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वह शख्स जो इतिहास के पन्नों में दफन हो गए त्यागमूर्ति आर एल चंदापुरी

अनुच्छेद 340 पिछड़े_वर्ग को छात्रवृत्ति और सोशलिस्ट पार्टी के संसोपा ने बांधी गाठ पिछड़े पावे 100 में 60 जैसे कार्य त्यागमूर्ति आर एल चंदापुरी जी के ही हैं

त्यागमूर्ति राम लखन चंदा पूरी जोकि आर एल चंदापूरी के नाम से जाने जाते थे इनका जन्म 20 नवंबर 1923 को पटना जिला के इनके ननिहाल के गांव बसुहां में हुआ और पालन-पोषण पैतृक गांव चंदापुर में हुआ था ये दोनों गांव मगध की उसी भूमि में स्थित हैं जिस भूमि को बोधगया में गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था इनका जन्म कुर्मी (कुनबी) कुल के किसान परिवार में हुआ था इनके पिता महावीर सिंह खलीफा के नाम से इलाके में प्रसिद्ध थे। इनकी मांता जी का नाम हीरामणि कुंअर था जो दृढ़ निश्चयवाली एक स्वाभिमानी महिला थी। और त्यागमूर्ति आर एल चंदापुरी जी का परिनिर्वाण 31 अक्टूबर 2004 को हुआ।

इनके पूर्वज छत्रपति शिवाजी महाराज की उन सेनानियों में थे जो उनके रक्षार्थ आगरा के किला शिक्षित कर भागते हुए बिहार की भूमि मगध में बस गए थे जिनका नाम बालाजी राव था बालाजी राव के छठी पीढ़ी के त्यागमूर्ति आर एल चंदापूरी जी थे।

आर एल चंदापुरी जी का विवाह 1951 महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले की सिविल सर्जन डॉक्टर बी पी सिंह की पुत्री श्री सरस्वती सिंह के साथ 28 वर्ष की उम्र में हुआ। सुश्री सरस्वती सिंह जी नागपुर विश्वविद्यालय नागपुर कॉलेज फॉर विमेन से बी., बीटीसी की डिग्री सन 1950 में प्राप्त की थी विवाहोपरांत पटना कॉलेज से m.a. की डिग्री हासिल की।

#क्रांति_की कोख से सरकार पैदा होती है सरकार अपने आप में कोई क्रांति पैदा नहीं करती

चंदापुरी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया-

बचपन से ही चंदा पुरी जी में विलक्षण प्रतिभा थी 1929 में जब मसौढ़ी हाई स्कूल की नवी कक्षा में अव्वल छात्र थे स्कूल की पढ़ाई छोड़ कर स्वतंत्र संग्राम के समय छात्र आंदोलन में शामिल हो गए। चंदापुरी जी सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय सर्वप्रथम चहारदीवारी लांग कर पटना सचिवालय में घुसे थे और झंडा फहराया था वहां पुलिस की गोलियों से 7 छात्र शहीद हुए

सन 1946 में नोवाखाली (बंगाल) मैं भीषण दंगे के फलस्वरूप बिहार प्रदेश का पटना जिला उसी भीषण लपटों में घिर गया चंद्रापुरी जी एम की अंतिम वर्ष की पढ़ाई छोड़कर दंगाई आग बुझाने में जुट गए और अपने इलाके को जलने से बचाया

1947 में "शांति मिशन" के सिलसिले में महात्मा गांधी मसौढ़ी पधारे तो उन्होंने चंदापुरी जी की बहादुरी की बहुत ही प्रशंसा की

पिछड़ा वर्ग संघ का गठन

10 सितंबर 1947 में चंदा पुरी जी ने पिछड़ी जाति के कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के सहयोग से बिहार की राजधानी पटना में अपने सभापततित्व में बिहार प्रदेश पिछड़ा वर्ग संघ की स्थापना की और पिछड़ी जातियों का आंदोलन छेड़ दिया तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका जाने की यात्रा स्थगित कर दी उन्होंने सर्वप्रथम पिछड़ा वर्ग (बैकवर्ड क्लासेस) 2 शब्दों को हिंदी में परिभाषित किया था जिसे संविधान में संलग्न किया गया।

