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छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन के कुछ अनकहे तथ्य- यहाँ पढ़े कैसे स्वराज्य के संकल्प को कैसे हिन्दू मुस्लिम बनाया ?

प्रजा प्रतिपालक छत्रपति शिवाजी महाराज ने पश्चिमी मध्य भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी वास्तव में शिवाजी महाराज की दृष्टि और कथन के अनुसार यह रैयत का राज्य था जिसमें अनेक जाति, धर्म के लोग रहते थे। माता जिजाऊ अनन्य साधारण, प्रतिभा संपन्न, शीलवान और शूर थी पिता शाहजी राजे भोसले निजामशाही में सरदार थे।

शिवाजी महाराज का जन्म पुणे के शिवनेरी दुर्ग पर 19.2.1630 को हुआ। उल्लेखनीय बात यह है कि इस किले के परिसर में अनेक बौद्ध गुफाएं हैं तथा पुणे प्रांत के सहयाद्री पर्वतों में अनेक बौद्ध गुफाएं हैं। 'भोसले' महाराष्ट्र की कुर्मी जाति से संबंधित है। यह नाम अन्य जातियों में भी पाया जाता है। यह कई जातियों का कुल नाम भी है। शिवाजी महाराज पर उनके माता-पिता का बहुत प्रभाव रहा है पुणे के मावल परिसर में उनका बचपन अपने दोस्तों के साथ युद्ध कला, राज-काज,न्याय,गणित,भाषा की लिखाई पढ़ाई आदि का शिक्षण जिजाऊ के मार्गदर्शन में प्राप्त किया। उन्होंने यह बचपन से ही देखा था कि अपने ही लोग सरंजामी, सामंतवादी बनकर सत्ता की धाक पर अपने ही लोगों को लूट रहे हैं, धर्म के नाम पर समाज को ठग रहे हैं। बचपन से ही वे उस काल के वातावरण और घटनाओं को भली भांति समझने लगे थे समाज न केवल बारंबार की लड़ाइयों से परेशान है बल्कि सामंती, सरंजामी और धार्मिक दहशतवाद से पीड़ित है

जब पुणे में जिजाऊ और बाल शिवबा रहने लगे तो पुणे गांव ओस पड़ा था। यहाँ मुगल सरदार ने गधे का हल चलाकर जमीन को लोगों की नजर से दूर करने के लिए अपवित्र किया गया और ब्राह्मण पुरोहितों ने इसका समर्थन भी किया था लोग गांव छोड़कर चले गए ऐसी स्थिति में राजमाता जिजाऊ ने वहाँ बाल शिवाजी के हाथों से सोने का हल चलाया और गाँव पुनर्स्थापित किया इस कार्य का ब्राह्मणों ने कड़ा विरोध किया था तो उन्हें माता जिजाऊ ने करारा जवाब दिया शिवाजी महाराज के बाल हृदय में ही अन्याय के खिलाफ क्रांति की ज्योति जल उठी थी वे सत्य और न्याय का राज लाने के लिए उत्सुक हो चुके थे मावल प्रांत के अपने मित्रों के साथ मिलकर उन्होंने अपने पिता के 2000 सैनिकों की सेना को आगे चलकर एक लाख से ज्यादा सैनिको घुड़सवार,गजसवार आदि का लश्कर स्थापित करके स्वयं का साम्राज्य स्थापित किया और6 जून 1974 को राज्याभिषेक कराकर छत्रपति उपाधि धारण की छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपना दूसरा राज्यभिषेक 24.9.1674 को शाक्तपंथ के तहत करवाया उनके साम्राज्य में 300 से ज्यादा दुर्ग थे शिवाजी महाराज के निधन के बाद उनके परिवार में ब्राह्मण अमात्यों ने झगड़े लगाए और राज्य दो भागों में बंटा उसमें से एक के वारिश कोल्हापुर के छत्रपति राजर्षि शाहू जी महाराज रहे और दूसरा पुणे के पेशवा ब्राह्मणों ने कब्जा लिया था

लेखक, संपादक, प्रकाशक, वितरक, विक्रेता यह सब एक ही विचार (ब्राह्मणवादी) के होने की वजह से शिवाजी महाराज का वास्तविक अर्थात सच्चा इतिहास प्रकाशित नहीं हुआ बल्कि गोब्राह्मण प्रतिपालक हिंदू राज्य का संस्थापक ऐसा उनका चित्र निर्माण किया गया लेकिन जब ज्योतिबा फुले द्वारा शिवाजी महाराज का सच्चा इतिहास लिखने की पहल की गयी। उसके बाद सत्यशोधक आंदोलन से अनेक ऐसे लेखक निर्माण हुए जिन्होंने यह प्रयास किया कि शिवाजी महाराज का सच्चा इतिहास सामने आए आज महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के 2 रूप चर्चा में है एक ब्राह्मणों द्वारा प्रचारित गोब्राह्मण प्रतिपालक हिंदू राजा और दूसरा बहुजन प्रतिपालक रैयत का राजा। शिवाजी महाराज की विशेषता यह थी कि न तो वे वारिसाना अधिकार से सत्ता में थे न तो किसी दूसरे ने तैयार किये हुए राजगद्दी पर अपना अधिकार जमा बैठे थे, उन्होंने अपना राज्य स्वयं अपने साथियों के साथ, माता जिजाऊ के मार्गदर्शन में स्थापित किया था।

