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रानी ताराबाई: ‘मराठा साम्राज्य’ का उदय और अस्त देखने वाली योद्धा

जो याद की जाती हैं अपने अदम्य साहस और बुद्धिमानी के लिए. उनके साहस और निडर स्वभाव की वजह से वोमराठाओं की रानीके रूप में प्रसिद्ध हुईं. उन्हें ये उपाधि पुर्तगालियों ने दी थी.

शिवाजी की बहु रानी तारा ने मुगलों से लोहा लिया था. मुग़ल शासक औरंगजेब ने कभी नहीं सोचा था कि यह मराठी रानी भी उसे नाकों चने चबवा देगी. अगर ध्यान दें, तो महज़ कुछ महिला वीरांगनाओं को ही हम जानते हैं. जिसमें रानी लक्ष्मीबाई शीर्ष पर हैं. रानी तारा की मूर्ति तो भले ही स्थापित हो गई है.लेकिन, इनकी वीरता की कहानी कहीं कहीं इतिहास के पन्नों पर धुंधली पड़ गयी है. लिहाज़ा, एक बार फिर इतिहास के पन्ने को टटोलने की कोशिश करते हैं. साथ ही, इस लेख से धुंधली पड़ रही कहानी पर एक बार फिर स्याही की बोतल उड़ेलते हैं.

आठ साल की उम्र में हुआ विवाह!

रानी ताराबाई का जन्म 1675 में हुआ था. उनके पिता का नाम हबीर राव मोहित था, जो मराठा सेना के मुख्य सेनापति थे. उनकी प्रसिद्धी दूर-दूर तक थी. पिता के सेनापति होने की वजह से उन्होंने अपनी बेटी के लिए कभी भी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं रखी. तारा ने शुरू से ही बेहद स्वतंत्र रूप से अपना जीवन जिया था.वह तलवार से लड़ने, तीरंदाजी, घुड़सवारी, सैन्य रणनीति और कूटनीति अन्य सभी विषयों में अच्छी तरह से प्रशिक्षित थीं.

तारा को छत्रपति शिवाजी ने अपनी बहु के रूप में चुना लिया. वो महज़ आठ साल की ही थीं, जब उनका विवाह शिवाजी के बेटे राजाराम से हो गया. बताते चलें, राजाराम शिवाजी और उनकी दूसरी पत्नी सोयराबाई से हुई संतान थे.ताराबाई ने अपने जीवन काल में मराठों के उदय और पतन को देखा था. जिस समय उनकी शादी हुई तब वह एक ऐसा समय था, जब मुगलों और मराठों के बीच लगातार दक्कन पर नियंत्रण के लिए युद्ध चल रहा था.

जब लड़खड़ा रहा था मराठा साम्राज्य!

साल 1680 में शिवाजी की मृत्यु के बाद, उनके पहले पुत्र संभाजी को सिंहासन पर बिठाया गया. उन्होंने करीब एक दशक तक राज किया. साल 1689 में उन्हें मुगलों द्वारा कैद कर लिया गया. बाद में उन्हें और उनकी माँ को मार डाला गया. 15 हज़ार की संख्या में मुग़ल सैनिकों के मारे जाने की वजह से मुग़ल बोखला गए थे. दरअसल, इन मारे गए सैनिकों पर रायगढ़ का किला गिर गया था. जिसकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए थे.

मुगलों ने बाद में संभाजी के बेटे शाहू और पत्नी येसूबाई को भी बंदी बना लिया था. हालांकि, राजाराम वेश बदलकर मुगलों की आँखों से बचकर भागने में कामयाब रहे. वह सतारा में कोर्ट स्थापित करने तक गिंगी किले में रहें.

1700 में मराठा साम्राज्य के लिए एक और क्षति का साल था. फेफड़ों की बीमारी हो जाने की वजह से उनकी असामयिक मृत्यु हो गई. ऐसे में, अब उनके बाद सत्ता की कमान कौन संभालता ये एक प्रश्न था.दरअसल, राजाराम और ताराबाई का एक पुत्र था. जिसका नाम शिवाजी द्वितीय था. जो उनकी मृत्यु के समय महज़ चार साल का था. अब अपने पुत्र के नाम पर ताराबाई ही शासन करने लगीं.

और जब सत्ता की कमान संभाली!