डॉ अंबेडकर और त्यागमूर्ति आर एल चंदापुरी जी की मुलाकात

18 मार्च 1948 को चंदापुरी जी ने पिछड़ी जातियों को राष्ट्रीय जीवन में आगे बढ़ाने के लिए नौकरियों में आरक्षण तथा छात्रों को छात्रवृत्ति की विशेष सुविधा और सुअवसर इन दो मुद्दों को लेकर संविधान निर्माता परिषद के अध्यक्ष डॉ अंबेडकर से मुलाकात चंदापुरी जी ने पिछड़ी जाति शब्द को पिछड़ा वर्ग के रूप में सर्वप्रथम परिभाषित किया इनके तर्कों को डॉक्टर अंबेडकर ने बहुत ही गौर से सुना और उन्हें भारतीय संविधान में "पिछड़ा वर्ग" शब्द को जोड़ा तथा संविधान में पिछड़े वर्ग के लिए #अनुच्छेद 340 त्यागमूर्ति चंदा पुरी जी के कहने पर ही जोड़ा था

1949 में चंदापुरी जी डॉ पंजाबराव देशमुख को साथ लेकर शिक्षा मंत्री डॉक्टर अब अबुल कलाम आजाद से भेंट की तथा पिछड़े_वर्ग_के_छात्रों_को छात्रवृत्ति के लिए ज्ञापन सौंपा और  डॉक्टर आजाद ने तत्काल छात्रवृत्ति के मदद उसी वर्ष नौ लाख सरकारी रकम मुकर्रर कर दी पिछड़े वर्गों के बीच छात्रवृति वितरित किए जाने के लिए सभी राज्यों में प्रथम बार 1949 में इनकी सूची तैयार की गई जो बाद में काका कालेलकर आयोग की सूची का आधार बनी थी

पिछड़ा वर्ग की मांगों को देशव्यापी बनाने के लिए 1950 में पिछड़ा वर्ग संघ को बदलकर अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग संघ कर दिया गया और उसका प्रथम अध्यक्ष डॉ पंजाबराव देशमुख को बनाया गया

बिहार विधानसभा में आरक्षण के लिए विधेयक पेश करवाया

20 जून 1952 को त्यागमूर्ति चंदा पुरी जी ने बैजनाथ सिंह से बिहार विधानसभा में पिछड़े वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण हेतु एक गैर सरकारी विधेयक रखवाया था वह विधेयक 2 जुलाई 1952 को 52 सदस्यों के समर्थन तथा 180 सदस्यों के विरोध किए जाने पर विधानसभा में अस्वीकृत हो गया था

पंडित नेहरू से त्यागमूर्ति चंदापुरी जी की मुलाकात-:

सन 1955 को जब पिछड़ा वर्ग आयोग ने पिछड़ी जातियों के उन्नयन संबंधी शिफारशी सरकार को सुपुर्द की तो उसी वर्ष 24 अक्टूबर को न्यायमूर्ति चंदापूरी जी पंडित नेहरू से मिलने करीबन 50 मिनटो के वार्तालाप के फलस्वरूप पंडित नेहरू ने चंदापुरी जी को आयोग की सिफारिशों को शीघ्र ही सरकार द्वारा लागू करने का आश्वासन दिया लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया और पिछड़े वर्गों को राष्ट्र की मुख्यधारा में जुड़ने से वंचित कर दिया इस पर प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और त्यागमूर्ति चंदापुरी के बीच तीव्र विभेद पैदा हो गया जो नेहरू बनाम चंदापूरी पुस्तक में उपलब्ध है।

चंदापुरी जी ने अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग संघ से इस्तीफा क्यों दिया-