उस वक्त भारत में मुगलों, निजामों का राज्य था। अधिकांश लोग जिनका आज ब्राह्मण इतिहासकार क्षत्रिय इतिहास के रुप में उल्लेख करते हैं और अनेक ब्राह्मण मंत्रियों का गुणगान करते नहीं थकते वे मुगल और निजामों के सरदार, सेनापति, वकील, मंत्री आदि हुआ करते थे

जन सामान्य अर्थात रैयत की नजर में शिवाजी महाराज राजा थे लेकिन उस वक्त के अनेक मराठा सरदार और ब्राह्मण शिवाजी महाराज को राजा मानने और पुकारने का विरोध करते थे और दूसरी तरफ मुगलों को राजा मानते थे और उनके सामने न केवल सिर झुकाते थे बल्कि उनके साम्राज्य को बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाते थे उत्तर भारत के मिर्जा राजे जयसिंह राजपूत थे मोरे, निंबालकर, सावंत, श्रंगारपुरे ऐसे बड़े नामों वाले मराठा सरदार मुगलों के समर्थन में थे उत्तर भारत के मिर्जा राजे जयसिंह राजपूत भी जब शिवाजी महाराज के खिलाफ औरंगजेब के समर्थन में युद्ध कर रहे थे तब उनके साथ अनेक जाट, राजपूत, मराठा सरदार थे जैसे की राज रायसिंह सिसोदिया सुजान सिंह बुंदेला, हरिभान गौर, उदयभान गौर, शेर सिंह राठौर, चतुर्भुज चौहान, मित्रसेन, इंद्रभान बुंदेला, बाजी चंद्रराव, गोविंदराव आदि। अकबर, शाहजहाँ, औरंगजेब, निजाम, आदिलशाह के साथ जो सरदार थे उनमें से आधे के करीब राजपुत,जाट,मराठा जातियों के सरदार थे और वे पूरे ईमान से उनके साथ थे शिवाजी महाराज की लड़ाई हिंदू धर्म के नाम और हिंदू साम्राज्य की स्थापना के लिए थी ऐसा प्रचार ब्राह्मणवादी लेखक करते हैं लेकिन उस वक्त की वास्तविकता को देखा जाए तो यह कोई धर्म की लड़ाई नहीं थी उस वक्त सत्ता के लिए मुसलमान मुसलमानों के खिलाफ,राजपूत राजपूतो के खिलाफ,मराठा मराठों के खिलाफ लड़ते थे और एक दूसरे का साथ देते थे दिल्ली के राजा इब्राहिमखान लोदी का पराभव करके दूसरा मुसलमान बाबर दिल्ली का बादशाह बन गया था हुमायूं और शेरशाह दोनों मुसलमान थे लेकिन दोनों एक दूसरे के खिलाफ जान की बाजी लगाकर लड़े बीजापुर और गोवलकोंडा में मुस्लिम गद्दी थी फिर भी औरंगजेब उनके खिलाफ लड़ता रहा। इससे यह सच सामने आता है कि ब्राह्मण जो प्रचारित करते हैं कि लडाई हिंदू विरुद्ध मुसलमान थीयह एक झूठा और छल कपट भरा विचार है

शिवाजी महाराज और ब्राह्मण:

शिवाजी महाराज को सबसे ज्यादा इसी से परेशानी हुई, विरोध हुआ और संघर्ष करना पड़ा। शिवाजी महाराज को हराने के लिए ये सब मिलकर मुगलों का समर्थन करते रहे। यह बात निम्न घटनाओं से सिद्ध होती है।

1. शिवाजी महाराज ने मुगलों का कोंढाणा (सिंहगढ़) के लिए युद्ध किया था उसका किलेदार, प्रमुख उदयभानु यह राजपूत था।

2. औरंगजेब का सरदार अफजलखान जब शिवाजी महाराज की भेंट लेने प्रतापगढ़ किले पर आया था तो अफजल खान की तरफ से कृष्णाजी भास्कर कुलकर्णी यह उसका वकील था जब अफजल खान और शिवाजी महाराज की लड़ाई हुई तब इसी कृष्णाजी भास्कर कुलकर्णी ने अफजल खान के बचाव में शिवाजी महाराज पर तलवार से वार किया था। शिवाजी महाराज ने उसे मार गिराया था अगर शिवाजी महाराज एक हिंदू राजा थे और हिंदू राज्य स्थापित करना चाहते थे ऐसा ब्राह्मणों का कहना था तो एक ब्राह्मण वकील एक मुसलमान सरदार के साथ क्यों था?

