Smita Patil: जींस पैंट पर साड़ी लपेट पढ़ती थीं खबरें, 21 साल की उम्र में मिला था नेशनल अवार्ड
पुणे की फिजा में ही कुछ बात है कि लोग वहां साहित्य संस्कृति और कला को लेकर खासे उत्साहित रहते हैं। उसका असर स्मिता पाटिल पर भी पड़ा और उसने अभिनय की ओर कदम बढ़ा दिए।
फिल्म ‘नमक हलाल’ में स्मिता पाटिल और अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया बारिश-गीत ‘आज रपट जाए तो’ आज भी दर्शकों के जेहन में ताजा है। समांतर फिल्म की संवेदनशील नायिका को इस तरह से बारिश में भीगते हुए सुपरस्टार के साथ गाते देख सिनेमा हॉल के आगे की पंक्ति में बैठनेवालों ने जमकर पैसे लुटाए थे।
इस फिल्म की शूटिंग के दौरान स्मिता बेहद खुश रहती थी और साथी कलाकारों के साथ चुहलबाजियां भी करती थी। इस गाने के फिल्मांकन के बाद वो देर तक रोती रहीं थी। उन्हें मालूम था कि वो प्रकाश मेहरा जैसे बड़े निर्देशक की बड़े बजट की मल्टीस्टारर में काम कर रही थीं लेकिन तब उन्होंने ये नहीं सोचा था कि उसकी उन्हें ये कीमत चुकानी पड़ेगी। ये वही स्मिता पाटिल थी जो अपने बिंदास अंदाज के लिए फिल्म जगत में जानी जाती थी।
स्मिता के व्यक्तित्व के पहलू
ये वही स्मिता पाटिल थी जिन्होंने मंथन, भूमिका, अर्थ, मिर्च मसाला जैसी फिल्मों में यादगार भूमिका निभाई थी। उन्होंने दूसरी तरफ इंसानियत के दुश्मन, आनंद और आनंद, बदले की आग, अंगारे, कयामत जैसी दोयम दर्जे की फिल्मों में भी काम किया था। इससे आपको अंदाजा हो सकता है कि स्मिता पाटिल के व्यक्तित्व के कितने पहलू थे। उनके अभिनय का रेंज कितना बड़ा था। इस तरह के दिलचस्प किस्सों को मैथिली राव ने अपनी किताब ‘स्मिता पाटिल, अ ब्रीफ इनकैनडेंस्ट’ ने समेटा है। स्मिता पाटिल अपने जन्म के वक्त हंसती हुई पैदा हुई थी, इस वजह से उसका नाम स्मिता रखा गया था। स्मिता मां-बाप की मंझली संतान थी लेकिन अपनी बहनों से बिल्कुल अलग और मस्त मौला। स्मिता के रंग को देखकर उसके दोस्त उसको काली कहकर चिढ़ाया करते थे, जवाब में स्मिता ए हलकट कहकर निकल जाती थी।
जब परिवार के दबाव में स्मिता मुंबई आ गई थी
पुणे की फिजा में ही कुछ बात है कि लोग वहां साहित्य, संस्कृति और कला को लेकर खासे उत्साहित रहते हैं। उसका असर स्मिता पाटिल पर भी पड़ा और उसने अभिनय की ओर कदम बढ़ा दिए। उस दौर में कम ही लोगों को ये मालूम था कि स्मिता पाटिल पुणे की मशहूर संस्था फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान की छात्रा नहीं थी क्योंकि उसका ज्यादातर वक्त वहां पढ़नेवाले उनके दोस्तों के साथ उस कैंपस के इर्द-गिर्द बीतता था। मोटर साइकिल से लेकर जोंगा जीप चलानेवाली स्मिता पाटिल की टॉम बाय की छवि बन गई थी। अपने दोस्तों के साथ मराठी गाली गलौच की भाषा में बात करना उनका प्रिय शगल था। जब उसके पिता मुंबई आ गए तब भी उसका दिल पुणे में ही लगा रहा। वो मुंबई नहीं आना चाहती थी लेकिन परिवार के दबाव में वो मुंबई आ गई। यहां उसने एलफिस्टन छोड़कर सेंट जेवियर में पढाई की। यहां उसके साथ एक बेहद दिलचस्प वाकया हुआ और वो दूरदर्शन में न्यूज रीडर बन गई।
जब मराठी न्यूजरीडर के लिए चुनी गई स्मिता
स्मिता की बहन अनीता के कुछ दोस्त पुणे से आए हुए थे जिनमें पुणे दूरदर्शन की मशहूर न्यूज रीडर ज्योत्सना किरपेकर भी थी। उसके साथी दीपक किरपेकर को फोटोग्राफी का शौक था और वो स्मिता पाटिल के ढेर सारे फोटो खींचा करते थे। ये कहते हुए कि घर की मॉडल है जितनी मर्जी खींचते जाओ। स्मिता भी उनके सामने बिंदास अंदाज में फोटो शूट करवाती थी। अनीता के दोस्तों ने तय किया कि स्मिता की तस्वीरों को ज्योत्सना किरपेकर को दिखाया जाए। एक दिन कॉलेज में क्लास खत्म होने के बाद सबने तय किया कि मुंबई दूरदर्शन के वर्ली दफ्तर में चला जाए। सब लोग वहां पहुंचे। दूरदर्शन के दफ्तर के पास एक समतल जगह दिखाई दी तो वहां रुक गए और स्मिता के कुछ फोटोग्राफ्स फैला दिया। संयोग की बात थी कि उसी वक्त मुंबई दूरदर्शन के निदेशक पी वी कृष्णमूर्ति वहां से गुजर रहे थे। वो इनमें