पंडित नेहरू ने डॉक्टर पंजाबराव देशमुख और जगजीवन राम को आपस में मिला दिया था और संघ का आंदोलन कार्य स्वरूप लुप्त हो गया था श्री चंदा पुरी जी ने अप्रैल 1955 में अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग संघ कार्यकारिणी समिति से इस्तीफा दे दिया इस्तीफा वापस लेने के लिए चंदा पुरी जी से अनुरोध किया गया तथा डॉ देशमुख पटना पहुंचे डॉ देशमुख ने पिछड़ी जातियों के छात्रों के छात्रावास के निर्माण के लिए त्यागमूर्ति चंद्रपुरी जी को सरकारी अनुदान का कोर्स प्रदान करने का लोहतिया चंदापुरी जी ने तख्ता देशमुख को कहा था कि "पिछड़ी जातियों को तत्काल आरक्षण चाहिए" छात्रावास का निर्माण बाद में होगा डॉक्टर देशमुख चुप हो गए और दिल्ली चले गए। त्यागमूर्ति चंदापुरी जी को इसी दिन यह अनुभव हुआ था और उन्होंने यह लिखा था कि "जब कभी भी पिछड़ी जाति का कोई व्यक्ति आंदोलन के कारण किसी पद पर बैठाया जाता है तो वह अपनी सारी शक्तियां आंदोलन को खंडित करने में इस्तेमाल करता है"

1957 का लोकसभा चुनाव-

चंदापुरी जी केनेतृत्व में यह तय हुआ कि अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग संघ अपना प्रतिनिधि भारतीय संसद में भेजा जाए और पिछड़ों की आवाज संसद में उठाई जाए इसीलिए सबकी सहमति से 1957 का आम चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बार संसदीय क्षेत्र जिला पटना से चुनाव में खड़े हो गए तो वहां खलबली मच गई श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा कांग्रेसी उम्मीदवार थी जिसका संबंध बिहार के मुख्यमंत्री डॉ कृष्ण सिंह से था कांग्रेसमें चंदापुरी जीकीमत को विभाजन के लिए छः अन्य पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में खड़ा करवा दिया।

पंडित नेहरू श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा के लिए वोट मांगते हुए कहते थे कि चंदा पुरी जात पात करते हैं जो कि देश के लिए घातक है इसलिए सबको मिलकर चंदापुर जी को हराना जरूरी है त्यागमूर्ति चंदा पुरी जी 1957 के आम चुनाव में थोड़े मतों से हारे थे पर वास्तव में उन्हें हार जीत से कोई मतलब नहीं था वह केवल चुनाव के माध्यम से शोषितों और पिछड़ी जातियों में राजनैतिक चेतना पैदा करना चाहते थे और वह इस कार्य में सफल भी रहे

 डॉक्टर लोहिया और त्यागमूर्ति आर एल चंदापुरी जी-

काफी पहले से ही लोहिया और चंदापुरी जी एक दूसरे के संपर्क में थे सोशलिस्ट पार्टी के नेता डॉ राम मनोहर लोहिया ने 1 से 3 अगस्त 1957 को बिहार में सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक प्रशिक्षण शिविर सिमुलतल्ला मैं लगाया था जिसमें चंदा पुरी जी विशेष रूप से आमंत्रित किए गए थे शिविर में जैसे ही डॉक्टर लोहिया की दृष्टि चंदा पुरी जी पर पड़ी वे झपट कर उनके गले में लिपट गए प्रेम विहार में डॉक्टर लोहिया की आंखों से आंसू टपक गए

और लोहिया जी त्यागमूर्ति चंदापुरी जी को गुरु जी कहा करते थे

20 से 30 सितंबर 1957 तक अखिल भारतीय सोशलिस्ट पार्टी के एक शिविर हैदराबाद के दौरान उन्होंने कहा था कि ब्राह्मणवाद कोई जाति विशेष का सूचक नहीं है और ना ही किसी जाति का प्रतीक है यह एक विचारधारा है दर्शन है और विषमता मुलक तत्व है जिसने वर्ण और जाति व्यवस्था को जन्म दिया और यह आधुनिक समाज के लिए बिल्कुल अप्रासंगिक है। संसोपा ने बांधी गाठ पिछड़े पावे_सौ में साठ यह नारा जो डॉक्टर लोहिया ने दिया था वह चंदापुरी जी के पिछड़े वर्ग के लिए जो मुहिम चलाई जा रही थी उससे प्रेरित होकर दिया था 25 से 29 अप्रैल 1959 को सोशलिस्ट पार्टी का तीसरा राष्ट्रीय सम्मेलन वाराणसी में बुलाया गया था जाति प्रथा नाच नीति डॉक्टर लोहिया ने स्वयं लिखा था