3.शिवाजी महाराज को महाराज कहने से इनकार करने वाला का एक ब्राह्मण सरदार मोरोपंत पिंगले था।

4.शिवाजी महाराज के खिलाफ जब औरंगजेब की तरफ से मिर्जा राजे जयसिंह और अनेक राजपूत,जाट, मराठा और मुग़ल सरदार युद्ध कर रहे थे तो इन्हीं महाराष्ट्र पुरोहितों ने मिर्जा राजे जयसिंह युद्ध जीत जाए इसलिए महारण कोटिचंडी यज्ञ किया था। मिर्जा राजे जयसिंह का सरदार दिलेर खान लाखों की सेना लेकर जब पुणे प्रांत के पुरंदर में आया तब उसे मिलने के लिए पुणे के 400 ब्राह्मण गये और उसे शिवाजी महाराज को हराने के लिए कोटि चंडी यज्ञ कराने की सलाह दी। उन 400 ब्राह्मणों को 2 कोट होन दिलेर खान ने दिए। ब्राह्मणों ने शिवाजी महाराज के खिलाफ कोटी चंडी यज्ञ किया।

5.महाराष्ट्र का कोई भी ब्राह्मण शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक करने को तैयार नहीं था और न ही क्षत्रिय का दर्जा देने के लिए तैयार था। वे कहते थे कि शिवाजी शूद्र हैं। इसलिए शिवाजी महाराज को लाखों की स्वर्ण मुद्राए देकर काशी के गागा भट्ट ब्राह्मण को लाकर राज्यभिषेक करवाना पड़ा।

6.एक बार पुणे परिसर के जावली इलाके के मोरे सरदार को शिवाजी महाराज ने एक लिखित संदेश भेजा था उसमें स्वयं का उल्लेख राजे किया था तो इस मराठा सरदार मोरे ने उन्हें संदेश भेजा कि तुम कहाँ के राजे? तुम स्वयं को राजा कहते हो इसलिए राजे हो ? इस वक्त खाना खा रहे होंगे तो उसे छोड़ो हाथ धोकर हमारे साथ युद्ध करने जावली में आओ मोरे जैसे अनेक मराठा सरदार ऐसे थे जो न केवल शिवाजी महाराज को राजा मानने से इनकार करते थे बल्कि उन्हें मराठा भी नहीं मानते थे, क्योंकि महाराष्ट्र में मराठों के 96 कुल मानते हैं उनमें भोसले यह नाम नहीं है। आज भी भोसले इस नाम के मराठों को अन्य मराठा हल्का मानते हैं।

शिवाजी महाराज और हिंदू धर्म

शिवाजी महाराज हिंदू धर्म के थे और हिंदुओं के लिए लड़ रहे थे। ऐसा जो प्रचार ब्राह्मणवादियों द्वारा किया जाता है उसके बारे में हमने ऊपर पढ़ा ही है, लेकिन क्या शिवाजी महाराज हिंदू नाम का कोई धर्म मानते थे? या उस वक्त हिंदू धर्म नाम का कोई धर्म था? उस वक्त का इतिहास देखा जाए तो न तो शिवाजी महाराज हिंदू धर्म के लिए लड़ रहे थे न उनका हिंदू धर्म था। उस वक्त मुस्लिम, सिख, जैन, भागवत यह धर्म के रूप में देखे जाते थे। इनके अलावा जो लोग थे वे या तो अलग अलग पंथों में या फिर अखाड़ों, पीठों में विश्वास करते थे और उन पंथो, पीठों के प्रमुखों द्वारा बताए गए कर्मकांड करते थे। मुस्लिम, सिख, जैन, बोद्धों के अलावा जो लोग थे वे ब्राह्मण पुरोहितों के अधीन रहते थे उनसे ही कर्मकांड कराते थे। इसके खिलाफ कोई जाता था उसे दंडित करने का अधिकार ब्राह्मण धर्मपीठ के पास ही रहते थे संत तुकोबाराय का सारा साहित्य जिसे गाथा कहते हैं उसे इंद्रायणी नदी में डुबो देने का आदेश ब्राह्मण धर्मपीठ ने ही दिया था मंदिर और कर्मकांड ब्राह्मणों के पास थे इसलिए उसे धर्म का चोला ब्राह्मण आसानी से पहना सकते थे ऐसा ही उन्होंने शिवाजी महाराज के साथ किया।

