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अपना दल /अपना दल एस की मूलभूत सोच एवं उसके समक्ष चुनौतियां
आप सभी भली भाँति जानते हैं कि 4नवम्बर 1995को लखनऊ के बारादरी के मैदान में, एक नई सोच के दल "अपना दल "की घोषणा लाखों लोगों की उपस्थिति में एक रैली में डाक्टर सोने लाल पटेल जी संस्थापक अपना दल एवं उच्चाधिकार कमेटी के चेयरमैन इंजीनियर बलिहारी पटेल जी ने किया था!
डाक्टर सोने लाल पटेल जी, राजनीति में आने के पहले, केवल सामाजिक संगठनों में यूपी के प्रदेश अध्यक्ष सहित राष्ट्रीय पदाधिकारी के रूप में, कार्य करने के साथ, अपना व्यवसाय करते थे! शासकीय सेवा में काम करते हुये इंजीनियर बलिहारी पटेल जी, बामसेफ में भी काम करते थे!इंजीनियर बलिहारी पटेल जी ने, डाक्टर सोने लाल पटेल जी को, बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी के कहने के मुताबिक "बहुजन समाज पार्टी का आंदोलन, भागीदारी के जनक राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज का आंदोलन है ",शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में ओबीसी, एससी, एसटी, अल्पसंख्यक समाज के, सामाजिक -शैक्षिक -सांस्कृतिक -आर्थिक -राजनैतिक उत्थान के लिए आजीवन कार्य किया, लेकिन शाहूजी महाराज के निधन के पश्चात किसी ने उस आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने का काम नहीं किया, आज पटेल समाज सहित पिछड़े वर्ग के लोग हाशिए पर हैं? जो समाज, आजादी के पूर्व बांटने वाला रहा, आज इसकी भीषण दुर्गशा है! जो पटेल समाज कभी सिरमौर था, आज पैरमोर की स्थिति में है और एक एक टिकट के लिए लाईन लगाए खड़ा है! "समय आने पर पटेल समाज सहित पिछड़े समाज को सिरमौर जरूर बनाऊंगा! "डाक्टर साहब 1989में बसपा से जुड़े, उन्हें पहले कानपुर मंडल का अध्यक्ष बनाया गया! कानपुर मंडल में बसपा को मजबूत करने के लिए कठिन परिश्रम के साथ करोड़ों रूपए खर्च किया! बाद में समाजवादी पार्टी का गठन ,जनता दल के टूटने के बाद हुआ और मुलायम सिंह यादव जी सपा के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये और माननीय #बेनी प्रसाद वर्मा जी, समाजवादी पार्टी के स्थापना के समय, राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बनाये गये!
डाक्टर सोने लाल पटेल जी भी बसपा में यूपी के प्रमुख महासचिव बनाए गए! बाद में वर्ष 1993के,चुनाव में, यूपी की राजनीतिक स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में, "समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन हुआ! "वर्ष 1993के गठबंधन चुनाव के दौरान बसपा की यूपी की कमान, राजबहादुर जी के हाथों में थी! यूपी विधानसभा के 1993के चुनाव की घोषणा की आहट महसूस करते हुये, माननीय बेनी प्रसाद वर्मा जी को समाजवादी पार्टी का 'राष्ट्रीय महासचिव 'घोषित किया गया! #डाक्टर सोने लाल पटेल जी को पहले ही, मान्यवर कांशीराम ने यूपी में कुर्मी समाज को, बसपा के झंडे के नीचे लाने के लिए सक्रिय कर दिया था! इसी कड़ी में, डाक्टर सोने लाल पटेल जी, देवीपाटन मंडल +फैजाबाद मंडल (उस वक्त केवल फैजाबाद मंडल ही रहा और दोनों मंडलों के जिला उसमें रहे )में बसपा के नीले झंडे के नीचे कुर्मी समाज को जोड़ने के लिए काफी मेहनत कर रहे थे? लेकिन ऐसा दुष्प्रचार किया गया था कि 'बसपा चमारों की पार्टी है ',यद्यपि डाक्टर सोने लाल पटेल जी को सुनने के लिए, अच्छी संख्या में लोग जुटते थे? लेकिन दुष्प्रचार के कारण #कुर्मी समाज के लोग, कार्यक्रम स्थल से थोड़ी दूर खड़े -खड़े कार्यक्रम को सुनते और तारीफ करते थे! जब कार्यक्रम के बाद, समाज के प्रतिष्ठित लोगों के यहां चाय वगैरह के लिए आमंत्रित किये जाने पर दलबल के साथ जाते थे तो समाज के लोग डाक्टर साहब के वक्तव्य की तारीफ तो करते थे, सहयोग भी करते थे, लेकिन बसपा में जुड़ने के नाम पर कन्नी (बहाना बनाना) काट जाते थे! बहरहाल यूपी के विधानसभा चुनाव में सपा +बसपा गठबंधन को स्पष्ट बहुमत तो नहीं मिला लेकिन यूपी की विधानसभा में, सपा 108)+बसपा (69)एवं भाजपा भी कमोवेश इतनी ही सीटों पर चुनाव जीती थी! वर्ष 1993का चुनाव, माननीय कल्याण सिंह जी के मुख्यमंत्री रहते हुए सम्पन्न हुआ था!