और सौ में साठ के अभियान से पिछड़ी जातियों में काफी तेजी से जागृत रही थी

राष्ट्रीय समिति की बैठक में जाति प्रथा नाश नीति संबंधी प्रस्ताव को रखते हुए सवर्ण समाजवादी नेता मधु लिमए ने उसका जोरदार विरोध किया और कहा "पिछड़ी जातियों के लोग त्याग करना चाहते हैं ना किसी प्रकार का जोखिम उठाना चाहते हैं फिर भी उनके लिए 60 परसेंट स्थान आरक्षित होना चाहिए यह कैसा प्रस्ताव है। इस पर राष्ट्रीय समिति के सदस्य चुप थे और यहां तक कि डॉ लोहिया भी चुप थे इस पर चंदापुरी जी ने कहा "देश का इतिहास बतलाता है कि पिछड़ी जाति के लोग सब प्रकार का त्याग कर बराबर राष्ट्र के निर्माण कार्य में लगे रहते हैं वे जो कुछ भी अपने परिश्रम से उपार्जन करते हैं उसे सवर्ण जाति के लोग भोग करते हैं स्वतंत्रता की लड़ाई में 70 फ़ीसदी से अधिक जेल जाने वालों में पिछड़ी जाति के लोग थे किंतु आजादी के बाद उन्हें क्या मिला? स्वतंत्रता संग्राम की बात जाने दीजिए हाल में सोशलिस्ट पार्टी द्वारा विभिन्न राज्यों में चलाए गए सत्याग्रह में 80 फ़ीसदी से अधिक पिछड़ी जाति के लोग जेल गए हैं फिर त्याग और जोखिम उठाने का क्या मतलब है सत्य पर पर्दा डालना सबसे बड़ा अपराध है क्या सोशलिस्ट पार्टी वहीं करेगी जो कांग्रेस पार्टी करती है मधु लिमए का सिर नीचे झुका तो फिर त्यागमूर्ति चंदा पुरी जी के सामने कभी उठ सका।

बी पी मंडल बिहार पिछड़ा वर्ग संघ के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री बने-

1967 तक बिहार राज्य में उच्च वर्ग का ही व्यक्ति मुख्यमंत्री हुआ करता था उच्च वर्ग के लोगों का कहना था कि उनके अलावा पिछड़े वर्गों से कोई भी मुख्यमंत्री नहीं बन सकता है करीब ऐसे ही स्थिति दक्षिण भारत के कुछ राज्यों को छोड़कर देश के अन्य राज्यों में थी इस चुनौती को स्वीकार करते हुए और बी पी मंडल जी को 12 अगस्त 1967 को बिहार पिछड़ा वर्ग संघ का अध्यक्ष बनाया और उस समय चंदा पुरी जी अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।

चंदापुरी जी ने प्रतिनिधि सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था - "#प्रतिनिधियों_ने_जिस_व्यक्ति को अपना अध्यक्ष चुना है वह #बिहार_का_भावी_मुख्यमंत्री होगा" और मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्यपाल के समक्ष शपथ लेने के पहले बीपी मंडल ने चंदा पुरी जी से कहा था - "आप मुझे मुख्यमंत्री बनाने वाले हैं पहले मैं आपके सामने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेता हूं इसके बाद में मुख्यमंत्री पद की शपथ राज्यपाल महोदय के सामने लूंगा" और त्यागमूर्ति चंदापुरी जी ने बीपी मंडल को द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनवाया था

