J&K में आर्टिकल 370 के खिलाफ नहीं, समर्थन में थे वल्लभ भाई पटेल! मोदी सरकार के दावे पर इतिहासकारों ने उठाए सवाल
सरदार वल्लभ भाई पटेल। फोटो: इंडियन एक्सप्रेस
552 रियासतों का भारत में विलय कराने वाले पटेल और जवाहर लाल नेहरू कश्मीर के मुद्दे पर एकराय नहीं थे, बीजेपी यह कहती रही है। हालांकि, इतिहासकार बीजेपी के इस दावे से सहमत नहीं हैं।
बीते सोमवार को संसद में आर्टिकल 370 पर हुई बहस के दौरान केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने नेहरू पर हमला बोला था। जम्मू कश्मीर की समस्या के लिए प्रथम प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराते हुए सिंह ने कहा था कि नेहरू ने तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को जम्मू कश्मीर के मुद्दे से निपटने की स्वतंत्रता दे दी होती और हस्तक्षेप नहीं किया होता तो ‘‘ना 370 का बखेड़ा होता और ना पीओके होता।’’ वहीं, जम्मू से बीजेपी सांसद जुगल किशोर शर्मा ने आरोप लगाया था कि नेहरू ने शेख अब्दुल्ला के कहने पर कश्मीर में आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35 ए लागू किया। उनके मुताबिक, पटेल के अलावा बीआर अंबेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसका विरोध किया था।
अशोका यूनिवर्सिटी हरियाणा में इंटरनैशनल रिलेशंस और इतिहास के प्रोफेसर श्रीनाथ राघवन का मानना है कि इस बात के सबूत हैं कि पटेल ने आर्टिकल 370 का पूरी तरह समर्थन किया। अंग्रेजी अखबार द टेलिग्राफ से बातचीत में राघवन ने कहा कि आर्टिकल 370 पूरी तरह सरदार पटेल की विचार था और इस मुद्दे पर उनके विचारों को दूसरों के मुकाबले ज्यादा अहमियत मिली।
राघवन ने कहा, ‘यह कहना मूर्खता है कि सिर्फ नेहरू ने इसे लागू किया क्योंकि यह सरकार का अकेला नीतिगत फैसला नहीं था। इसे संविधान सभा ने पास किया था।’ राघवन के मुताबिक, आर्टिकल का ड्राफ्ट तैयार करने को लेकर पहली बैठक 15 और 16 मई 1949 को पटेल के घर पर हुई, जिसमें नेहरू भी मौजूद थे।
राघवन ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के पीएम शेख अब्दुल्ला से बातचीत करने वाले मंत्री एनजी आयंगर ने नेहरू की ओर से अब्दुल्ला को भेजे जाने वाले लेटर का ड्राफ्ट तैयार किया तो उन्होंने इसे पटेल के पास एक नोट के साथ भेजा था। आयंगर ने पटेल को लिखा था, ‘क्या आप जवाहरलालजी को सीधे बताएंगे कि इस पर आपकी रजामंदी है? वह यह चिट्ठी पर आपकी सहमति के बाद ही इसे शेख अब्दुल्ला को भेजेंगे।’
वहीं, जब नेहरू विदेश में थे, पटेल ने आयंगर से कहा था कि वह अब्दुल्ला से बातचीत जारी रखें। अब्दुल्ला ने कहा था कि कश्मीर में मूलभूत अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों के लिए भारतीय संविधान को स्वीकार करने का फैसला संविधान सभा पर छोड़ देना चाहिए। पटेल कश्मीर पर अब्दुल्ला की राय से सहमत नहीं थे, इसके बावजूद नेहरू के वापस लौटने पर उन्होंने प्रथम प्रधानमंत्री से कहा था कि वह कांग्रेस को इस रुख पर सहमत करने में कामयाब हुए हैं।