चुनाव के बाद माननीय मुलायम सिंह यादव जी सपा नेता विधानमण्डल दल एवं माननीय राम लखन वर्मा जी को बसपा का नेता विधानमण्डल दल बनाने के साथ, माननीय मुलायम सिंह यादव जी सीएम यूपी बने और माननीय राम लखन वर्मा जी को पंचायती राज मंत्री बनाने के साथ, राजबहादुर जी को मंत्री बसपा कोटे से बनाए जाने के साथ, बसपा का यूपी का अध्यक्ष माननीय जंग बहादुर पटेल जी को बनाया गया! "मान्यवर कांशीराम प्राय:पार्टी के कैडर कार्यक्रम सहित अन्य मीटिंगों में कहा करते थे कि, #जिसका डीएम नहीं होता है उसका #सीएम कुछ नहीं कर सकता है! "डाक्टर सोने लाल पटेल जी एवं इंजीनियर बलिहारी पटेल जी भी चाहते थे कि कुर्मी समाज के अधिकारियों को भी, जिलाधिकारी जैसे पद पर बैठाया जाये, लेकिन उस वक्त यूपी में, कुर्मी समाज का कोई आईएएस नहीं था, बिहार मूल के, अरूण कुमार सिन्हा एवं राम चन्द्र प्रसाद सिंह को यूपी में लाकर इन्हें जिलाधिकारी बनवाने का दबाव बनाने के साथ जिलाधिकारी बनवाया गया, साथ ही साथ, यूपी के दो सीनियर स्वजातीय पीसीएस, हौसला प्रसाद वर्मा एवं अन्य को, आईएएस कैडर में प्रोन्नत करने के साथ, इन्हें भी बतौर जिलाधिकारी, जिलों में पोस्टिंग कराया गया! मान्यवर कांशीराम द्वारा 'सुश्री मायावती जी को यूपी का प्रभारी बनाया 'जा चुका था!
यद्यपि विधानसभा में, सपा -बसपा गठबंधन एवं भाजपा में सीटों की संख्या के क्रम में कोई विशेष अंतर नहीं था लेकिन धर्म निरपेक्षता के नारे के बल पर, सपा -बसपा का गठबंधन यूपी में सत्तारूढ़ हो गया और कम्युनिस्ट सहित अन्य दलों ने, सपा बसपा गठबंधन को बाहर से समर्थन दिया! चूंकि जिन लोगों के हाथों में सदियों से राजकाज रहा, वे ओबीसी +एससी +अल्पसंख्यक वर्ग की सत्ता के साथ साथ, इनके व्यापक गठबंधन से अंदर अंदर बहुत ही बेचैनी महसूस करने के साथ, दूरगामी नुकसान से अत्यधिक बेचैन थे! यद्यपि मायावती जी, दिल्ली में रहती थी और जब भी यूपी बहैसियत प्रभारी आती थी, तो अपने विधायकों, मंत्रियों एवं संगठन पर कोड़ा की फटकार जैसे शब्दों की भाषा बोलती थी, वही सरकार को भी खरीखोटी मीडिया के जरिए सुनाती थी! इससे बसपा के नेताओं में भी अंदर अंदर बेचैनी थी, वहीं डाक्टर सोने लाल पटेल जी एवं इंजीनियर बलिहारी पटेल जी जब, कांशीराम जी से, कुर्मी समाज के अधिकारियों के प्रोन्नत करने सहित अच्छी पोस्टिंग की बात करते थे तो वो टाल जाते थे या मायावती जी को मामले को देखने को बोल देते थे! मायावती जी के काफी पहले से, फैजाबाद के आर के चौधरी(एडवोकेट),बी राम, राम समुझ पासी (बीडीओ की सेवा छोड़कर आये थे) इंजीनियर बलिहारी पटेल जैसे कई लोग, मायावती जी के काफी पहले से अत्यधिक सक्रिय रहे या यूं कहे कि यूपी में बसपा के जड़ जमाने में, मान्यवर कांशीराम का दिशानिर्देश तो जरूर रहा लेकिन धरातल पर बसपा को खड़ा करने में, मायावती जी का जहाँ नाममात्र का योगदान रहा हो, वहीं इन लोगों ने अपने