संथाल विद्रोह - महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य
भूमिज विद्रोह में गंगा नारायण सिंह के साथ बुली महतो ने भी नेतृत्व दिया । संथाल विद्रोह में संथालपरगना के कुडमियों ने भी संथालों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गोड्डा जिले के चानकु महतो के नेतृत्व में अंग्रेजों से लोहा लिया था । जिन्हें 1856 में अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया और उन्हें फांसी दे दी गयी । 1857 के सिपाही विद्रोह में भी कुड़मियों ने हो एवं मुंडा जनजातियों का साथ देते हुये पोड़ाहाट, चक्रधरपुर के महाराजा अर्जुन सिंह के नेतृत्व में लड़ाई लड़ी । बिरसा आंदोलन (उलगुलान) में भी कुड़मियों ने तमाड़ एवं बुंडु में मुंडाओं का साथ देते हुये महाजनों, भूमाफियाओं व शराब ठेकेदारों को मार भगाया । बाद में एक अकाल के दौरान कुछ कुड़मी जीजिविका की तलाश में संथाल, मुंडा, उराँव के साथ असम के चाय बागानों में कुली का काम करने चले गये । मयूरभंज के कुड़मियों ने मेड़ी आंदोलन के दौरान कंका मोहन्ता के नेतृत्व में लड़ाई लड़ी ।
मानभूम के कुड़मियों ने सामूूहिक रूप से महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था, जिसमें आंदोलन के दौरान पाँच एबॉरजिनल कुड़मी ब्रिटिशों की गोलियों से शहीद हुये थे, जिनके नाम गोकुल महतो, मोहन महतो, सितल महतो, सहदेब महतो एवं गणेश महतो है । कई पकड़े गये और जेल में डाल दिये गये । 1942 में दो और कुड़मी युवा चुनाराम महतो एवं गोबिंद महतो शहीद हुये । पूरे मानभूम, हजारीबाग, सिंहभूम एवं झाड़ग्राम के क्षेत्रों में कुड़मियों ने महेश्वर महतो, बृंदाबन महतो, भजोहरि महतो, भीम चन्द्र महतो, राजकिशोर महतो, सत्यकिंकर महतो एवं ज्योतिन्द्र नाथ महतो के नेतृत्व में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन में योगदान दिया ।
इन तथ्यों का रहस्योद्घाटन एन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे अॉफ इन्डिया द्वारा प्रकाशित "द पिपल अॉफ इन्डिया" के खंड 43 के पार्ट 2 में किया गया है ।
- डॉ. राकेश महतो के सौजन्य