शिवाजी महाराज गैरब्राह्मण संतों, फकीरों से अक्सर चर्चा सलाह मशवरा करते थे उनका मार्गदर्शन करते थे। ब्राह्मण जो मंदिरों के मठों के नाम पर समाज की लूट करते थे उसका विरोध संत तुकोबाराय और शिवाजी महाराज ने किया। शिवाजी महाराज ने एक ब्राह्मण गोसेवी को कहा कि हमने यह राज्य रैयत के लिए कमाया है गोसेवियों के लिए नहीं। इससे कोई भी समझदार व्यक्ति यह जान सकता है कि शिवाजी महाराज हिंदू धर्म के लिए नहीं लड़े उस वक्त हिंदू नाम का कोई धर्म था भी नहीं। उस वक्त अगर कोई धर्म था तो वह जाति धर्म था, कर्मकांड और आस्थाओं का पंथ था

शिवाजी महाराज के सैन्य में राज कारोबार में अनेक मुस्लिम सरदार महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे उनमें से कुछ परिचय इस प्रकार हैं-,,,,,,

1.नूर खान बैग-यह सैनिक दल (थल सेना) प्रमुख था।

2.सिद्दी इब्राहिम-यह शिवाजी महाराज का अंगरक्षक था।

3.सिद्धि जलाल-यह अश्व दल में अधिकारी था। पन्हाल गढ़ की लड़ाई में शिवाजी महाराज की जान बचाने के लिए इसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

4.मदारी मेहतर-यह शिवाजी महाराज का निजी सेवक था इसने शिवाजी महाराज की आज्ञा से औरंगजेब की नजर कैद से बाहर निकालने वक्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

5.हुसैन खानमियां-ये दक्षिण प्रांत में शिवाजी महाराज का साम्राज्य बढ़ा रहे थे।

6.रुस्तमेजनमा-यह गुप्तहेर था।

7.दर्यासारंग-यह जल सेना का प्रमुख था।

8.दौलत खान

9. इब्राहिम खान

10.सिद्दी मिस्त्री आदि प्रमुख सरदार थे।

11.इब्राहिम खान-यह तोपखाने का प्रमुख था। उस वक्त तोपखाने के सारे तोपची मुस्लिम थे।

12.काजी हैदर-यह शिवाजी महाराज का वकील था।

13.बाबा खान दाउत-यह शिवाजी महाराज के सलाहकार थे।

जिन शिवाजी के नाम पर आज ब्राह्मणवादी लोग राजनीति करते हैं वे अंग्रेजों के समय में शिवाजी महाराज का नामो निशान मिटाने पर तुले थे शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक जिस रायगढ़ किले पर हुआ, उसी किले पर उनकी समाधि भी है यह किला अंग्रेजो के समय में ध्वस्त किया गया था ज्योतिबा फुले जब शिवाजी महाराज का सच्चा इतिहास लोगों को बताने के लिए पवाड़ा लिख रहे थे तब इस रायगढ़ किले पर जाकर उन्होंने शिवाजी महाराज की समाधि ढूँढ निकाली। वह अत्यंत बुरी अवस्था में थी। आसपास जंगली पेड़ पौधे उगे हुए थे उसे साफ कर समाधि पर आदरपूर्वक फूल अर्पण किये उस वक्त रायगढ़ किले के पास जो गाँव है उस गाँव के ब्राह्मण अर्थात ग्रामभट पुरोहित को यह बात अच्छी नहीं लगी वह किले पर आया उसने ज्योतिबा फुले का विरोध किया और उसने कहा यहाँ पूजा करने का अधिकार तुम्हें किसने दिया और शिवाजी कोई राजा नहीं था वह शूद्र था ऐसा कहकर उसने उनका अपमान किया। यह बात ज्यादा पुरानी नहीं है।

जिन्होंने शिवाजी महाराज का जीते जी विरोध और अपमान किया वे उनके बाद भी उनका विरोध और अपमान करते रहे। केवल शिवाजी महाराज को मानने वाले लोगों के मत चुनाव में चाहिए इसलिए तिलक के नेतृत्व में ब्राह्मणवादियों ने शिवाजी महाराज का ब्राह्मणीकरण करना प्रारंभ किया ताकि इससे आसानी से बहुजन समाज का भी ब्राह्मणीकरण किया जा सके। एकबात फिर दोहराना चाहते है कि शिवाजी महाराज अकेले राजा हुए जिन्होंने गुलामी स्वीकार ना करके भारत गणराज्य के स्वराज्य का संकल्प लिया था जिसे ब्राम्हण आज हिन्दू मुस्लिम में बनाकर सत्ता की रोटियां सेंकने का काम करते है।