खून पसीने के साथ दारूण कष्ट एवं अपमान झेलने के बाद बसपा को खड़ा किया था! "1987के पट्टी विधानसभा के उपचुनाव, जिसके प्रत्याशी राम समुझ पसी रहे, कौन सत्ता /सामन्तवाद की पिटाई को भूल सकता है! ज्ञातव्य हो, उस वक्त यूपी के मुख्यमंत्री माननीय वीर बहादुर सिंह थे! ऐसे में जब कोई, पैराशूट से उतरा नया नया प्रभारी, बसपा के आंदोलन के लिए सर्वस्व न्यौछावर किया हो, अपमानित सरेआम किया जाता था तो उसके मन में पीड़ा जरूर होती थी लेकिन खामोश रहने को विवश था!
वहीं जब डाक्टर सोने लाल पटेल जी एवं इंजीनियर बलिहारी पटेल जी, किसी अर्हता रखने वाले व्यक्ति के पोस्टिंग के लिए कहते थे तो मुलायम सिंह -मायावती जी दोनों टाल जाते थे! "चूंकि डा सोने लाल पटेल जी यूपी कुर्मी महासभा के अध्यक्ष एवं फैजाबाद मंडल में सबसे ज्यादा वोट पाकर विधायक बने राम देव पटेल जी कुर्मी महासभा के महासचिव एवं इंजीनियर बलिहारी पटेल जी संरक्षक थे, इनको आभास होता था कि "अनुसूचित जाति की तुलना में शायद कुर्मी समाज की ताकत हम लोगों के पीछे कम खड़ी है, इसलिए कुर्मी महासभा के बैनर तले जाकर कुर्मी समाज को संगठित करने के साथ ज्यादा से ज्यादा अपने साथ जोड़ने की जरूरत है! इसी सोच के कारण "वर्ष 1994में,कुर्मी महासभा के बैनर तले, यूपी के लगभग 42जिलों में डाक्टर सोने लाल पटेल जी, इंजीनियर बलिहारी पटेल जी एवं राम देव पटेल जी ने रथयात्रा निकाली! उक्त रथयात्रा का समापन, 19अक्टूबर1994को बेगम हजरत महल पार्क लखनऊ में हुआ! पूरा बेगम हजरत महल पार्क, उसके आसपास की सड़क सहित लखनऊ के मुख्य मार्गो पर कई लाख की भीड़ इकट्ठा थी! चूंकि डाक्टर साहब, बसपा के पदाधिकारी थे, मान्यवर कांशीराम सोचते थे कि "कुर्मी राजनैतिक चेतना महारैली के मुख्य अतिथि उन्हें बनाया जायेगा और यूपी के मुख्यमंत्री माननीय मुलायम सिंह यादव जी सोचते थे कि उक्त रैली का मुख्य अतिथि उन्हें बनाया जायेगा, लेकिन डाक्टर सोने लाल पटेल जी ने सोचा कि रैली समाज की है तो मुख्य अतिथि भी समाज का ही होना चाहिए! ऐसी स्थिति में डाक्टर सोने लाल पटेल जी उक्त रैली के मुख्य अतिथि बने! बीबीसी की रिपोर्टिंग के अनुसार, 1994की रैली, किसी एक जाति की सबसे बड़ी रैली थी और मुख्यमंत्री की गोपनीय रिपोर्ट में भी रैली में उपस्थित लोगों की संख्या पांच लाख से अधिक रही!यद्यपि समाजवादी पार्टी के कद्दावर मंत्री माननीय बेनी प्रसाद वर्मा जी को, उक्त रैली में शामिल न होना पड़े, और समाज का बुरा न बनना पड़े, इसलिए 19अक्टूबर 1994को वे मिर्जापुर एक कार्यक्रम के लिए चले गए! लेकिन जब सीएम हाउस को पता चला कि पांच लाख के करीब लोग, लगभग 11बजे तक पहुंच चुके हैं, ऐसी स्थिति में, माननीय मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी ने हेलीकाप्टर भेजकर, माननीय बेनी प्रसाद वर्मा जी को लखनऊ बुलवाकर, बेगम हजरत महल की रैली में जाने को निर्देश दिया! माननीय