आरक्षण की लड़ाई

 सन 1977 में जनता पार्टी की सरकार "काका कालेलकर आयोग" की सिफारिशों को लागू करने की शपथ लेकर सत्ता में आई थी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने चंदापुरी जी को 11 अप्रैल 1977 के दिन "पिछड़ा वर्ग आयोग" को लागू कराने का पक्का वचन दिया था किंतु उन्होंने पिछड़ी जातियों को धोखा दिया इधर बिहार में मुंगेरीलाल आयोग की सिफारिशों को लागू कराने का प्रश्न उठ खड़ा हुआ।

इसी बीच जयप्रकाश नारायण जगजीवनराम जेपी मधोक कृपलानी चंद्रशेखर आदि जनता पार्टी के नेताओं से आरक्षण का आधार आर्थिक होने के समर्थन में वक्तव्य दिलवा दिया था उस समय जयप्रकाश नारायण की तुलना महात्मा गांधी जी से की जाने लगी थी इनके विरोध में किसी भी व्यक्ति को कुछ भी बोलने या करने की हिम्मत नहीं थी अंत में जयप्रकाश नारायण मांद से बाहर आए और एक प्रेस वक्तव्य देते हुए कहा कि "आरक्षण का आधार केवल आर्थिक होना चाहिए"

त्यागमूर्ति चंदा पुरी ने तत्काल पटना के अंजुमन इस्लामिया हाल में 27 नवंबर 1977 को सभा में उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा था कि। "जो_लोग_पिछड़ी_जातियों_को_आरक्षण से वंचित कर देश की प्रगति को रोकना चाहते हैं उन्हें समुद्र के गहरे पानी में फेंक कर डुबो देना चाहिए" उन्होंने मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को चेतावनी देते हुए कहा कि जयप्रकाश नारायण की ढाल बनने की कोशिश ना करें " वरना_पिछड़े_वर्ग_के_लोग_सड़ा_गला_अंडे की तरह। #रद्दी_की_टोकरी_में_फेंक देंगे"

इस पर देर तक चंदापुरी-जिंदाबाद और जयप्रकाश नारायण-मुर्दाबाद के नारे लगते रहे।

19 फरवरी 1978 को पिछड़ा वर्ग संघ की एक प्रतिनिधि सम्मेलन को उद्घाटन करते हुए चंदापुरी जी ने "करो या मरो" का दृढ़ संकल्प लेने का आह्वान किया था "मुंगेरी लाल आयोग" को लागू करवाने के लिए बिहार विधानसभा के सामने उसके खुलने के दिन 14 मार्च को पिछड़े वर्गों का एक विराट प्रदर्शन करने का निर्णय हुआ।

त्यागमूर्ति चंदा पुरी ने 14 मार्च को पटना की सड़कों पर लाखों प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व किया जिसमें पुलिस से मुठभेड़ में 300 प्रदर्शनकारी पूरी तरह घायल हुए थे देश के सभी राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने उसे "#जलियांवाला_बाग_की_पुनरावृति" बताया था। बंदूकधारी ने तीन बार त्यागमूर्ति चंदा पुरी को गोलियों का शिकार बनाना चाहा किंतु प्रदर्शनकारियों ने उन्हें चारों ओर से घेरकर उनकी जान बचाई यह खबर बिजली की तरह सभी जगहों पर फैल गई और विधानमंडल के खुले सत्र में हंगामा मच गया दर्जनों विधायक मिनटों में घटनास्थल पर पहुंच गए और पुलिस बर्बरता पूर्ण अत्याचार के खिलाफ भोला सिंह विधायक ने तत्काल अपनी गिरफ्तारी दी थी।

जयप्रकाश नारायण काफी भयभीत और दहशत में गए और उन्होंने उसी रात मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर से मुबारका लाभ कर आरक्षण की घोषणा करवा दी करपुरी ने उस वक्त त्यागमूर्ति चंद्रपुरी को कहा था - "आपकी प्रदर्शन ने मेरी सरकार को आरक्षण की घोषणा करने में मदद की जो कुछ भी हुआ उसके लिए क्षमा करें आपके आदेश की सरकार बराबर इज्जत करती है"

 

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