रानी के सत्ता संभालने के दौरान, औरंगजेब मुग़ल शासक की कुर्सी पर था. ऐसे में, औरंगजेब के सामने बढ़ने के लिए अच्छी रणनीति और सैन्य योजना की जरुरत थी.ताराबाई ने अपने पति के शासनकाल के दौरान, पहले से ही नागरिक और राजनीतिक मामलों के बारे में सीखना शुरू कर दिया था. साथ ही, वह एक कुशल घुड़सवार योद्धा थीं. उन्होंने व्यक्तिगत रूप से दुश्मन पर आक्रामक हमलों का नेतृत्व करके अपने कमांडरों और सैनिकों को प्रेरित किया.

उन्होंने रणनीतिक सैन्य योजना में अपनी सारी ऊर्जा लगा दी. मुगलों को इस बात की खबर लगी कि सत्ता रानी संभाल रही हैं. उन्हें लगा कि वह आसानी से अब मराठा साम्राज्य को ख़त्म कर सकते हैं. उन्हें लगा कि एक महिला के नेतृत्व वाले इस साम्राज्य को उखाड़ फेंकना बहुत आसान होगा.

खफी खान (मुग़ल लेखक) ने कहा था, उसे इस बात का बिलकुल अंदाज़ा नहीं कि एक कमजोर, और असहाय रानी शक्तिशाली मुगल साम्राज्य के लिए खतरा पैदा कर सकती है.रानी तारा के नेतृत्व में मराठा द्वारा खो गए क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया गया. साथ ही, मालवा और गुजरात के दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में पर भी हमले किये.

1707 में औरंगजेब की मौत मुगल साम्राज्य के लिए एक बड़ा झटका थी. जिसके बाद मुगलों ने मराठों की एकता पर वार करने का फैसला लिया. अपनी इस रणनीति के तहत उन्होंने संभाजी के बेटे शाहू को रिहा कर दिया.

अब शाहू ने रिहा होकर मराठा की सत्ता पर अपना एक बार फिर अधिकार जताया. शुरुआत में, रानी तारा ने उनके अधिकार को मानने से मना कर दिया. बाद में, बाकी लोगों की दबाव की वजह से उन्हें शाहू को राजा के तौर पर स्वीकारना पड़ा.दरअसल, रानी तारा के शासन को अस्थायी माना गया, जिसमे वो सिर्फ रिक्त स्थान की पूर्ति के तौर पर ही विराजमान थीं.

साल 1709 में, रानी तारा ने अपना कोर्ट स्थापित किया. आगे चलकर, राजाराम की दूसरी विधवा राजसाबाई और उनके बेटे संभाजी द्वितीय ने रानी और उनके बेटे को जेल में दाल दिया. जहाँ 1726 में शिवाजी द्वितीय की मृत्यु हो गई. दरअसल, राजसा अपने बेटे को राजगद्दी पर बिठाना चाहती थीं.

ताराबाई के जेल से बाहर आने के बाद

रानी तारा ने एक बार फिर शाहू के साथ अपने रिश्ते सुधार लिए. महाराज शाहू ने उन्हें सतारा में रहने की अनुमति दे दी. जिसके लिए उन्होंने एक शर्त रखी कि वो किसी भी राजनीतिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगी.

कुछ समय बाद, जब महाराज शाहू बीमार पड़ गए तब उनके उत्तराधिकारी का प्रश्न उठा. चूँकि, संभाजी द्वितीय ने महाराज शाहू का विरोध किया हुआ था. उन्हें सत्ता देने का कोई सवाल नहीं उठता था. इस समय ताराबाई ने एक खुलासा करके सबको चौंका दिया.

उन्होंने बताया कि उनका पोता अभी भी जिंदा है. दुश्मनों के डर की वजह से उन्होंने उसे छिपा कर रखा हुआ था. उनके उस पोते का पालन-पोषण एक सैनिक के परिवार ने किया था. जिसके बाद 1749 में महाराज शाहू ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.

इस तरह से वह रानी की मदद से मराठा साम्राज्य के सत्ताधारी बन गए. वह जल्दी ही पेशवाओं के करीब हो गए, खासकर कि नाना साहब के. इस दौरान वह रानी की बात मानने से इनकार करने लगे. जिस पर तारा ने उन्हें जेल में डलवा दिया और कहा कि ये उनका पोता नहीं है.

ये कोई बहरूपिया है, उन्हें छला गया है. आगे चलकर, तारा के खिलाफ सतारा में विद्रोह शुरू हो गया. जिसे उन्होंने जल्द ही कुचल दिया.उच्च रैंकिंग अधिकारियों के बीच समर्थन हासिल करने में असमर्थ होने की वजह से, उन्होंने अंततः पेशवों के साथ पारस्परिक शांति की शपथ ली.

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