बेनी प्रसाद वर्मा जी, उक्त रैली में शायद इसलिए उपस्थित नहीं होना चाहते थे कि वे कद्दावर नेता होने के साथ, यूपी सरकार में प्रभावी मंत्री थे और डाक्टर सोने लाल पटेल जी, एक निर्वाचित पंच भी नहीं थे, शायद उन्हें भी, डाक्टर सोने लाल पटेल जी का मुख्य अतिथि का पद अच्छा नहीं लग रहा था! रैली का संचालन करने वाले ने, माननीय बेनी प्रसाद वर्मा जी को, संबोधन के पूर्व यह कहकर आमंत्रण दिया "कुर्मी महासभा के द्वारा पारित निर्णय के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार के लोकनिर्माण -आबकारी मंत्री माननीय बेनी प्रसाद वर्मा को, पटेल बेनी प्रसाद वर्मा कहते हुये संबोधन के लिए आमंत्रित करता हूँ! "
माननीय बेनी प्रसाद वर्मा जी ने अपने संबोधन की शुरुआत करते हुये कहा "मैं जातिवाद में विश्वास नहीं करता, अपने नाम के आगे -पीछे पटेल -वर्मा लगाना पसंद नहीं करता, ये अखबार वाले मेरे नाम के पीछे वर्मा लगा देते हैं, मैं जातीय सम्मेलन में जाना पसंद नहीं करता! "इतना माननीय बेनी प्रसाद वर्मा जी का संबोधन उपस्थित लोगों को अच्छा नहीं लगा, उन्हें रैली का मंच एवं स्थान लोगों के आक्रोश के कारण छोड़ना पड़ा!
मायावती जी बहैसियत प्रभारी अपने मंत्रियों सहित माननीय मुलायम सिंह यादव जी मुख्यमंत्री जी को,लखनऊ में आकर मीडिया के जरिए कटघरे में खड़ा करने के साथ, चेतावनी पर चेतावनी दे रही थी, बसपा के मंत्रियों सहित मुलायम सिंह यादव का भी सब्र रोज रोज के दबाव -फटकार -चेतावनीपूर्ण लहजे से, छलक उठा और उन्होंने बसपा में तोड़फोड़ की पूरी व्यवस्था कर लिया! लेकिन इसकी भनक कांशीराम जी को लग गयी! बसपा की टूटन की योजना के क्रियान्वयन के रणनीतिकार यद्यपि डाक्टर मसूद एवं राजबहादुर जी बताएं गए! लेकिन माननीय कांशीराम ने, लखनऊ में दलबदल विरोधी रैली करके बसपा कार्यकर्ताओं का अाह्वान किया, बसपा से घात करने वाले लोगों को सबक सिखाओ, तमाम संवैधानिक एवं असंवैधानिक शब्दों का प्रयोग करते हुए, मान्यवर कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव से, समर्थन जारी रखने की शर्त 'चार बजे तक डा मसूद को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के साथ, उनका सामान मंत्री आवास से फेंकवाकर बंगला खाली कराने की तस्वीर समाचार पत्रों में छपाकर भेजो, तभी समर्थन जारी रहेगा! 'मजबूरन मुलायम सिंह यादव ने, डाक्टर मसूद को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के साथ, बरसात के वक्त डा मसूद के बीमार पिता को मंत्री आवास से बाहर जबरिया निकालने एवं सामान फेके जाने का समाचार छपाकर सांध्य दैनिक रैली स्थल पर 10जुलाई1994को भेजवाया, तब जाकर कही सरकार बची! दल तोड़ने के आरोप में जहाँ भारी अपमान डा मसूद जी को सहना पड़ा, वहीं राजबहादुर जी को माफ करने के साथ साथ उनका मंत्री पद बरकरार रखा गया! डाक्टर मसूद की जगह, #शाकिर अली को शिक्षा मंत्री बनाया गया!