा दिनों तक सरदार पटेल के साथ नहीं रह सकीं। जब पटेल 33 साल के थे तभी झावेर बा की कैंसर से मृत्यु हो गई थी। बताते हैं कि साल 1909 में जब झावेर बा मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थीं उस दौरान सरदार अदालती कार्यवाही में व्यस्त थे। इतने में किसी ने पर्ची पर लिखकर झावेर बा के निधन की सूचना उन्हें दी। सरदार ने पर्ची जेब में रख ली और जिरह करने लगे। बाद में वह मुकदमा जीत गए और कार्यवाही समाप्त होने के बाद ही उन्होंने सभी को अपनी पत्नी के निधन की सूचना दी।
खेड़ा सत्याग्रह का किया नेतृत्व
पटेल ने इंग्लैड से वकालत पढ़ी और उसके बाद साल 1913 में भारत लौट आए। जल्दी ही उन्होंने यहां अपनी वकालत जमा ली। सरदार महात्मा गांधी के सत्याग्रह से काफी प्रभावित थे। साल 1918 में गुजरात के खेड़ा में सूखे की वजह से किसान कर देने में असमर्थ हो गए थे। ऐसे में उन्होंने करों में राहत की मांग की थी जिसे अंग्रेज सरकार ने खारिज कर दिया था। ऐसे में महात्मा गांधी के निर्देश पर उन्होंने खेड़ा में सत्याग्रह की अगुआई की। पटेल के नेतृत्व में किसानों के प्रदर्शन के आगे सरकार को झुकना पड़ा और करों में रियायत देनी पड़ी।
‘भारत रत्न’ सरदार पटेल –
सरदार पटेल के निधन के 41 साल बाद सन् 1991 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। उनकी ओर से यह सम्मान उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया था।
सादगी भरा जीवन –
सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री हो सकते थे। लेकिन, महात्मा गांधी के निर्देश पर उन्होंने इस दावेदारी से अपना नाम वापस ले लिया था और जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने थे। सरदार पटेल का जीवन बेहद सादगी भरा था। बताया जााता है कि उनके पास खुद का मकान तक नहीं था और वह अहमदाबाद में एक किराए के मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में उनका निधन हो गया था। कहते हैं कि जब उनका निधन हुआ तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे।
गांधी जी को प्रिय थे सरदार पटेल
खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए पटेल को अपनी पसंद को दर्शाते हुए कहा गांधी जी ने कहा कई लोग मेरे पीछे आने के लिए तैयार थे, लेकिन मैं अपना मन नहीं बना पाया कि मेरा डिप्टी कमांडर कौन होना चाहिए फिर मेरे मन में पहला विचार जो आया वो वल्लभ भाई का था।
सरदार पटेल गरीब परिवार से संबंध रखते थे..
सरदार पटेल गरीब परिवार से संबंध रखते थे, उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। परिवार में माता पिता खेती करते थे। हमेशा आर्थिक संकट सिर पर मंडराता रहता था। वह घरवालों के साथ खेती बाड़ी में आत जुटाते थे। ऐसे में उनकी पढ़ाई पीछे रही। लगातार वह कॉलेज नहीं जा पाते थे। घर में उन्होंने जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी की जिसमें वह अव्वल रहे।
सरदार पटेल 10 वीं के पेपर देने में हो गए थे लेट..
सरदार पटेल पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। लेकिन उनकी पढ़ाई थोड़ी देर से शुरू हुई। बता दें, पटेल ने काफी देरी से 10वीं के पेपर दिए थे। उस वक्त उनकी उम्र 22 साल थी।
हर मुसीबत का सामना कर सकते थे ‘लोह पुरुष’…
गुजरात के खेड़ा जिले में जन्में पटेल का पालन पोषण गरीब किसान परिवार में हुआ। सरदार पटेल की कूटनीतिक क्षमताओं का सभी लोहा मानते थे। सरदार पर महात्मा गांधी भी बहुत भरोसा करते थे वह उनके हर कदम को सराहते थे। तो वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू का भी विश्वास था कि सरदार पटेल किसी भी संकट की स्थिति से देश को निकालने की क्षमता रखते हैं।
सरदार भाई पटेल के विचार बड़े अनमोल हैं, युवा पीढ़ी को अकसर सही राह दिखाते हैं
सरदार भाई पटेल के विचार बड़े अनमोल हैं। युवा पीढ़ी को अकसर सही राह दिखाते हैं। ‘आज हमें ऊंच नीच. अमीर गरीब, जाति पंथ की भावनाओँ को समप्त कर देना चाहिए।’
562 रियासतों को जोड़ा नहीं था आसान
562 रियासतों को जोड़ने का काम जरा भी आसान नहीं था। इस बीच सरदार भाई पटेल के सामने कई चुनौतियां भी आईं। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एक एक रियासत को धागे में पिरोने के लिए उन्होंने अपनी सारी बुद्धि और अनुभव लगाय दिया। ऐसे में भारत को एक राष्ट्र बनाने में वल्लभ भाई पटेल सफल रहे।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने टुकड़े जोड़ जोड़ बनाया भारत..
31 अक्टूबर को जन्में स्वतंत्र भारत के उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का देश को आजादी दिलाने में खास योगदान रहा था। आजादी से पहले हमारा देश छोटे-छोटे 562 देशी रियासतों में बंटा था। सरदार पटेल ने इन सभी छोटे छोटे टुकड़ों को मिला कर एक भारत बनाया।
Sardar Vallabhbhai Patel Quotes
“मेरी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा ना रहे।”
“एकता के बिना जनशक्ति, शक्ति नहीं है जब तक उसे ठीक ढंग से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है।”
मनुष्य को हमेशा ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं। लोहा भले गर्म हो जाए, हथौड़ा तो ठंडा ही रहना चाहिए वरना वह खुद हत्था जला डालेगा। कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही
“शक्ति के अभाव में विश्वास व्यर्थ है। विश्वास और शक्ति दोनों किसी महान काम को करने के लिए आवश्यक हैं।”
“आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये।”