चुहाड़ विद्रोह ने हिलाकर रख दी थी अंग्रेजी हुकूमत की नींव, पढि़ए कौन था महानायक
जेएनएन। एक ऐसा आंदोलन जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी थी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्व अविभाजित बिहार (अब झारखंड) के इस क्षेत्र से शुरू हुए दो संग्राम इतिहास के पन्नों में सदा याद रखे जाएंगे। प्रथम ‘चुहाड़ विद्रोह’, द्वितीय भूमिज विद्रोह। ‘चुहाड़ विद्रोह’ में महानायक शहीद रघुनाथ महतो के संग्राम की शौर्य गाथा का उल्लेख है। ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र की माटी के वीर सपूत रघुनाथ महतो ने ब्रिटिश हुकुमत के काला कानून के खिलाफ जनमानस को संगठित कर सशस्त्र विद्रोह किया था। जिन्हें इतिहासकारों ने प्रथम स्वंत्रता सेनानी माना।
तत्कालीन जंगल महल अंर्तगत मानभूम जिले के एक छोटे गांव घुटियाडीह जो वर्तमान में नीमडीह प्रखंड में स्थित है। इस गांव में 21 मार्च 1738 को जन्म लेनेवाले क्रांतिवीर रघुनाथ महतो अंग्रेजो के विरुद्व हुए प्रथम संगठित विद्रोह के महानायक थे। गुरिल्ला युद्व नीति से अंग्रेजों के दांत खट्टे करनेवाले इस विद्रोह को फिरंगियों ने ‘चुहाड़ विद्रोह’ का नाम दिया था। रघुनाथ महतो के संगठन शक्ति से वर्तमान के मेदनीपुर से हजारीबाग, रामगढ़ व बांकुड़ा से चाईबासा तक अंग्रेज भयभीत थे।
इस तरह बनी विद्रोह की योजना
अंग्रेज शासक साम्राज्यवादी थे। इस क्षेत्र में शासन चलाने के साथ जल-जंगल-जमीन और अन्य बहुमूल्य खनिज संपद पर इनकी कुदृष्टि थी। उनके द्वारा बनाये जा रहे रेल व सड़क मार्ग सीधे कोलकाता तक पहुंचते थे। जहां से जहाज द्वारा यहां की संपत्ति लेकर इंग्लैंड रवाना हो जाते थे। ब्रिटिशों की स्वार्थ नीति को समझने के कारण जंगलमहल के देशप्रेमी जमीदार व मूलवासियों ने देखा कि यह देश को खोखला बनाने की योजना है। अत: विद्रोह का शंखनाद होना आवश्यक था। ब्रिटिश शासन के कुचक्र के खिलाफ जंगल महल क्षेत्र में सशक्त विरोध रघुनाथ महतो के नेतृत्व में 1769 में आग की तरह फैलने लगा।
लड़ाकू दस्ते में पांच हजार से अधिक लोग
उनके लड़ाकू दस्ते में डोमन भूमिज, शंकर माझी, झगड़ू माझी, पुकलु माझी, हलकु माझी, बुली महतो आदि जांबाज सेनापति थे। रघुनाथ महतो के सेना में टांगी, फर्सा, तीर-धनुष, तलवार, भाला आदि से लैस पांच हजार से अधिक लोग थे। दस साल के लंबे समय तक विद्रोहियों ने अंग्रेजी शासकों का नींद हराम कर दी थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने रघुनाथ महतो को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए बड़ा इनाम भी रखा था। पांच अप्रैल 1778 की रात चुहाड़ विद्रोह के महानायक रघुनाथ महतो और उनके सहयोगियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुई। वर्तमान के सिली प्रखंड अर्न्तगत लोटा पहाड़ के किनारे अंग्रेजों की रामगढ़ छावनी से शस्त्र लूटने की योजना के लिए बैठक चल रही थी। गुप्त सूचना के आधार पर अंग्रेजी फौज ने पहाड़ को चारों तरफ से घेरकर विद्रोहियों पर जमकर गोलीबारी की। जिसमें रघुनाथ महतो व उनके कई वीर सहयोगी वीरगति को प्राप्त हो गए।
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