से कुछ को जानते थे। कृष्णमूर्ति ने उन सबको इकट्ठे देखा तो रुक कर हाल चाल पूछने लगे। इसी दौरान उनकी नजर स्मिता पाटिल की तस्वीरों पर चली गई। उन्होंने पूछा कि ये लड़की कौन है और वो इससे मिलना चाहते हैं। अब सबके सामने संकट था कि स्मिता को इस बारे में कौन बताए और कौन उसको ऑडीशन के लिए राजी करे। फिर तय हुआ कि अनीता और ज्योत्सना मिलकर स्मिता को ऑडीशन के लिए राजी करेंगे। काफी मशक्कत के बाद स्मिता को राजी किया जा सका और वो दोनों उसको दूरदर्शन के दफ्तर लेकर पहुंची। ऑडिशन हुआ और स्मिता चुन ली गई। वो मराठी न्यूजरीडर बन गई। वो दौर ब्लैक एंड व्हाइट टीवी का था।
दूरदर्शन के उस दौर में श्याम बेनेगल की नजर स्मिता पर पड़ी
सांवली स्मिता, गहराई से आती उसी आवाज, उसकी भौहें और बड़ी सी बिंदी ने स्मिता पाटिल को खुद ही खबर बना दिया। जो लोग मराठी नहीं भी जानते थे वो भी स्मिता पाटिल को खबर पढ़ते देखने के लिए टेलीविजन खोलकर बैठने लगे थे। स्मिता पाटिल खबर पढ़ते वक्त हैंडलूम की पार वाली साड़ी पहनती थी लेकिन कम लोगों को ही पता है कि वो जींस पैंट पर साड़ी लपेट कर खबरें पढ़ा करती थी। दूरदर्शन के उस दौर में ही श्याम बेनेगल की नजर स्मिता पाटिल पर पड़ी और वहीं से उन्होंने तय किया कि स्मिता के साथ वो फिल्म करेंगे । उस दौर में मनोज कुमार और देवानंद भी स्मिता पाटिल को अपनी फिल्म में लेना चाहते थे । यह संयोग ही है कि स्मिता मनोज कुमार की फिल्म में काम नहीं कर सकी। देवानंद ने जब अपने बेटे सुनील आनंद को लॉंच किया तो उन्होंने उसके साथ स्मिता पाटिल को ही ‘आनंद और आनंद’ फिल्म में साइन किया था।
स्मिता और शबाना आजमी में जबरदस्त स्पर्धा थी
जब स्मिता पाटिल की बात हो तो शबाना आजमी के बगैर बात पूरी नहीं होती। स्मिता पाटिल और शबाना आजमी में जबरदस्त स्पर्धा थी और लोग कहते हैं कि साथ काम करने के बावजूद उनके बीच बातचीत नहीं के बराबर होती थी। हलांकि एक किताब के लांच के वक्त शबाना ने स्मिता पाटिल के बारे में बेहद स्नेहिल बातें की थी और यहां तक कह डाला कि उनका नाम शबाना पाटिल होना चाहिए था और स्मिता का नाम स्मिता आजमी होना चाहिए था। शबाना ने माना था कि दोनों के बीच स्पर्धा थी लेकिन वो उसके लिए बहुत हद तक मीडिया को जिम्मेदार मानती हैं। शबाना ने ये भी स्वीकार किया कि उस दौर में दोनों के बीच सुलह की कई कोशिशें हुईें लेकिन वो परवान नहीं चढ़ सकीं और दोनों के बीच दोस्ती नहीं हो सकी। इस बात की क्या वजह थी कि मंथन, निशान, मिर्च मसाला जैसी फिल्मों में काम करनेवाली कलाकार ने बाद के दिनों में कई व्यावसायिक फिल्मों में काम किया था। श्याम बेनेगल कहते हैं कि स्मिता को भी पैसे कमाकर बेहतर जिंदगी जीने का हक था, सिर्फ स्मिता ने ही नहीं बल्कि शबाना ने भी कमर्सियल फिल्मों में काम किया। इसके अलावा नसीर से लेकर ओमपुरी तक ने भी समांतर सिनेमा से इतर फिल्मों में काम किया। श्याम बेनेगल के मुताबिक इन वजहों के अलावा स्मिता ये साबित करना चाहती थी कि वो हर तरह की फिल्म कर सकती है और सफल हो सकती है।
स्मिता पाटिल जीनियस नहीं थी लेकिन बेहद संवेदनशील थी
कुछ लोगों का कहना है कि राज बब्बर से शादी के बाद पैकेज डील के तहत उसको कई कमर्शियल फिल्मों में काम करना पड़ा था जैसे आज की आवाज और अंगारे। मोहन अगासे कहते हैं कि स्मिता पाटिल जीनियस नहीं थी लेकिन बेहद संवेदनशील थी। कुछ इसी तरह की बात ओमपुरी भी करते हैं जब वो एक वाकया बताते हैं। ओमपुरी जब मुंबई में रहते थे तो उनके पास अपना घर नहीं था। जब ये बात स्मिता पाटिल को पता चली तो उसने अपनी मां से कहा कि वो वसंतदादा को बोलकर ओम को एक घर दिलवा दे। उसके बाद वो ओमपुरी को लेकर वसंतदादा के पास भी गई। लेकिन ओमपुरी को घर इस वजह से नहीं मिल सका कि उनको महाराष्ट्र में रहते हुए सिर्फ दस साल हुए थे जबकि उस वक्त ये सीमा पंद्रह साल थी। स्मिता पाटिल एक ऐसी कलाकार थी जिन्हें 21 साल की उम्र में नेशनल अवॉर्ड मिल गया था और 31 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।